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सुबह का समय था. घड़ी की सुई 6 पार कर रही थी कि एकाएक धरती डोलने लगी. केरी मुंडा कोयले की बोझाई करने के लिए निकली थी. वह दौड़कर धौड़ा में घुसी. अपने दूधमुंहे बच्चे को गोद में लेकर अन्य सदस्यों के साथ राष्ट्रीय राजमार्ग की ओर भागने लगी. बाहर आग की लपटें उठ रही थीं. जैसे कोई ज्वालामुखी फट गया हो. तापमान भी बढ़ा हुआ था. भीषण गर्मी में वहां एक पल ठहरना मुश्किल था.
केरी को कुछ-कुछ मालूम था. कुछ समय पहले झरिया में इसी तरह आग की लपटें उठीं और वहां खड़े बाप-बेटे हमेशा के लिए जमींदोज हो गए. सो वह भागती जा रही थी.
लोगबाग घर छोड़कर कोलियरी के सामने डेरा डाले हैं. गाय, बकरी, मुर्गी.. सबकुछ आजाद कर दिए गए. कब ये आग पूरे मुंडा धौड़ा को लील ले, कौन जाने?
वहां रहने वाली तिलकी मांझी कहती हैं, "बासंती माता (देवी दुर्गा का एक रूप) हमेशा हमें बचाती रही हैं. शायद इस बार भी कोई रास्ता निकाल दें. हमार मालकिन तो उहे है बाबू!"
दरअसल BCCL के झरिया, कतरास जैसे इलाकों में भयावह आग का तांडव है, लेकिन निरसा इलाके में पहली बार आग इस तरह धधक उठी है.
यह इलाका लोक उपक्रम कोल इंडिया की सब्सिडरी BCCL के चांच-विक्टोरिया एरिया में पड़ता है. तकरीबन 32 वर्ग किलोमीटर में फैले इस इलाके में पहले बेंगल कोल, वीरभूम कोल, विक्टोरिया आदि के नाम पर कोयले की खदानें चलती थीं. निजी खान मालिकों के स्लॉटर माइनिंग के कारण भूधसान और आग का खतरा उत्पन्न हो गया है.
वर्ष 2013 में एक हादसा हुआ. कोयले की चाल से दबकर मैनेजर अरूप चटर्जी समेत तीन कर्मियों की मौत हुई थी. बाद में खान सुरक्षा की सबसे बड़ी एजेंसी खान सुरक्षा महा निदेशालय DGMS ने इस माइंस को बन्द कर दिया था. यह कोलियरी झारखंड-बंगाल सीमा पर NH पर स्थित है.
फिलहाल मिनी रत्न कम्पनी BCCL पर कोल प्रोडक्शन का बहुत दबाव है. कोल इंडिया सालाना 600 मिलियन टन कोयला उत्पादित करता है. हालांकि पिछले साल ये आंकड़ा पूरा नहीं हो सका था.
कंपनी के चेयरमैन प्रमोद अग्रवाल ने कहा,
भारत के नक्शे में BCCL का इसलिए भी महत्व है क्योंकि एकमात्र यही कंपपनी देश को कोकिंग कोयला देती है. फिर भी कोकिंग कोल की जरूरत पूरा करने के लिए कोयले का इम्पोर्ट करना पड़ता है.
BCCL के CMD पीएम प्रसाद ने बताया कि आग और भूधसान कंपनी के लिए बड़ी समस्या है. फिर भी सुरक्षा मानकों पर ध्यान दिया जाता है. पर्यावरण के संरक्षण के लिए 15,570 वृक्ष लगाए गए हैं, जबकि 16, 500 पौधे वितरित भी किए गए हैं.
BCCL में झरिया पुनर्वास के लिए एक प्राधिकार भी कार्यरत है. रैयतों को मुआवजा और दो एकड़ जमीन पर नियोजन भी देने का प्रावधान है. हालांकि अनधिकृत लोगों को सिर्फ आवास मुहैया कराया जाना है. वहीं सी-पैच इलाके से लोगों को बिना हटाए उत्पादन कैसे शुरू कर दिया गया, इस पर प्रबंधन मौन है.
दरअसल बासंतीमाता-दहीबाड़ी सी-पैच में कुल 183 परिवार प्रभावित हो रहे हैं. इनमें मुंडा धौड़ा के बगल में ही आग धधक रही है. मुंडा और मांझी के 11 परिवार यहां कच्चा शेड बनाकर रहते हैं. बेहरा मुंडा ने कहा कि वे इसी राज्य के आदिवासी हैं. दादा-परदादा ने अपनी पुश्तैनी जमीन का क्या किया, उन्हें नहीं मालूम. तकरीबन छह दशक से वे इसी जगह रहकर गुजर बसर कर रहे हैं.
माको ने बताया कि वे नौकरी और पैसा तो नहीं मांग रहे. वह तो सिर्फ एक छोटा सा ठिकाना मांग रही है, जहां सर पर एक छत हो. सुबह से रात तक मेहनत-मजदूरी में औरत-मर्द बाहर ही रहते हैं. सिर्फ रात को सोने के लिए दड़बे में लौटते हैं. केरी की गोद में दुधमुंहा बच्चा है. वह सिर्फ टुकुर-टुकुर ताक रहा है. असहाय मां की आंखों से टपक रहा है आंसू. आग, गर्मी, धूल और धुंआ से इनके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा है. जहरीली धुंए से ये गंभीर बीमारियों के शिकार हो सकते हैं.
जिस ट्राइबल के नाम पर झारखंड बना वे ही आज बेबस और लाचार हैं. बेघर हैं. अपने ही राज्य में उन्हें ठोर की तलाश करनी पड़ रही है. देश में बिजली का अस्सी प्रतिशत कोयले से उत्पादित होता है. इसी बिजली से महानगर जगमग है. मुल्क रौशन है, लेकिन मुंडा धौड़ा में अंधेरा पसरा है. अपनी ही धरती पर कोयला बोझाई करते हुए जो देश को रौशन कर रहे हैं, उनकी जिंदगी और भविष्य स्याह दिख रही है.
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