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जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) कैंपस में पुलिस समय से पहुंच गई होती तो शायद 5 जनवरी की शाम हुई हिंसा की घटना टाली जा सकती थी, ऐसा मौके पर मौजूद लोगों का कहना है. खुद स्पेशल सीपी आरएस कृष्णया का भी मानना है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन से लिखित अनुमति पाने के बाद ही पुलिस अंदर जा सकी, तब तक पुलिस को गेट पर इंतजार करना पड़ा.
गृह मंत्री अमित शाह ने कमिश्नर को फोन कर रिपोर्ट तलब की है. नकाबपोश गुंडे कौन थे, इसकी भी तफ्तीश जारी है.
न्यूज एजेंसी आईएएनएस ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि छात्रों के रजिस्ट्रेशन के आखिरी दिन 5 जनवरी को सर्वर बंद होने को लेकर दोपहर में डेढ़ बजे से ही लेफ्ट और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़े ग्रुप्स के बीच झड़प शुरू हो गई थी.
उन्होंने कहा कि एबीवीपी के छात्रसंघ चुनाव के प्रत्याशी रहे मनीष की बुरी तरह पिटाई हुई है. कुछ ही देर में वसंत कुंज थाने से पुलिस जेएनयू गेट पर पहुंच गई. इस बीच पुलिस ने कैंपस में घुसने के लिए यूनिवर्सिटी प्रशासन से अनुमति मांगी. शाम चार बजे तक पुलिस की चार से पांच गाड़ियां मेन गेट पर पहुंच गई थीं.
इस मामले पर जेएनयू के स्टूडेंट विजय कुमार ने क्विंट को बताया कि 5 जनवरी की शाम साबरमती हॉस्टल के पास जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन का एक पीस टॉक था, जिसमें जेएनयू छात्र संघ और यूनिवर्सिटी के बहुत से छात्र भी पहुंचे थे. जेएनयू के ही एक छात्र गौतम उस वक्त साबरमती हॉस्टल के पास ही मौजूद थे. उन्होंने बताया,
गौतम के मुताबिक, करीब 100 लोगों की भीड़ ने अचानक पत्थरबाजी और मारपीट शुरू कर दी. उन्होंने बताया कि भीड़ बिना किसी वजह के लोगों को पीट रही थी. गौतम का दावा है कि भीड़ लेफ्ट से जुड़े छात्रों को चुन-चुनकर मार रही थी, उसने एबीवीपी और राइट विंग से जुड़े छात्रों को छोड़ दिया.
इसके आगे यूनिवर्सिटी ने कहा है, ''हालांकि, जब तक पुलिस आई, रजिस्ट्रेशन का विरोध करने वाला छात्रों का ग्रुप रजिस्ट्रेशन चाहने वाले छात्रों को पीट चुका था.''
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