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भारत में एक पत्रकार के रूप में आपके क्या अधिकार (Journalists legal Rights in India) हैं? ऑनलाइन होने वाले दुर्व्यवहार (अब्यूज) से कैसे निपटें? यदि आपको हिरासत में लिया जाता है तो क्या करें? FIR का जवाब कैसे दें? क्या आप अपनी गिरफ्तारी की आशंका की स्थिति में शिकायत दर्ज होने से पहले ही जमानत की मांग कर सकते हैं?
ये कुछ ऐसी चिंताएं हैं, जिनका जवाब देने के लिए कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स (सीपीजे) ने ट्रस्टलॉ/TrustLaw के साथ मिलकर अपनी नई रिपोर्ट: नो योर राइट्स गाइड फॉर जर्नलिस्ट्स इन इंडिया जारी की है. TrustLaw थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की वैश्विक निशुल्क सेवा है.
शनिवार, 25 फरवरी को जारी की गई यह रिपोर्ट ऐसे सवालों पर किसी उचित कानूनी सलाह का पूर्ण विकल्प नहीं है. इसका उद्देश्य आपको सूचना देना है. सीपीजे की वेबसाइट पर कहा गया है, यह "पत्रकारों को भारतीय कानून के तहत उपलब्ध उपायों और सुरक्षा उपायों की कामकाजी समझ से लैस करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है.
पूरी गाइड (अंग्रेजी और हिंदी दोनों में) देखने के लिए यहां क्लिक करें.
(क्या आप जानते हैं कि आपके पास अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (फ्री स्पीच) का मौलिक अधिकार है?)
जैसा कि CPJ की रिपोर्ट में बताया गया है, भारत में एक पत्रकार के रूप में आपके अधिकारों में शामिल हैं:
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भारत के सभी नागरिकों के लिए उपलब्ध एक मौलिक अधिकार है. इसमें प्रेस की स्वतंत्रता, प्रकाशन की स्वतंत्रता, प्रसार और पूर्व-सेंसरशिप के विरुद्ध अधिकार शामिल हैं.
इसका मतलब है कि आप सरकार या देश की आलोचना कर सकते हैं.
हालांकि, यह स्वतंत्रता असीमित नहीं है, और आपके भाषण को उस स्थिति में प्रतिबंधित किया जा सकता है यदि यह सार्वजनिक लॉ एंड आर्डर को बाधित करता है, अपराध करने के लिए उकसाता है, या इससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है.
(क्या आप जानते हैं कि अपनी पसंद का वकील नियुक्त करना और पूछताछ के दौरान उसकी उपस्थिति आपका मौलिक अधिकार है?)
यदि आपको गिरफ्तार किया जा रहा है -
आप जांचें कि क्या पुलिस/ऑथोरिटी के पास आपको गिरफ्तार करने, छापा मारने या सामान की तलाशी लेने या जब्त करने का वारंट है- इसमें फोन जैसे इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तक पहुंच शामिल है. यदि आपको ऐसे किसी सबूत को प्रकट करने के लिए विवश किया जा रहा है तो अपने वकील से परामर्श करें.
गिरफ्तारी के समय, पुलिस को आपको गिरफ्तारी के कानूनी प्रावधानों और जमानत के आपके अधिकार के बारे में सूचित करना चाहिए. गैर-संज्ञेय अपराधों के लिए एक वारंट की आवश्यकता होती है जो आमतौर पर जमानती होते हैं, जबकि संज्ञेय अपराधों के लिए वारंट की आवश्यकता नहीं होती है जो गैर-जमानती हैं.
अगर गिरफ्तार किया जाता है, तो आप जमानत मांग सकते हैं और अपने दोस्तों और परिवार को सूचित कर सकते हैं.
अपनी पसंद का वकील नियुक्त करना और पूछताछ के दौरान उसे उपस्थित रखना आपका मौलिक अधिकार है.
यदि आपकी पहुंच वकील तक नहीं है, तो आप राष्ट्रीय, राज्य या जिला स्तर पर संबंधित कानूनी सेवा प्राधिकरणों द्वारा प्रदान की जाने वाली मुफ्त कानूनी सहायता का लाभ उठा सकते हैं.
यदि आपको लगता है कि किसी प्रश्न का उत्तर देने से आप पर दोष लग सकता है, तो आपको पूछताछ के दौरान चुप रहने का अधिकार है.
गिरफ्तारी करते समय, पुलिस अधिकारी को एक "गिरफ्तारी का ज्ञापन" तैयार करना चाहिए जिस पर आपके और आपके किसी रिश्तेदार/पड़ोसी का भी हस्ताक्षर हो.
इसके अलावा, पुलिस अधिकारी को आपके द्वारा नामित व्यक्ति को आपके ठिकाने (आपको कहां ले जाया जा रहा है) की जानकारी देनी चाहिए और उसे रिकॉर्ड करना चाहिए.
महिलाओं को केवल पुरुष अधिकारी ही दिन में गिरफ्तार कर सकते हैं. अगर आपको सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के बाद गिरफ्तार किया जा रहा है तो एक महिला पुलिस अधिकारी को उपस्थित होना चाहिए.
अगर आपको लगता है कि आपको भविष्य में गिरफ्तारी किया जा सकता है तो आप उससे पहले ही जमानत मांग सकते हैं, भले ही आपके खिलाफ कोई शिकायत दर्ज न की गई हो.
यह महत्वपूर्ण है क्योंकि पत्रकारों को अक्सर एफआईआर, मानहानि के मुकदमों और अन्य कानूनी कार्यवाही का सामना करना पड़ता है. यहां तक कि कई को गैरकानूनी गतिविधियों (रोकथाम अधिनियम) और जम्मू-कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम सहित अन्य कड़े कानूनों के तहत कैद भी किया गया है.
पत्रकार नेहा दीक्षित ने लॉन्च इवेंट में बताया कि कैसे संघर्ष केवल पत्रकारों को नहीं करना पड़ता है, बल्कि प्रेस की स्वतंत्रता पर हमलों के बाद उनके परिवार भी कैसे पीड़ित हैं. उन्होंने यह बात करते हुए उदाहरण दिया कि कैसे स्वतंत्र पत्रकार रूपेश कुमार सिंह की गिरफ्तारी के बाद से उनकी पत्नी की भी नौकरी चली गई है और उनके 7 साल के बेटे को स्कूल बदलना पड़ा है.
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