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अयोध्या पर फैसला समझना मेरे लिए मुश्किल: SC के रिटायर्ड जज गांगुली

संविधान के पहले कहां क्या था, यह बताना SC का काम नहीं है. हम इतिहास नहीं बना सकते: जस्टिस गांगुली

क्विंट हिंदी
भारत
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अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का 1,045 पन्नों का फैसला असल में दो दस्तावेजों से बना है.
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अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का 1,045 पन्नों का फैसला असल में दो दस्तावेजों से बना है.
(फोटो: क्विंट हिंदी)

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रिटायर्ड जस्टिस अशोक कुमार गांगुली का कहना है कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से उनके दिमाग में संशय पैदा हो गया है और वे बेहद व्यथित महसूस कर रहे हैं. जस्टिस गांगुली सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो चुके हैं.

उन्होंने ही 2012 में 2G स्पैक्ट्रम के मामले में फैसला दिया था. जिसपर बीजेपी के नेतृत्व में फिलहाल सत्ता पर काबिज एनडीए ने उसवक्त बहुत खुशी व्यक्त की थी.

द टेलीग्राफ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने कहा,

<b>अल्पसंख्यकों की पीढ़ियों ने वहां मस्जिद देखी. उसका विध्वंस किया गया. ऊपर से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक, उसपर मंदिर बनाया जा रहा है. इससे मेरे दिमाग में संशय पैदा हुआ है.... संविधान के एक छात्र के तौर पर मेरे लिए यह इसे मानना मुश्किल है.</b>
जस्टिस अशोक कुमार गांगुली

उन्होंने इस बात पर ध्यान केंद्रित करवाया कि कैसे शनिवार को आए फैसले में कहा गया कि अगर किसी जगह नमाज पढ़ी जाती है तो किसी उपासक का इस विश्वास को खारिज नहीं किया जा सकता कि वह जगह मस्जिद है.

चलो 1856-57 में वहां नमाज नहीं पढ़ी जा रही थी, पर 1949 में तो पक्का पढ़ी जा रही थी. इसका सबूत भी है. तो जब हमारा संविधान लागू हुआ, उस वक्त वहां नमाज पढ़ी जा रही थी. अगर किसी जगह नमाज पढ़ी जाती है और उस जगह को मस्जिद माना जाता है तो हमारे संविधान के मौलिक अधिकार, अल्पसंख्यक समुदाय को अपने धर्म की स्वतंत्रता की रक्षा करते हैं- जस्टिस अशोक कुमार गांगुली

जस्टिस गांगुली ने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या अब सुप्रीम कोर्ट सदियों पुराने जमीन के अधिकार पर फैसला देगा. क्या सुप्रीम कोर्ट अब यह भूल गया है कि वहां बहुत लंबे वक्त तक मस्जिद थी. जब संविधान लागू हुआ, तब वहां मस्जिद थी.

संविधान से पहले वहां क्या था, यह बताना SC की जिम्मेदारी नहीं: गांगुली

‘’संविधान लागू होने के पहले वहां क्या था, यह संविधान की जिम्मेदारी नहीं है, क्योंकि तब भारतीय गणराज्य नहीं था. फिर जहां मस्जिद थी वहां एक मंदिर था, एक बुद्ध स्तूप था, एक चर्च था... अगर हम ऐसे फैसले करने बैठ जाएं तो बहुत बड़ी संख्या में मंदिर, मस्जिद और दूसरे ढांचों को गिराना पड़ेगा. हम पौराणिक ‘’तथ्यों’’ में नहीं जा सकते. आखिर राम कौन हैं? यह आस्था और विश्वास का मामला है. क्या यहां कोई ऐसी स्थिति है, जिसे ऐतिहासिक तौर पर साबित किया जा सके.’’
अशोक कुमार गांगुली

गांगुली ने आगे कहा, ‘वे कह रहे हैं कि मस्जिद के नीचे कई ढांचे थे. लेकिन यह ढांचे मंदिर नहीं थे. क्या कोई यह कह सकता है कि एक मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनाई गई. पर अब आप एक मस्जिद को गिराकर उसपर मंदिर बना रहे हैं.’

हम इतिहास को दोबारा नहीं बना सकते?

कौन 500 साल पहले जमीन का मालिक था. क्यो कोई जानता है? हम इतिहास को दोबारा नहीं बना सकते. कोर्ट की जिम्मेदारी है कि जो भी जमीन पर है, उसका संरक्षण किया जाए. इतिहास को दोबारा बनाना कोर्ट की जिम्मेदारी नहीं है. वहां 500 साल पहले क्या था, यह जानना कोर्ट का काम नहीं है. मस्जिद का वहां होना सीधे एक तर्क था, न कि ऐतिहासिक तर्क. इसका गिराया जाना सभी ने देखा.
अशोक कुमार गांगुली

जस्टिस गांगुली के मुताबिक यह होता आदर्श फैसला...

जब जस्टिस गांगुली से सवाल किया गया कि उनके मुताबिक सही फैसला क्या होता. तो उन्होंने कहा, ‘मैं दो में से कोई एक फैसला लेता. या तो मैं उस इलाके में मस्जिद को दोबारा बनाए जाने को कहता. या फिर, अगर वह जगह विवादित रहती, तो मैं वहां न मस्जिद बनने देता, न मंदिर.. आप वहां कोई हॉस्पिटल या कॉलेज बना सकते हैं. किसी दूसरे इलाके में मस्जिद या मंदिर बनाइए.’

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Published: 10 Nov 2019,10:55 AM IST

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