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नाम से लेकर महीने की तनख्वाह, जाति, लिंग और पूरा पता, कर्नाटक (Karnataka) का धर्म परिवर्तन विरोधी बिल उन सभी लोगों के पर्सनल डेटा को इकट्ठा करने का इरादा रखता है, जो अपने धर्म बदलेंगे. चाहे गैरकानूनी तरीके से या कानूनी तरीके से.
यह डेटा सार्वजनिक तौर से प्रदर्शित किया जाएगा. बिल के ड्राफ्ट को समझने के बाद द क्विंट को यह पता चला है.
ऐसा इसके बावजूद किया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश के ऐसे ही एक बिल को 2012 में राज्य के हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था और कहा था, “कि किसी व्यक्ति की आस्था या धर्म उसके लिए बहुत व्यक्तिगत मामला होता है.”
इस बिल को कर्नाटक सरकार की कैबिनेट ने सोमवार 20 दिसंबर को मंजूर किया है.
इससे पहले कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने तीन विवादास्पद चर्च सर्वे कराने का आदेश दिया था. इसमें चर्चों और ईसाई पादरियों को वर्गीकृत करने के लिए इंटेलिजेंस कलेक्शन करना भी शामिल था. फिर बेंगलुरू के अल्पसंख्यक समुदाय के मुख्य धार्मिक नेताओं, जिनमें आर्कबिशप पीटर मचाडो शामिल हैं, ने सर्वे का विरोध किया और इसे असंवैधानिक बताया.
इस ड्राफ्ट बिल का नाम है, कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण बिल, 2021. इसके अनुसार, जो लोग धर्म परिवर्तन करते हैं, उन्हें दो फॉर्म्स भरने होंगे- एक धर्म बदलने से पहले, और दूसरा धर्म बदलने के बाद. इन फॉर्म्स को जिला मेजिस्ट्रेट को सौंपा जाएगा. इन फॉर्म्स में नाम, उम्र, लिंग, जाति और पता लिखना होगा. धर्म बदलने वाले व्यक्ति के माता-पिता और उस पर आश्रित रहने वाले लोगों की जानकारी भी फॉर्म में देनी होगी.
बिल आवेदक से यह भी अपेक्षा करता है कि वह अपनी वैवाहिक स्थिति और अपना पूरा पता लिखें- इसमें घर, वॉर्ड नंबर, मोहल्ला, गांव, ताल्लुका और जिला शामिल है. साथ ही यह भी लिखना होगा कि “धर्म बदलने वाला आयोजन” किस जगह होने वाला है या किस जगह हुआ था. धर्म परिवर्तन की तारीख और यह काम करने वाले ‘प्रीस्ट’ का नाम भी लिखना होगा.
धर्म बदलने में मदद करने वाले व्यक्ति को भी ऐसा ही फॉर्म भरना होगा. उसे धर्म बदलने की इच्छा रखने वाले लोगों के व्यक्तिगत विवरण देने होंगे.
हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने ऐसे अनाधिकृत तरीके से व्यक्तिगत जानकारी जमा करने की कोशिश को खारिज कर दिया था. उसने कहा था कि "हमारा विचार है कि अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलता है और तथाकथित पूर्वाग्रह से प्रभावित पक्षों को नोटिस जारी किया जाता है, तो इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि धर्म बदलने वाला व्यक्ति शारीरिक और मनोवैज्ञानिक यातना का शिकार होगा."
फिर भी कर्नाटक का बिल कहता है कि धर्म बदलने वाले व्यक्ति ने जो जानकारी दी है, वह लोक, कल्याण विभाग और पुलिस की जांच के दायरे में आ सकती है.
बिल के अनुसार, सारी जानकारी पहले जिला मेजिस्ट्रेट और तहसीलदार सहित राजस्व अधिकारियों के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित की जाएगी. अब चूंकि सार्वजनिक नोटिस लगा होगा तो धर्म परिवर्तन पर कोई भी ऐतराज कर सकता है.
अगर अधिकारी यह कहते हैं कि धर्म परिवर्तन नए कानून के तहत गैरकानूनी है तो यह मामला पुलिस के सुपुर्द हो सकता है.
बिल उन लोगों पर भी कड़ाई बरतता है जिन्होंने 'कानूनी रूप से' धर्म बदला है क्योंकि यह जिला मजिस्ट्रेट को धर्म परिवर्तन के बारे में "संबंधित अधिकारियों" को "आधिकारिक अधिसूचना" जारी करने की इजाजत देता है. यानी नौकरी देने वालों, एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस के प्रिंसिपल्स या हेड्स और राजस्व एवं कल्याण विभागों के अधिकारियों को धर्म परिवर्तन की सूचना एक नोटिस के जरिए दी जाएगी.
बिल में निर्धारित है कि अगर फॉर्म जमा करने से इनकार किया जाता है तो एक से पांच साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है.
इसके मद्देनजर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को याद किया जाना चाहिए जिसमें कहा गया था कि नोटिस जारी करने से “सांप्रदायिक झड़प” हो सकती है. अदालत ने कहा, "वास्तव में इससे भानुमती का पिटारा खुल सकता है और एक बार नोटिस जारी होने के बाद यह दो प्रतिद्वंद्वी धार्मिक संगठनों और समूहों के बीच संघर्ष का कारण बन सकता है."
इस बीच कर्नाटक के कई चर्चों ने संकेत दिया है कि अगर यह बिल कर्नाटक विधानसभा में पारित हो जाता है तो वे इसे चुनौती दे सकते हैं.
द क्विंट से बात करते हुए, एक वरिष्ठ ईसाई धर्मगुरु ने कहा, “हम बिल की निंदा करते हैं और अगर यह एक कानून बन जाता है तो हम इसे अदालत में चुनौती देंगे.”
उम्मीद है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विधानसभा में इस बिल को पेश करने का विरोध करेगी. कर्नाटक में वह विपक्ष में है. द क्विंट से बात करते हुए कांग्रेस विधायक प्रियांक खड़गे ने कहा कि पार्टी बिल का विरोध करेगी क्योंकि यह “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है जो अपने धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार सुनिश्चित करता है.”
खड़गे ने कहा कि राज्य में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए इस बिल का इस्तेमाल किया जा सकता है.
(वकाशा सचदेव के इनपुट्स के साथ)
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