Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कर्नाटक का धर्म परिवर्तन विरोधी बिल- पर्सनल डेटा नहीं दिया तो हो सकती है जेल

कर्नाटक का धर्म परिवर्तन विरोधी बिल- पर्सनल डेटा नहीं दिया तो हो सकती है जेल

हिमाचल प्रदेश के ऐसे ही एक बिल को 2012 में राज्य के हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था

निखिला हेनरी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>कर्नाटक का धर्म परिवर्तन विरोधी बिल- पर्सनल डेटा नहीं दिया तो हो सकती है जेल</p></div>
i

कर्नाटक का धर्म परिवर्तन विरोधी बिल- पर्सनल डेटा नहीं दिया तो हो सकती है जेल

(फोटो- द क्विंट)

advertisement

नाम से लेकर महीने की तनख्वाह, जाति, लिंग और पूरा पता, कर्नाटक (Karnataka) का धर्म परिवर्तन विरोधी बिल उन सभी लोगों के पर्सनल डेटा को इकट्ठा करने का इरादा रखता है, जो अपने धर्म बदलेंगे. चाहे गैरकानूनी तरीके से या कानूनी तरीके से.

यह डेटा सार्वजनिक तौर से प्रदर्शित किया जाएगा. बिल के ड्राफ्ट को समझने के बाद द क्विंट को यह पता चला है.

ऐसा इसके बावजूद किया जा रहा है कि हिमाचल प्रदेश के ऐसे ही एक बिल को 2012 में राज्य के हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था और कहा था, “कि किसी व्यक्ति की आस्था या धर्म उसके लिए बहुत व्यक्तिगत मामला होता है.”

इस बिल को कर्नाटक सरकार की कैबिनेट ने सोमवार 20 दिसंबर को मंजूर किया है.

इससे पहले कर्नाटक की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने तीन विवादास्पद चर्च सर्वे कराने का आदेश दिया था. इसमें चर्चों और ईसाई पादरियों को वर्गीकृत करने के लिए इंटेलिजेंस कलेक्शन करना भी शामिल था. फिर बेंगलुरू के अल्पसंख्यक समुदाय के मुख्य धार्मिक नेताओं, जिनमें आर्कबिशप पीटर मचाडो शामिल हैं, ने सर्वे का विरोध किया और इसे असंवैधानिक बताया.

कौन से पर्सनल डीटेल्स जमा किए जाएंगे

इस ड्राफ्ट बिल का नाम है, कर्नाटक धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का संरक्षण बिल, 2021. इसके अनुसार, जो लोग धर्म परिवर्तन करते हैं, उन्हें दो फॉर्म्स भरने होंगे- एक धर्म बदलने से पहले, और दूसरा धर्म बदलने के बाद. इन फॉर्म्स को जिला मेजिस्ट्रेट को सौंपा जाएगा. इन फॉर्म्स में नाम, उम्र, लिंग, जाति और पता लिखना होगा. धर्म बदलने वाले व्यक्ति के माता-पिता और उस पर आश्रित रहने वाले लोगों की जानकारी भी फॉर्म में देनी होगी.

बिल में यह निर्धारित किया गया है कि नाबालिग, जोकि आश्रित हैं, के नामों की सूची अलग से दी जाएगी. नाबालिग के अभिभावक के नाम और पते का विवरण भी देना होगा. इसका मतलब यह है कि यह उन लोगों पर लागू होगा जिनके नाबालिग बच्चे हैं जो उन पर निर्भर हैं.

बिल आवेदक से यह भी अपेक्षा करता है कि वह अपनी वैवाहिक स्थिति और अपना पूरा पता लिखें- इसमें घर, वॉर्ड नंबर, मोहल्ला, गांव, ताल्लुका और जिला शामिल है. साथ ही यह भी लिखना होगा कि “धर्म बदलने वाला आयोजन” किस जगह होने वाला है या किस जगह हुआ था. धर्म परिवर्तन की तारीख और यह काम करने वाले ‘प्रीस्ट’ का नाम भी लिखना होगा.

धर्म बदलने में मदद करने वाले व्यक्ति को भी ऐसा ही फॉर्म भरना होगा. उसे धर्म बदलने की इच्छा रखने वाले लोगों के व्यक्तिगत विवरण देने होंगे.

बिल कहता है कि इन फॉर्म्स के साथ पहचान पत्र या आधार कार्ड की कॉपी लगानी होगी और फिर यह फॉर्म जमा करना होगा.

हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने ऐसे अनाधिकृत तरीके से व्यक्तिगत जानकारी जमा करने की कोशिश को खारिज कर दिया था. उसने कहा था कि "हमारा विचार है कि अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म बदलता है और तथाकथित पूर्वाग्रह से प्रभावित पक्षों को नोटिस जारी किया जाता है, तो इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता कि धर्म बदलने वाला व्यक्ति शारीरिक और मनोवैज्ञानिक यातना का शिकार होगा."

फिर भी कर्नाटक का बिल कहता है कि धर्म बदलने वाले व्यक्ति ने जो जानकारी दी है, वह लोक, कल्याण विभाग और पुलिस की जांच के दायरे में आ सकती है.

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

इस विवरण की जांच कैसे की जाएगी

बिल के अनुसार, सारी जानकारी पहले जिला मेजिस्ट्रेट और तहसीलदार सहित राजस्व अधिकारियों के नोटिस बोर्ड पर प्रदर्शित की जाएगी. अब चूंकि सार्वजनिक नोटिस लगा होगा तो धर्म परिवर्तन पर कोई भी ऐतराज कर सकता है.

इसके अलावा बिल जिला राजस्व और समाज कल्याण, पिछड़ा वर्ग कल्याण और अल्पसंख्यक कल्याण विभागों के लिए यह अनिवार्य करता है कि उन्हें धर्म बदलने के पीछे के “असली इरादों, उद्देश्यों और वजहों” की जांच करनी होगी.

अगर अधिकारी यह कहते हैं कि धर्म परिवर्तन नए कानून के तहत गैरकानूनी है तो यह मामला पुलिस के सुपुर्द हो सकता है.

बिल उन लोगों पर भी कड़ाई बरतता है जिन्होंने 'कानूनी रूप से' धर्म बदला है क्योंकि यह जिला मजिस्ट्रेट को धर्म परिवर्तन के बारे में "संबंधित अधिकारियों" को "आधिकारिक अधिसूचना" जारी करने की इजाजत देता है. यानी नौकरी देने वालों, एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस के प्रिंसिपल्स या हेड्स और राजस्व एवं कल्याण विभागों के अधिकारियों को धर्म परिवर्तन की सूचना एक नोटिस के जरिए दी जाएगी.

बिल के तहत किसी भी शख्स को विवरण न देने की छूट नहीं है, क्योंकि अगर कोई धर्म परिवर्तन के बारे में जानकारी नहीं देता तो वह अपराधी घोषित कर दिया जाएगा.

बिल में निर्धारित है कि अगर फॉर्म जमा करने से इनकार किया जाता है तो एक से पांच साल तक की जेल हो सकती है और जुर्माना भरना पड़ सकता है.

इसके मद्देनजर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के फैसले को याद किया जाना चाहिए जिसमें कहा गया था कि नोटिस जारी करने से “सांप्रदायिक झड़प” हो सकती है. अदालत ने कहा, "वास्तव में इससे भानुमती का पिटारा खुल सकता है और एक बार नोटिस जारी होने के बाद यह दो प्रतिद्वंद्वी धार्मिक संगठनों और समूहों के बीच संघर्ष का कारण बन सकता है."

ईसाई गुट बिल को चुनौती देंगे?

इस बीच कर्नाटक के कई चर्चों ने संकेत दिया है कि अगर यह बिल कर्नाटक विधानसभा में पारित हो जाता है तो वे इसे चुनौती दे सकते हैं.

द क्विंट से बात करते हुए, एक वरिष्ठ ईसाई धर्मगुरु ने कहा, “हम बिल की निंदा करते हैं और अगर यह एक कानून बन जाता है तो हम इसे अदालत में चुनौती देंगे.”

हिमाचल प्रदेश में भारत की इवेंजेलिकल फैलोशिप ने धर्म परिवर्तन विरोधी कानून और डेटा कलेक्शन की इजाजत देने वाले क्लॉजेज को चुनौती दी थी.

उम्मीद है कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस विधानसभा में इस बिल को पेश करने का विरोध करेगी. कर्नाटक में वह विपक्ष में है. द क्विंट से बात करते हुए कांग्रेस विधायक प्रियांक खड़गे ने कहा कि पार्टी बिल का विरोध करेगी क्योंकि यह “भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करता है जो अपने धर्म का पालन करने और उसका प्रचार करने का अधिकार सुनिश्चित करता है.”

खड़गे ने कहा कि राज्य में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए इस बिल का इस्तेमाल किया जा सकता है.

(वकाशा सचदेव के इनपुट्स के साथ)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: undefined

ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT