मेंबर्स के लिए
lock close icon
Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कर्नाटक कांग्रेस की राज्यसभा में शानदार जीत लेकिन पार्टी के लिए चुनौतियां बरकरार

कर्नाटक कांग्रेस की राज्यसभा में शानदार जीत लेकिन पार्टी के लिए चुनौतियां बरकरार

Karnataka Politics: जानकारों का कहना है कि विधायकों को बांधे रखने का श्रेय सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम शिवकुमार को जाता है.

मीनाक्षी शशि कुमार
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>राज्यसभा चुनाव में कर्नाटक कांग्रेस की शानदार जीत के बाद पार्टी के लिए चुनौतियां बरकरार</p></div>
i

राज्यसभा चुनाव में कर्नाटक कांग्रेस की शानदार जीत के बाद पार्टी के लिए चुनौतियां बरकरार

फोटो- क्विंट हिंदी 

advertisement

लोकसभा चुनावों से पहले कर्नाटक (Karnataka) की कांग्रेस सरकार (Congress Govt) को नई और पुरानी दोनों चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. बेंगलुरु के लोकप्रिय रामेश्वरम कैफे में संदिग्ध आईईडी विस्फोट और राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के एक नेता की जीत के बाद कथित तौर पर 'पाकिस्तान के समर्थन' नारे लगाने के बाद पार्टी गहमा-गहमी से गुजर रही है. इन मुद्दों पर विपक्षी बीजेपी और जेडी (एस) ने कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.

बीजेपी ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से हालिया दो घटनाओं के बाद उनके इस्तीफे की मांग की है और इसके लिए कांग्रेस सरकार पर 'तुष्टिकरण की राजनीति' का आरोप लगाया है.

कर्नाटक के पूर्व सीएम बसवराज बोम्मई ने 1 मार्च को 'एक्स' पर एक पोस्ट में लिखा, "राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद गैंग्स की गतिविधियां बढ़ रही हैं और राज्य सरकार के रवैये की वजह से भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं."

ऐसे नैरेटिव को वोटर्स पर क्या असर होगा ये अभी देखना बाकी है. लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों ने द क्विंट को बताया कि राज्य में कांग्रेस और अल्पसंख्यकों पर बीजेपी का हमलावर होना कर्नाटक में पैर जमाने की उसकी रणनीति का एक हिस्सा हैं. बीजेपी ने कर्नाटक में ऐतिहासिक रूप से लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है.

ये इसलिए भी खास है क्योंकि सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के नेतृत्व में कांग्रेस ने 27 फरवरी को हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों के दौरान अपने विधायकों को एकजुट रखने में कामयाब हुए हैं. कर्नाटक राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को 4 में से 3 सीटें मिलीं. इस चुनाव में ही बीजेपी के एक विधायक ने कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार के लिए क्रॉस वोटिंग की थी.

तो सवाल ये है कि राज्यसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस के लिए क्या कारगर रहा, वो भी ऐसे वक्त में जब पार्टी को हिमाचल प्रदेश में बहुमत होने के बावजूद इकलौती राज्यसभा सीट गंवानी पड़ी. इसलिए सवाल ये भी है कि कर्नाटक में बीजेपी के लिए बात कहां बिगड़ी?

एक सवाल ये भी है कि बीजेपी-जेडीएस के आक्रमक तेवर के सामने लोकसभा चुनावों में सिद्धारमैया और शिवकुमार अपना प्रदर्शन बरकरार रख पाएंगे?

ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

राज्यसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस ने जीत अपने पाले में कैसे की?

कर्नाटक राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय माकन, जीसी चंद्रशेखर और सैयद नसीर हुसैन ने जीत दर्ज की है, जबकि चौथी सीट पर बीजेपी के नारायण के भांडगे ने जीत दर्ज की है. जेडी (एस) के डी कुपेंद्र रेड्डी ने भी चुनाव लड़ा लेकिन हार गए.

कांग्रेस के अहम दांव क्या रहे?

  • बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री एसटी सोमशेखर ने कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की. 

  • बीजेपी विधायक शिवराम हेब्बार मतदान में शामिल नहीं हुए. 

  • बीजेपी के पूर्व मंत्री जी जनार्दन रेड्डी सहित चार निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन किया.

  • कर्नाटक कांग्रेस अपने विधायकों को संभालने में कामयाब रही क्योंकि पार्टी के एक भी विधायक ने क्रॉस वोटिंग नहीं की थी. जबकि हिमाचल प्रदेश में छह कांग्रेस विधायकों ने बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की.

तो कर्नाटक में क्या कारगर रहा?

वरिष्ठ पत्रकार नहीद अटौला बताती हैं, ''कांग्रेस के पास तीन सीटों पर चुनाव जीतने के लिए संख्याबल थी लेकिन चूंकि जेडी (एस) ने अपना उम्मीदवार उतारा था, इसलिए उन्हें क्रॉस वोटिंग होने का अंदेशा था.''

वह कहती हैं कि कांग्रेस विधायकों को चुनाव से एक दिन पहले एक होटल में ले जाया गया, उन्हें वोट कैसे देना है और किसे वोट देना है, इस पर मॉक सेशन दिया गया और वोट के दिन, उन्हें एक बस में विधानसभा ले जाया गया.

वहीं, आलाकमान इन विधायकों को खुश रखने के लिए एक महीने या उससे भी ज्यादा वक्त से कोशिश कर रही थी.

द क्विंट से बात करते हुए, बेंगलुरु के इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज में रामकृष्ण हेगड़े चेयर प्रोफेसर चंदन गौड़ा ने बताया..

"चुनाव से पहले कांग्रेस के कई विधायकों को सरकार के कई बोर्डों और निगमों के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है. उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों में काम के लिए फंड देने का भी वादा किया गया है. इसलिए हो सकता है कि ये पार्टी के पक्ष में काम कर गए हों."

अटौला कहती हैं कि पार्टी से अयोग्य करार दिए जाने के डर ने विधायकों को क्रॉस वोटिंग से परहेज करने के लिए प्रेरित किया होगा.

उन्होंने कहा, "कांग्रेस विधायकों के पास अभी चार साल का समय है. यदि वे क्रॉस वोटिंग करते हैं, तो उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. वे उन चार सालों को गंवाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं. उनमें से कुछ मंत्री बनने और कुछ किसी तरह का पद संभालने की ख्वाहिश रखते हैं."

मांड्या से कांग्रेस विधायक रवि गनीगा ने जेडी (एस) उम्मीदवार कुपेंद्र रेड्डी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उन्होंने निर्दलीय विधायकों लता मल्लिकार्जुन, पुट्टास्वामी गौड़ा और दर्शन पुत्तनैया को अपने पक्ष में वोट डालने के लिए रिश्वत देने का आरोप लगाया.

अटौला कहती हैं, "इससे यह धारणा बनी होगी कि बीजेपी-जेडी (एस) गठबंधन सीट जीतने के लिए बेचैन थी."

वहीं राजनीतिक विश्लेषक माधवन नारायणन कहते हैं, "उत्तर भारत के औसत विधायक या सांसद की तुलना में कर्नाटक का औसत विधायक या सांसद लोगों के प्रति अधिक जवाबदेह है. इसलिए, दलबदल की बहुत अधिक जांच की जाएगी."

सोमशेखर के क्रॉस वोटिंग और शिवराम हेब्बार के वोटिंग से दूर रहने के बारे में जानकारों का कहना है कि दोनों नेता कुछ समय से कांग्रेस नेतृत्व के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे हैं.

प्रो. चंदन गौड़ा कहते हैं, "हेब्बार और सोमशेखर दोनों कांग्रेस में शामिल होने के लिए प्रयास कर रहे हैं. सोमशेखर नियमित रूप से कांग्रेस के कार्यक्रमों में नजर आते हैं. दोनों कुछ समय से बीजेपी के खिलाफ बगावत कर रहे हैं."

सोमशेखर यशवंतपुरा से बीजेपी के विधायक हैं जबकि हेब्बार येल्लापुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. दोनों को राज्यसभा चुनाव के बाद पार्टी ने नोटिस दिया था. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका काफी श्रेय सिद्धारमैया और शिवकुमार को भी जाता है.

माधवन नारायणन, "सिद्धारमैया और शिवकुमार की जोड़ी उनके मतभेदों के बावजूद बहुत मजबूत है. सिद्धारमैया जानते हैं कि चीजों के लोकलुभावन पक्ष को कैसे संभालना है और शिवकुमार जानते हैं कि संगठनात्मक और वित्तीय पक्षों का प्रबंधन कैसे करना है."

सिद्धारमैया को कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों का समर्थन हासिल है, जबकि शिवकुमार को आमतौर पर पार्टी द्वारा " समस्याओं को ठीक करने" के लिए तैनात किया जाता है. यहां तक कि जब सरकार राज्यसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद अस्थिरता का सामना कर रही थी, तब उन्हें हिमाचल प्रदेश भी भेजा गया था.

क्या कांग्रेस इस तालमेल को लोकसभा चुनाव में बनाए रख सकती है?

इन फैक्टर पर नजर डालें:

  • बीजेपी ने पिछले दो दशकों से कर्नाटक में ऐतिहासिक रूप से ज्यादातर लोकसभा सीटें जीती हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि राज्य विधानसभा में कौन सत्ता में रहा है.

  • राम मंदिर और मोदी फैक्टर

  • रामेश्वरम कैफे विस्फोट और कथित तौर पर 'पाकिस्तान समर्थक नारेबाजी' विवाद के मद्देनजर प्रदेश बीजेपी और जेडी (एस) कांग्रेस के खिलाफ हमलावर है.

प्रोफेसर चंदन गौड़ा कहते हैं...

"राज्यसभा और लोकसभा चुनाव दो अलग-अलग प्रक्रिया है. कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवारों में से तीन की सहज जीत ने अपने नेताओं के बीच एक दृढ़ प्रयास दिखाया, लेकिन क्या लोकसभा चुनावों के दौरान भी ऐसा होगा, यह देखा जाना बाकी है."

राजनीतिक विश्लेषक माधवन नारायणन कहते हैं, "बीजेपी लोकसभा में अपने मौजूदा बहुमत को पार करने के लिए इतनी उत्सुक है कि वह अतिरिक्त प्रयास कर रही है. यदि धारणाओं पर गौर किया जाए, तो पार्टी मोदी और राम मंदिर फैक्टर की वजह से काफी अजेय दिखती है और लोग जीतने वाले पक्ष की ओर खड़े दिखना चाहते हैं."

हालांकि, माधवन नारायणन कहते हैं कि यह धारणा दक्षिण की तुलना में उत्तर भारत में ज्यादा है. इसलिए कर्नाटक, जहां पार्टी की अच्छी दखल है, लोकसभा में जरूरी आंकड़ा हासिल करने के लिए अहम है. जेडी (एस) के साथ इसका नवगठित गठबंधन इसके लिए एक तरह का वसीयतनामा ही है.

माधवन कहते हैं, "लेकिन कर्नाटक में भी बीजेपी को संघर्ष करना पड़ा है. ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां मतदाता बहुत ज्यादा जागरूक हैं और उनकी मांगें काफी ज्यादा हैं."

उन्होंने आगे कहा कि हालांकि चुनावी सर्वे में आंका गया है कि लोकसभा चुनावों में बीजेपी को कर्नाटक में बहुमत मिलेगा. वह कहते हैं, "अगर पिछले साल सिद्धारमैया द्वारा कार्यक्रमों और गारंटी को सही तरीके से लागू किया गया तो सत्ता विरोधी लहर की कम होगी."

यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि 2019 में राज्य में लोकसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन चरम पर था. बीजेपी ने अकेले 28 में से 25 सीटें जीत ली थी. मूड ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक, इस बार जेडीएस के साथ उसे 24 सीटें मिलने की संभावना है. कांग्रेस को फायदा होने की संभावना है, लेकिन यह कितना बड़ा लाभ होगा यह राज्य में नेतृत्व पर निर्भर करेगा.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

अनलॉक करने के लिए मेंबर बनें
  • साइट पर सभी पेड कंटेंट का एक्सेस
  • क्विंट पर बिना ऐड के सबकुछ पढ़ें
  • स्पेशल प्रोजेक्ट का सबसे पहला प्रीव्यू
आगे बढ़ें

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT