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लोकसभा चुनावों से पहले कर्नाटक (Karnataka) की कांग्रेस सरकार (Congress Govt) को नई और पुरानी दोनों चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. बेंगलुरु के लोकप्रिय रामेश्वरम कैफे में संदिग्ध आईईडी विस्फोट और राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के एक नेता की जीत के बाद कथित तौर पर 'पाकिस्तान के समर्थन' नारे लगाने के बाद पार्टी गहमा-गहमी से गुजर रही है. इन मुद्दों पर विपक्षी बीजेपी और जेडी (एस) ने कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है.
कर्नाटक के पूर्व सीएम बसवराज बोम्मई ने 1 मार्च को 'एक्स' पर एक पोस्ट में लिखा, "राज्य में कांग्रेस की सरकार आने के बाद गैंग्स की गतिविधियां बढ़ रही हैं और राज्य सरकार के रवैये की वजह से भी ऐसी घटनाएं हो रही हैं."
ऐसे नैरेटिव को वोटर्स पर क्या असर होगा ये अभी देखना बाकी है. लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों ने द क्विंट को बताया कि राज्य में कांग्रेस और अल्पसंख्यकों पर बीजेपी का हमलावर होना कर्नाटक में पैर जमाने की उसकी रणनीति का एक हिस्सा हैं. बीजेपी ने कर्नाटक में ऐतिहासिक रूप से लोकसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है.
ये इसलिए भी खास है क्योंकि सीएम सिद्धारमैया और डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के नेतृत्व में कांग्रेस ने 27 फरवरी को हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों के दौरान अपने विधायकों को एकजुट रखने में कामयाब हुए हैं. कर्नाटक राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस को 4 में से 3 सीटें मिलीं. इस चुनाव में ही बीजेपी के एक विधायक ने कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवार के लिए क्रॉस वोटिंग की थी.
तो सवाल ये है कि राज्यसभा चुनाव में कर्नाटक में कांग्रेस के लिए क्या कारगर रहा, वो भी ऐसे वक्त में जब पार्टी को हिमाचल प्रदेश में बहुमत होने के बावजूद इकलौती राज्यसभा सीट गंवानी पड़ी. इसलिए सवाल ये भी है कि कर्नाटक में बीजेपी के लिए बात कहां बिगड़ी?
एक सवाल ये भी है कि बीजेपी-जेडीएस के आक्रमक तेवर के सामने लोकसभा चुनावों में सिद्धारमैया और शिवकुमार अपना प्रदर्शन बरकरार रख पाएंगे?
कर्नाटक राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस के अजय माकन, जीसी चंद्रशेखर और सैयद नसीर हुसैन ने जीत दर्ज की है, जबकि चौथी सीट पर बीजेपी के नारायण के भांडगे ने जीत दर्ज की है. जेडी (एस) के डी कुपेंद्र रेड्डी ने भी चुनाव लड़ा लेकिन हार गए.
कांग्रेस के अहम दांव क्या रहे?
बीजेपी विधायक और पूर्व मंत्री एसटी सोमशेखर ने कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की.
बीजेपी विधायक शिवराम हेब्बार मतदान में शामिल नहीं हुए.
बीजेपी के पूर्व मंत्री जी जनार्दन रेड्डी सहित चार निर्दलीय विधायकों ने कांग्रेस उम्मीदवारों का समर्थन किया.
कर्नाटक कांग्रेस अपने विधायकों को संभालने में कामयाब रही क्योंकि पार्टी के एक भी विधायक ने क्रॉस वोटिंग नहीं की थी. जबकि हिमाचल प्रदेश में छह कांग्रेस विधायकों ने बीजेपी उम्मीदवार हर्ष महाजन के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की.
तो कर्नाटक में क्या कारगर रहा?
वरिष्ठ पत्रकार नहीद अटौला बताती हैं, ''कांग्रेस के पास तीन सीटों पर चुनाव जीतने के लिए संख्याबल थी लेकिन चूंकि जेडी (एस) ने अपना उम्मीदवार उतारा था, इसलिए उन्हें क्रॉस वोटिंग होने का अंदेशा था.''
वह कहती हैं कि कांग्रेस विधायकों को चुनाव से एक दिन पहले एक होटल में ले जाया गया, उन्हें वोट कैसे देना है और किसे वोट देना है, इस पर मॉक सेशन दिया गया और वोट के दिन, उन्हें एक बस में विधानसभा ले जाया गया.
वहीं, आलाकमान इन विधायकों को खुश रखने के लिए एक महीने या उससे भी ज्यादा वक्त से कोशिश कर रही थी.
द क्विंट से बात करते हुए, बेंगलुरु के इंस्टीट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज में रामकृष्ण हेगड़े चेयर प्रोफेसर चंदन गौड़ा ने बताया..
अटौला कहती हैं कि पार्टी से अयोग्य करार दिए जाने के डर ने विधायकों को क्रॉस वोटिंग से परहेज करने के लिए प्रेरित किया होगा.
उन्होंने कहा, "कांग्रेस विधायकों के पास अभी चार साल का समय है. यदि वे क्रॉस वोटिंग करते हैं, तो उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा. वे उन चार सालों को गंवाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं. उनमें से कुछ मंत्री बनने और कुछ किसी तरह का पद संभालने की ख्वाहिश रखते हैं."
अटौला कहती हैं, "इससे यह धारणा बनी होगी कि बीजेपी-जेडी (एस) गठबंधन सीट जीतने के लिए बेचैन थी."
वहीं राजनीतिक विश्लेषक माधवन नारायणन कहते हैं, "उत्तर भारत के औसत विधायक या सांसद की तुलना में कर्नाटक का औसत विधायक या सांसद लोगों के प्रति अधिक जवाबदेह है. इसलिए, दलबदल की बहुत अधिक जांच की जाएगी."
सोमशेखर के क्रॉस वोटिंग और शिवराम हेब्बार के वोटिंग से दूर रहने के बारे में जानकारों का कहना है कि दोनों नेता कुछ समय से कांग्रेस नेतृत्व के साथ नजदीकियां बढ़ा रहे हैं.
सोमशेखर यशवंतपुरा से बीजेपी के विधायक हैं जबकि हेब्बार येल्लापुर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं. दोनों को राज्यसभा चुनाव के बाद पार्टी ने नोटिस दिया था. विशेषज्ञों का कहना है कि इसका काफी श्रेय सिद्धारमैया और शिवकुमार को भी जाता है.
माधवन नारायणन, "सिद्धारमैया और शिवकुमार की जोड़ी उनके मतभेदों के बावजूद बहुत मजबूत है. सिद्धारमैया जानते हैं कि चीजों के लोकलुभावन पक्ष को कैसे संभालना है और शिवकुमार जानते हैं कि संगठनात्मक और वित्तीय पक्षों का प्रबंधन कैसे करना है."
सिद्धारमैया को कर्नाटक में कांग्रेस विधायकों का समर्थन हासिल है, जबकि शिवकुमार को आमतौर पर पार्टी द्वारा " समस्याओं को ठीक करने" के लिए तैनात किया जाता है. यहां तक कि जब सरकार राज्यसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन के बाद अस्थिरता का सामना कर रही थी, तब उन्हें हिमाचल प्रदेश भी भेजा गया था.
इन फैक्टर पर नजर डालें:
बीजेपी ने पिछले दो दशकों से कर्नाटक में ऐतिहासिक रूप से ज्यादातर लोकसभा सीटें जीती हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि राज्य विधानसभा में कौन सत्ता में रहा है.
राम मंदिर और मोदी फैक्टर
रामेश्वरम कैफे विस्फोट और कथित तौर पर 'पाकिस्तान समर्थक नारेबाजी' विवाद के मद्देनजर प्रदेश बीजेपी और जेडी (एस) कांग्रेस के खिलाफ हमलावर है.
प्रोफेसर चंदन गौड़ा कहते हैं...
राजनीतिक विश्लेषक माधवन नारायणन कहते हैं, "बीजेपी लोकसभा में अपने मौजूदा बहुमत को पार करने के लिए इतनी उत्सुक है कि वह अतिरिक्त प्रयास कर रही है. यदि धारणाओं पर गौर किया जाए, तो पार्टी मोदी और राम मंदिर फैक्टर की वजह से काफी अजेय दिखती है और लोग जीतने वाले पक्ष की ओर खड़े दिखना चाहते हैं."
हालांकि, माधवन नारायणन कहते हैं कि यह धारणा दक्षिण की तुलना में उत्तर भारत में ज्यादा है. इसलिए कर्नाटक, जहां पार्टी की अच्छी दखल है, लोकसभा में जरूरी आंकड़ा हासिल करने के लिए अहम है. जेडी (एस) के साथ इसका नवगठित गठबंधन इसके लिए एक तरह का वसीयतनामा ही है.
उन्होंने आगे कहा कि हालांकि चुनावी सर्वे में आंका गया है कि लोकसभा चुनावों में बीजेपी को कर्नाटक में बहुमत मिलेगा. वह कहते हैं, "अगर पिछले साल सिद्धारमैया द्वारा कार्यक्रमों और गारंटी को सही तरीके से लागू किया गया तो सत्ता विरोधी लहर की कम होगी."
यह भी ध्यान रखना जरूरी है कि 2019 में राज्य में लोकसभा चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन चरम पर था. बीजेपी ने अकेले 28 में से 25 सीटें जीत ली थी. मूड ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक, इस बार जेडीएस के साथ उसे 24 सीटें मिलने की संभावना है. कांग्रेस को फायदा होने की संभावना है, लेकिन यह कितना बड़ा लाभ होगा यह राज्य में नेतृत्व पर निर्भर करेगा.
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