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कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) ने गुरुवार, 13 अप्रैल को बेंगलुरु-मैसूर एक्सप्रेसवे परियोजना (Bengaluru-Mysuru Expressway Project) के लिए रास्ता देने के लिए 2020 में ध्वस्त किए गए एक स्कूल के पुनर्निर्माण में "उदासीनता" दिखाने पर सरकारी अधिकारियों को फटकार लगाई है. कोर्ट ने कहा कि बच्चों की स्थिति और राज्य सरकार का उदासीन रवैया अंतरात्मा को झकझोंरने वाला है.
पिछले तीन साल से प्राथमिक विद्यालय के छात्र गांव के किसानों द्वारा दिए गए एक छोटे से कमरे में पढ़ रहे हैं. द क्विंट ने छात्रों के संघर्ष को समझने के लिए स्कूल डेवलपमेंट एंड मॉनिटरिंग कमेटी (SDMC) के याचिकाकर्ताओं से बात की.
ध्वस्त कर दिए गए सरकारी स्कूल की फोटो
ध्वस्त कर दिए गए सरकारी स्कूल की फोटो
ध्वस्त किए गए स्कूल के कैंपस में हुए प्रोग्राम की फोटोज
एक कमरे में चलने वाला मौजूदा वक्त का स्कूल
एक कमरे में चलने वाला मौजूदा वक्त का स्कूल
द क्विंट से बात करते हुए अगरालिंगाना हल्ली गांव के SDMC के सदस्य बोम्मे गौड़ा ने कहा कि किसानों ने इस इमारत को कृषि गतिविधियों के लिए बनाया था, यह एक स्कूल नहीं है. लेकिन चूंकि स्कूल नहीं बन रहा था, इसलिए हमने उनसे (ग्रामीणों से) गुजारिश की कि बच्चों की शिक्षा के लिए, हमारी मदद करें. बरसात के दिनों में, इमारत लीक हो जाती है.
सरकारी अधिकारियों ने छात्रों को अपने गांव से करीब 500 मीटर या एक किलोमीटर दूर सरकारी स्कूल में जाने का निर्देश दिया था.
यह संभव क्यों नहीं हो सका, इस पर तर्क देते हुए गौड़ा ने कहा -
याचिका में कहा गया है कि बच्चों के बैठने के लिए बेंच नहीं है. वे कमरे के अंदर और कमरे के बाहर दोनों जगह फर्श पर बैठते हैं.
बेहद जरूरी होने के बावजूद खाना बनाने के लिए कोई जगह नहीं है. लड़के और लड़कियों दोनों के लिए कोई शौचालय नहीं है. इन सुविधाओं के बिना, समिति द्वारा ली गई किराए की इमारत में स्कूल एकमात्र मंशा से चल रहा है कि बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो.
यह देखते हुए कि यह मामला "बच्चों के प्रति राज्य की ओर से उदासीनता" को प्रदर्शित करता है, जस्टिस एम नागप्रसन्ना ने अपने फैसले में कहा
"इस अदालत के समक्ष मुद्दा" सिर्फ एक स्कूल नहीं है, "यह भी एक स्कूल है". यह अदालत राज्य को भारत के संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत बच्चों के मौलिक अधिकार को कम करने की अनुमति नहीं देगा.
भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) द्वारा लगभग 752 वर्ग मीटर जमीन का अधिग्रहण किए जाने के बाद, 66.95 लाख रुपये की मुआवजा राशि स्कूल के प्रधानाध्यापक और SDMC को दी गई थी. ब्याज जोड़कर वह राशि अब 72.40 लाख रुपए है.
सरकारी अधिकारी आगामी चुनावों में व्यस्त रहेंगे, इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने राज्य के अधिकारियों को आदेश दिया है कि वे 1 जून तक जमीन तय कर लें और तारीख के चार महीने के अंदर स्कूल बिल्डिंग का निर्माण करा लें.
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