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इंडिया गेट (India Gate) से राष्ट्रपति भवन तक राजपथ (Rajpath) का नाम कर्तव्य पथ (Kartavya Path) किया जा रहा है. परिवर्तन शाश्वत है. और उसका विरोध भी. लेकिन मुझे लगता है ये नाम बेहतर है. राजपथ यानी जिस पथ से राजा गुजरे. कर्तव्य पथ यानी जो 'राजा' को अपने कर्तव्यों की याद दिलाए. कहते हैं शब्द ब्रह्मा है. हर शब्द में एक सृष्टि है. राजपथ कहते हैं तो राजशाही याद आती है. अंग्रेजी राज आंखों के आगे घूम जाता है. जब नाम कर्तव्य पथ होगा तो क्या देश चला रहे लोगों को कर्तव्यों की याद दिलाएगा?
1911 में देश की राजधानी बंगाल से दिल्ली आई. मौके पर इंग्लैंड के किंग जार्ज पंचम आए. उन्हीं के सम्मान में किंग्सवे नाम पड़ा. आजादी के बाद यही राजपथ बना. विडंबना देखिए राजतंत्र से लोकतंत्र आया लेकिन 'राजशाही' खत्म नहीं हुई. हमारे देश में नेता राजा से कम रहे क्या? राजा से कम हैं क्या? राजपथ के आसपास बने देश की शक्तिपीठ के मठाधीशों के प्रतिष्ठान देख लीजिए और बहराइच, बेतिया या फिर बैतूल के किसी अस्पताल या स्कूल का हाल देख लीजिए. पता चल जाएगा राजा कौन है और रंक कौन?
राजपथ को कर्तव्य पथ करेंगे तो बहुत कुछ और भी करना होगा. नेताओं को शासक नहीं, सर्वेंट बनना होगा. कर पाएंगे? आजतक तो नहीं कर पाए.
जब राजपथ के बाशिंदों ने पब्लिक को लथपथ किया तो उसने इसे अग्निपथ बनाया. हाल फिलहाल ट्रेंड ये रहा है कि संविधान में दिए गए कर्तव्यों के साथ अधिकार पाने के लिए जब पब्लिक राजपथ पर उतरी तो राजपथ वालों ने उन्हें लथपथ किया. कल फिर किसी मुद्दे पर प्रदर्शनकारी कर्तव्य पथ पर लौटे तो क्या उन्हें उनके अधिकार दिए जाएंगे या फिर सिर्फ कर्तव्यों की याद दिलाई जाएगी.
किसी ने कहा है नाम में क्या रखा है, नाम तो मां-बाप ने रखा है. तो माई-बाप लोग नाम रखने के साथ काम भी बदलेंगे? क्योंकि इससे पहले किंग जॉर्ज एवेन्यू रोड का नाम राजाजी मार्ग किया गया.
क्वीन विक्टोरिया रोड को डॉ. राजेंद्र प्रसाद रोड कर दिया गया. प्रिंस एडवर्ड रोड को विजय चौक कर दिया गया. किसकी विजय हुई? किसके हाथ है तरक्की की ट्रॉफी?
सेहत से लेकर शिक्षा तक ये हाल है कि वो अपने हाथों से सिर पीट रहा है. आधी आबादी के हाथ अधिकारों से खाली हैं. रोज 86 रेप हो रहे हैं और जब इन सबके खिलाफ आवाज उठती है तो राजपथ के आसपास रहने वालों को राजद्रोह लगता है
राजपथ को कर्तव्य पथ कह देना और बात है, इसपर चलना और बात है.
नाम बदलिए. साधुवाद. लेकिन बात तब बनेगी जब सिर्फ नाम बदलना मकसद न हो, सूरत भी बदले. कर्तव्य पथ पर यहीं मत रुक जाइएगा. आगे भी जाइएगा.
प्रतीकों की पूजा और कोई काम नहीं दूजा...ये नहीं चलेगा. राजपथ पर रोज आने जाने वालों के कर्म न बदलें तो कर्तव्य पथ का क्या काम? 'कर्तव्य पथ' प्रतीकों की भीड़ में एक और प्रतीक बन कर रह जाएगा. पब्लिक दुखों के अग्निपथ पर लथपथ रहेगी. और शासक कहेंगे देखो हम कर्तव्य पथ पर चलते हैं. ये भ्रम सबसे दुखद होगा.
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