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ममता की राह पर अखिलेश यादव, समझिए SP के नारे 'खदेड़ा होइबे' के पीछे की रणनीति

कैसे नारों और गानों का इस्तेमाल कर स्थानीय मतदाता से बनाया जाता है भावनात्मक संपर्क

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भारत
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<div class="paragraphs"><p>विजय यात्रा के दौरान अखिलेश यादव</p></div>
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विजय यात्रा के दौरान अखिलेश यादव

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आजकल पार्टियां चुनाव में लेकर नए प्रयोग लगातार करती रहती हैं. बीते दिनों पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस ने खेला होबे का नारा दिया था, जो जनता ने बहुत पसंद किया था.

इसी तर्ज पर अब उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए समाजवादी पार्टी ने "खदेड़ा होइबे" का नारा दिया है. पार्टी ने इसके लिए बकायदा एक प्रोमो सांग भी जारी किया है.

बता दें गाने के शब्दों में स्वास्थ्य समस्याओं, खासकर कोरोना के दौरान ऑक्सीजन की कमी और बिस्तरों की कमी का जिक्र विशेष तौर पर किया गया है. ममता के नारे को अखिलेश के चुनावी कैंपेन के केंद्र में लाने से यह संभावना भी बन रही है कि ममता बनर्जी, उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का प्रचार कर सकती हैं. यह थीम इस बात को भी दर्शाता है कि कैसे बनर्जी, देश में विपक्ष की राजनीति के केंद्र में आती जा रही हैं.

गाने में रणनीति यह समझ आती है कि वोटर को एक तरह से याद दिलाया जाएगा कि बीजेपी अजेय नहीं है. एक तरह से यह बीजेपी को बार-बार बंगाल की याद दिलाकर, उनका मनोबल तोड़ने का प्रयास भी है.

नीचे सुनें गाना..

स्थानीय भाषा और वेशभूषा की अहमियत..

इस गाने में उत्तर प्रदेश की स्थानीय भाषाओं के शब्दों का बखूबी इस्तेमाल किया गया है. जनसंचार में इस तरह की कवायदों का उद्देश्य वोटर से सीधे उसकी भाषा में संवाद और एक तरह का भावनात्मक रिश्ता स्थापित करना होता है.

हमने देखा है कि प्रधानमंत्री मोदी अलग-अलग राज्यों की जनसभाओं में वहां की स्थानीय वेशभूषा को अपनाते हैं. कई बार प्रधानमंत्री अपने भाषण का कुछ हिस्सा स्थानीय भाषा या बोली में बोलते हैं. जैसे, पिछले दिनों झांसी में प्रधानमंत्री मोदी ने बुंदेली भाषा में अपने भाषण की शुरुआत की थी.

समाजवादी पार्टी के "खदेड़ा होइबे" गाने में विजुअल्स का भी ठीक इस्तेमाल किया गया है. इसमें बड़ी-बड़ी जनसभाओं के शॉट्स लिए गए हैं, ताकि उन्हें मिलने वाले जनसमर्थन को दिखाया जा सके. यह सारी तकनीकें वोटर के अवचेतन मन में प्रभाव बनाने के लिए होती हैं.

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