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मणिपुर हमले के जिम्मेदार संगठन PLA का इतिहास और चीन कनेक्शन जानिए 

मणिपुर में PLA के हमले में असम राइफल्स के तीन जवान शहीद हो गए   

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मणिपुर में PLA के हमले में असम राइफल्स के तीन जवान शहीद हो गए   
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मणिपुर में PLA के हमले में असम राइफल्स के तीन जवान शहीद हो गए   
(फोटो: Altered by Quint) 

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मणिपुर के चंदेल क्षेत्र में 29 जुलाई की रात भारत-म्यांमार सीमा के पास आईईडी विस्फोट में 4 असम राइफल्स के तीन जवान शहीद हो गए और पांच घायल हो गए. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि 15 जवानों का एक ग्रुप चंदेल क्षेत्र के खोंगतल से वापस आ रहा था और वो लोग आईईडी ब्लास्ट की चपेट में आ गए. उसके बाद घात लगाए उग्रवादियों ने जवानों पर फायरिंग शुरू कर दी. सूत्रों के मुताबिक, ये हमला पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) ने किया था.

मारे गए सैनिकों की पहचान हवलदार प्रणय कालिता, राइफलमैन रतन सलाम और राइफलमैन मैथना कोन्याक के रूप में हुई है.

मणिपुर में कई दशकों से इंसर्जेंसी या व्रिद्रोह चल रहा है और कई आतंकी संगठन भारतीय सुरक्षा बलों और जनता को निशाना बनाते हैं. क्योंकि राज्य की सीमा म्यांमार से लगती है, कई संगठन पड़ोसी देश से ऑपरेट करते हैं और इसलिए इन्हें ट्रैक करना या नियंत्रित करना मुश्किल है.  

मणिपुर में सबसे बड़े और खतरनाक आतंकी संगठनों में से एक पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) है.

PLA क्या है?

PLA का गठन 25 सितंबर 1978 में एन बिशेश्वर सिंह ने किया था और इसकी कोशिश मणिपुर को आजाद करने की रही है, इसे एक स्वतंत्र सोशलिस्ट राज्य बनाने की. ये संगठन बनाने से पहले सिंह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) से अलग हुए थे.

साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल (SATP) के मुताबिक, इस संगठन में मेईतेई समुदाय के लोगों का दबदबा है और ये पूरे उत्तर-पूर्व इलाके में एक क्रांतिकारी फ्रंट बनाने की कोशिश कर रहा है, जिसमें नागा और कूकी समुदाय भी शामिल होगा. SATP भारत में सक्रिय विद्रोही संगठनों की जानकारी रखता है.

1980 के दशक में इस सगठन की गतिविधियां कम हो गई थीं. इसकी वजह थी 1981 में बिशेश्वर सिंह की गिरफ्तारी और 1982 में संगठन के अध्यक्ष थोडम कुंजबिहारी की मौत.  

ये संगठन लगातार इंडियन आर्मी से भिड़ता आया है और नब्बे के दशक के आखिरी में इसने मणिपुर पुलिस को निशाना न बनाने का फैसला किया.

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PLA की राजनीति में आने की कोशिश

राज्य में मौजूदा राजनीतिक पार्टियों के विकल्प के तौर पर उभरने की इच्छा से PLA ने 1989 में एक राजनीतिक दल का गठन किया. इसका नाम रेवोल्यूशनरी पीपल्स फ्रंट (RPF) रखा गया.

SATP के मुताबिक, RPF बांग्लादेश से निर्वासन की सरकार चलाता है. PLA ने बांग्लादेश के सिल्हट जिले में कई बेस भी बना रखे हैं.

इरेंग्बम चओरेन RPF के 'अध्यक्ष' हैं. RPF में उपराष्ट्रपति, गृह, वित्त, विदेश मामलों, पब्लिसिटी एंड कम्युनिकेशन, सोशल वेलफेयर, स्वास्थ्य और शिक्षा मामलों के सचिव भी हैं.

चीन कनेक्शन

दशकों पहले मणिपुर में 18 लोगों की एक स्क्वाड ने PLA जॉइन की थी. वेटरन जर्नलिस्ट राजीव भट्टाचार्य के मुताबिक, इन सभी को चीन के कब्जे वाले तिब्बत में ट्रेन किया गया था.

1980 के शुरुआत में ये माना जाता था कि PLA के ट्रेनिंग मॉड्यूल और हथियारों की सप्लाई रुक गई थी. इसके पीछे भारत की शिकायतें और चेयरमैन माओ जेडोंग की मौत के बाद चीन की नीति में बदलाव को वजह माना जाता है. बाद में बरटिल लिंटनर की रिसर्च में पता चला कि चीन PLA को ट्रेनिंग देने के लिए म्यांमार में कचिन इंडिपेंडेंस आर्मी (KIA) का इस्तेमाल करता था. इसके बाद भारत की RAW के साथ एक संधि हो जाने से KIA ने सभी मिलिटेंट संगठनों से अपने रिश्ते खत्म कर दिए और इसके बदले हथियार मांगे.  
राजीव भट्टाचार्य

हालांकि, ज्यादातर विद्रोही संगठनों ने सरकार या राजनीतिक दलों के साथ समझौता कर लिया है. लेकिन SATP के मुताबिक, PLA के अभी भी म्यांमार में दो और बांग्लादेश में पांच कैंप हैं, जहां करीब 1,000 रिक्रूट को हथियारों की ट्रेनिंग मिलती है.

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