Home News India कोच्चि के ज्यू टाउन में धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल पेश करती सारा-थाहा की कहानी
कोच्चि के ज्यू टाउन में धार्मिक सहिष्णुता की मिसाल पेश करती सारा-थाहा की कहानी
Kochi Jew Town: कोच्चि में परदेसी यहूदी समुदाय के 2,000 सदस्य थे, जो आज केवल दो यहूदी बचे हैं.
मीनाक्षी शशि कुमार
भारत
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Thaha Ibrahim & Sarah Cohen
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
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मट्टान्चेरी में ज्यू टाउन केरल के कोच्चि के पर्यटन स्थलों में से एक है, जहां दोनों ओर पुरानी इमारतें, प्राचीन वस्तुओं की दुकानें, कपड़ों के स्टॉल और किताबों की दुकानें हैं. लेकिन ये शहर का नाम ही है जो इसे बाकी सब से अलग करता है. यहूदी टाउन उन हजारों यहूदियों के लिए एक समझौता था जो 1500 के दशक में यूरोपीय देशों में उत्पीड़न से बचने के लिए कोच्चि तट पर आ गए थे. यहां रहने वाले यहूदी ज्यादातर परदेसी यहूदी (विदेशी यहूदी) थे.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
साल 1568 में कोच्चि में यहूदी समुदाय के लिए एक आराधनालय (प्रार्थना-गृह) बनाया गया था, जिसे 'परदेसी सिनेगॉग' कहा जाता है. यहूदियों द्वारा इसे सेफर्डिक या पुर्तगाली भाषी में बनाया गया था. यह राष्ट्रमंडल का सबसे पुराना सिनेगॉग (प्रार्थना-गृह) है.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
जल्द ही, ये सिनेगॉग समुदाय के लिए धार्मिक और सामाजिक समारोहों का केंद्र बिंदु बन गया. पिछली चार शताब्दियों में इस सिनेगॉग में कई यहूदी शादियां भी देखी गईं, जिसमें पूरे राष्ट्रमंडल से यहूदी यहां पहुंचे थे. हालांकि यहां होने वाला आखिरी उत्सव 2018 में एक शादी थी जो केरल में घटती यहूदी आबादी के लिए यह एक वसीयतनामा है.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
अपने चरम पर कोच्चि में यहूदी समुदाय के 2,000 सदस्य थे. आज केवल दो यहूदी बचे हैं और दोनों अपने परिवारों के साथ विदेश में हैं. इस तस्वीर में आप एक यहूदी महिला का घर देख सकते हैं जो इजरायल लौट चुकी है. हालांकि जब वो इजरायल लौटी तब यह घर एक होटल को बेच दिया गया.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
यहां तक कि अब यहूदी शहर में भी पहले से कम हैं और उनकी कहानियां उन लोगों के माध्यम से जीवित हैं जो उन्हें जानते हैं और उनका सम्मान करते हैं. ऐसी ही एक कहानी दिवंगत सारा कोहेन और उनके केयरटेकर थाहा इब्राहिम की है. ये कोच्चि में रहने वाली सबसे उम्रदराज यहूदी सारा कोहेन (बाएं) का अगस्त 2019 में 96 साल की उम्र में मौत हो गई. उनकी देखभाल करने वाला थाहा इब्राहिम जो मुस्लिम व्यक्ति हैं और इनकी उम्र 53 साल है. थाहा 40 साल से अधिक समय तक सारा के साथ थे. उन्होंने क्विंट हिंदी को बताया कि, 'मैं भाग्यशाली हूं कि मैं सारा आंटी को जानता हूं और उनकी देखभाल करता था. वह भगवान ही थे, जो हमें एक साथ लाए थे.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
जब थाहा इब्राहिम 12 से 13 साल के थे तब वो साल 1982 में मसाले और पोस्टकार्ड बेचने के लिए ज्यू टाउन आए थे. थाहा ने क्विंट हिंदी को बताया कि 'उस समय यहां बहुत कम घर था. इस सड़क पर 30 यहूदी रहते थे. यह गली गेट थी मुझे याद है कि मैं यहां एक युवा लड़के के रूप में आया था जिसने कुछ पैसे कमाने के लिए स्कूल छोड़ दिया था.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
सारा के पति जैकब कोहेन मुझे पसंद करते थे और उन्होंने मेरी शिक्षा के लिए पैसे भुगतान करने की पेशकश की, क्योंकि उनके अपने कोई बच्चे नहीं थे. कुछ समय बाद अंकल ने मुझे यहां रहने और आंटी की देखभाल करने के लिए कहा. आंटी बहुत बोल्ड थीं और मैं उस समय उनसे काफी डरता था. थाहा ने कहा कि मुझे संदेह था कि वह मुझे बहुत पसंद नहीं करती थीं.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
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लेकिन जल्द ही सारा को थाहा से लगाव हो गया- इतना कि उसने अपनी कढ़ाई की दुकान थाहा को चलाने के लिए दे दी, जो उनके घर का एक हिस्सा है. इस तस्वीर में आप उनकी घर-सह-कढ़ाई की दुकान देख सकते हैं, जो दुर्लभ तस्वीरों का घर है. हाथ से कढ़ाई वाले रुमाल, किपाह (यहूदी टोपी), तकिए के कवर, यहूदी इतिहास की किताबें, और अन्य छोटी-छोटी चीजें यहां मौजूद है.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
थाहा कहते हैं कि 'सारा कढ़ाई में माहिर थीं और कुछ लेस जो वह बनाती थी...वे बहुत सुंदर हैं. मुझे आज भी इस तकनीक में महारत हासिल नहीं हुई. भले ही वह बहुत बूढ़ी थीं, फिर भी वह कुशलता से सिलाई करती थी.' थाहा के लिए यह मसल मेमोरी जैसा है.
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
सारा का जन्म 1924 में कोच्चि में हुआ था और एर्नाकुलम में अपनी शिक्षा हासिल करने के बाद सारा ने 1942 में जैकब से शादी कर ली थी. थाहा कहते हैं, आंटी और अंकल दोनों का जन्म यहीं हुआ था और अन्य समुदाय के सदस्यों के अलग-अलग देशों में चले जाने के बावजूद वो यहीं मरे. कहा जाता है कि सारा के पूर्वज बगदाद इराक से आए थे. सारा हमेशा अपना किपाह पहनती थीं (जैसा कि फोटो में देखा गया है). हालांकि आमतौर पर यहूदी पुरुष इसे पहनते हैं. थाहा ने कहा कि 'सारा आंटी ऐसी ही थीं, वो यहां की कम्युनिटी का चेहरा थीं और लोग उन्हें इज्जत की निगाह से देखते थे.'
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
2019 में सारा की मौत के बाद थाहा ने उनकी याद में अपने घर के एक हिस्से को पूरी तरह से संग्रहालय में बदल दिया. थाहा कहते हैं कि 'उनके अंतिम दिनों में, मैं अस्पताल में उनके साथ बैठता था.अगर मैं वहां नहीं होता तो मेरी पत्नी या मेरी बहन होती. हम एक परिवार थे. वह हमेशा बाहर से बहुत बोल्ड थीं, लेकिन मैंने उन्हें दूसरों को बताते हुए सुना है कि मैं उनके लिए एक बेटे से बढ़कर हूं.'
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
थाहा कहते हैं, 'वह हमेशा इसी कुर्सी पर बैठती थीं और अपनी कढ़ाई का काम करती थीं. कभी-कभी जब मैं दुकान में व्यस्त होता, तो मुझे उनसे बात करने का समय नहीं मिलता था. तब वह बहुत परेशान हो जाती थी.' थाहा याद करते हुए कहते हैं, 'वह मुझे इसी कुर्सी पर बैठकर पुकारती थीं और कहती थीं कि कम से कम तुम मुझे गुड मॉर्निंग विश कर सकते थे.'
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
जबकि सारा के घर का एक हिस्सा थाहा द्वारा प्रबंधित किया जा रहा है. थाहा घर की रसोई की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, 'कोच्चि में यहूदी परिवारों में आम तौर पर तीन रसोई घर होते थे और यह उनका रिवाज था.'
(फोटो: मीनाक्षी शशिकुमार)
हालांकि थाहा एक धर्मनिष्ठ मुसलमान हैं और थाहा का कहना है कि वह यहूदी रीति-रिवाजों के अनुसार 'सारा की हाथ की कढ़ाई' की दुकान को चलाते हैं. थाहा कहते हैं, 'शुक्रवार को शाम 6 बजे के बाद शाबात की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए दुकान बंद रहती है. शनिवार को भी यह बंद रहता है. अब प्यार करना भी गलत है. ऐसा लगता है कि हम पीछे की ओर जा रहे हैं.'