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ये दोनों खबरें कमोबेश एक साथ आईं. दो अलग-अलग राज्य, दो अलग-अलग पार्टियों की सरकार लेकिन सियासत एक जैसी. जहां राजस्थान के सीएम बच्चों की मौत पर पूरे देश में सरकारी हॉस्पिटल की कमियों की बात करते दिखते हैं. वहीं गुजरात के सीएम तो बच्चों की मौत के सवाल पर जवाब देना भी सही नहीं समझते.
राजकोट सिविल हॉस्पिटल के डीन मनीष मेहता के मुताबिक, दिसंबर 2019 में इस हॉस्पिटल में 111 बच्चों की मौत हो गई. इसके अलावा अहमदाबाद सिविल हॉस्पिटल के सुपरिंटेंडेंट जीएस राठौर ने बताया, ''दिसंबर में 455 नवजात बच्चे NICU में भर्ती कराए गए थे, जिनमें से 85 की मौत हो गई.'' गुजरात में बीजेपी की सरकार है. जब गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी से बच्चों की मौतों को लेकर सवाल पूछे गए तो वह जवाब दिए बिना चले गए.
दूसरी तरफ राजस्थान में कांग्रेस की सरकार है. कोटा के एक अस्पताल में 100 बच्चों की मौत के बाद ICU में बेसिक हाइजीन की कमी के आरोपों पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की प्रतिक्रिया सामने आई, जिसे टालमटोल कहा जा सकता है.
बता दें कि इससे पहले 2 जनवरी को गहलोत ने कहा था, ‘’राज्य में बच्चों की मौत का आंकड़ा पिछले 5-6 सालों की तुलना में कम है. अस्पतालों में अच्छे मेडिकल अरेजमेंट उपलब्ध हैं.’’
राजस्थान के कोटा के अस्पताल में नवजात शिशुओं की मौत को लेकर जारी घमासान के बीच एक रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है कि पिछले साल दिसंबर में जोधपुर के दो अस्पतालों में 100 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत हो गई. रिपोर्ट में कहा गया है कि दिसंबर में उमैद और एमडीएम अस्पतालों में 146 बच्चों की मौत हुई जिनमें से 102 शिशुओं की मौत नवजात गहन चिकित्सा इकाई में हुई.
कुल मिलाकर ‘हेल्थ’ यानी ‘स्वास्थ्य ‘सरकार के एजेंडे पर ही नहीं है. बच्चों की मृत्यु दर को लेकर 18 सितंबर, 2018 को जारी यूनाइटेड नेशंस के इंटर-एजेंसी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक शिशुओं की मौत के मामले में भारत का रिकॉर्ड बेहद खराब है. साल 2017 में भारत में 8 लाख, 2 हजार बच्चों की मौत हुई थी. लेकिन वजह शायद संसाधनों की नहीं बल्कि इच्छा शक्ति की कमी है. भारत अपनी कुल जीडीपी का 2 फीसदी से भी कम खर्चा हेल्थकेयर पर करता है. दुनिया के ज्यादातर देशों के मुकाबले ये बेहद कम है.
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