Home Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019News Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019India Created by potrace 1.16, written by Peter Selinger 2001-2019कोतवाल का हुक्का: हिंदी साहित्य में नए प्रयोगों की झलक दिखाती किताब

कोतवाल का हुक्का: हिंदी साहित्य में नए प्रयोगों की झलक दिखाती किताब

कोतवाल का हुक्का: किसी फिल्म का सा एहसास कराती है किताब

हिमांशु जोशी
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>इस किताब के  लेखक को उस श्रेणी के लेखकों में गिना जाएगा जो समाज पर गहरा असर रखते हैं</p></div>
i

इस किताब के लेखक को उस श्रेणी के लेखकों में गिना जाएगा जो समाज पर गहरा असर रखते हैं

(फोटो: Altered by The Quint)

advertisement

हर कहानी का अंत एक सवाल भी है और एक जवाब भी. ये किताब एक पहेली है और हां उर्दू से प्यार न करने वाले अहमक़ तो इसे देखें भी न.

किताब का पीले और लाल रंग का आवरण चित्र अपनी तरफ आकर्षित करता है, ऐसा लगता है कि यह आवरण चित्र कुछ कहना चाह रहा है लेकिन आप उस संदेश को समझ नहीं पा रहे हैं.

पिछले आवरण में लिखा है कि लेखक साहित्य की विधागत तोड़फोड़ एवं नव निर्माण में रचनारत हैं और और किताब खत्म करते-करते आप शायद इस वाक्य को अपनी सहमति भी प्रदान कर दें.

इससे पहले आई लेखक अमित श्रीवास्तव की किताब 'गहन है यह अन्धकारा' उसके पाठकों के बीच बहुत ऊंचे मानक स्थापित कर गई थी और अब 'कोतवाल का हुक्का' से लेखक को यह साबित करने की चुनौती है कि 'गहन है यह अन्धकारा' की लेखनी लेखक के लिए तुक्का मात्र नहीं थी.

हुआ है उर्दू का खूबसूरत इस्तेमाल

कहीं उर्दू कहीं हिंदी के साथ किताब शुरू होती है और उर्दू पर हल्ला मचाने वालों के लिए यह किताब एक उदाहरण भी है. किताब के ज़रिए उर्दू की खूबसूरती समझ में आती है, खैर उर्दू पर हो-हल्ला मचाने वाली जमात वही है ,जो कभी कुछ नया नहीं समझना चाहती या उन्हें नया समझ में ही नहीं आता.

'इब्तिदाईया' (शुरुआत) में लेखक नए तरीके से लिखने की बात करते हैं और यह ठीक भी है, क्योंकि वह नयापन खोजने की चाह ही तो है जिससे यह संसार विकास कर रहा है.

यहां पर लेखक किताब से जुड़ी कुछ जरूरी जानकारी भी साझा करते हैं जो किताब पढ़ने की शुरुआत करने से पहले जरूरी हैं.

'चाकरी चतुरंग' जैसी मशहूर किताब लिख चुके हिंदी लेखक ललित मोहन रयाल ने किताब का त'आरुफ़ (परिचय) लिखा है, इसकी भाषा सरल है.

पुलिस पर लिखी पंक्ति 'आधुनिकीकरण सुधार हुआ है लेकिन कॉस्मेटिक सा' के ज़रिए ललित पाठकों को किताब का हल्का स्वाद देने में कामयाब हुए हैं.

अनुक्रम से पता चलता है कि लेखक ने किताब को 'तहरीर', 'रोजनामचा', 'शहादत' व 'फैसला' जैसे चार ठेठ पुलिसिया शब्दों का प्रयोग करते चार भागों में बांटा है और इन्हीं चार हिस्सों से आपको कई सारी कहानियां पढ़ने के लिए मिलेंगी.

किसी फिल्म का सा एहसास कराती है किताब

'कोतवाल का हुक्का' कहानी से किताब की शुरुआत हुई है, कहानी आसान हिंदी भाषा में है. फ़क़ीर की वेशभूषा पढ़ते आपको अंदाजा ही नहीं होगा कि आप कब किताब में रम गए हैं. एक ही कहानी की शुरुआत कई तरह से कर लेखक ने किताब को अपनी तरह से नया स्वरूप दिया है, उन्हें इसकी परवाह नहीं है कि बाकी लेखक अपनी किताब को किस तरह का स्वरूप देते आए हैं. उत्तराखंड के बैकग्राउंड पर लिखी इस कहानी को पढ़ने के लिए आपका एकाग्रचित्त होना आवश्यक है.

रामबदन की लिखावट से जुड़ी यह पंक्ति 'म' और 'द' अक्षर घिसट जाते थे और हस्ताक्षर 'न' पर समाप्त होता था. पाठकों से भी प्रैक्टिकल करवा सकती है.

सरकार की नीतियों, पत्रकारिता-पुलिस के गठजोड़ और विकास के नुकसान पर चर्चा करती यह कहानी एक फिल्म देखने सा अहसास कराती है और कहानी का अंत पाठकों को कुछ देर के लिए शून्य कर देता है.

'गंग-जमुन' मात्र 11 पंक्तियों की छोटी कहानी है, फिर भी वह एक ऊंची दीवार के दोनों साइडों का फर्क समझाने में कामयाब होती है.

इस किताब को पढ़ते सिर्फ पुलिस ही नहीं, आम जनता और नेताओं को भी यह पता चलता है कि पुलिस क्या है और इस पर कौन-कौन से बाहरी दबाव रहते हैं.

होने के लिए 'गोश्वारा' सिर्फ सात पंक्तियों की कहानी है पर लेखक के मन में गरीबों के लिए जो चुलबुलाहट है यह कहानी उसका आईना है.

लेखक ने एक कहानी में पंक्ति लिखी है 'दरअसल गदराया हुआ शरीर खराब सेहत का घोषणापत्र है, वैसे ये व्यक्ति का अपना चुनाव भी है' यह देश के अधिकतर पुलिसकर्मियों का हाल बताने के लिए काफी है.
ADVERTISEMENT
ADVERTISEMENT

आगे पढ़ते किताब की हर कहानी के अंत में ट्विस्ट देखने को मिलता है, साथ ही समाज की दुर्भावना पर भी व्यंग्य कसा गया है. इंसान कितना स्वार्थी है, यह बताने के लिए लेखक की यह पंक्ति ही काफी है 'सड़ी हुई लाश को उलटने पलटने से भभका सा उठता, उबकाई आ जाती फिर गली में थूकते हुए लौट जाते थे'.

'मस्कन' कहानी में साहब और सिपाही कि बातचीत ने पीएसी बल की व्यथा को जिस कदर पाठकों के सामने रखा है, उससे पाठक विचलित हो सकते हैं.

'शहादत' हिस्सा शुरू होने पर किताब में एक स्केच और कुछ पंक्तियां हैं, जो आने वाली कहानियों को लेकर मन में जिज्ञासा उत्पन्न कर देते हैं और पाठकों को किताब के पन्ने बंद करने का मन ही नहीं करता.

पुलिस की सामाजिक छवि पर की गई चर्चा करवाने की कोशिश

'376 पेलूराम' कहानी जितनी घुमावदार है, उससे ऐसा लगता है कि यह कहानी जानबूझकर इस तरह लिखी है. ताकी पाठक कहानी ध्यान से पढ़ते रहें और उनका ध्यान न भटके.

'उन दिनों सिपाही के लिए सम्मान सूचक नाम दीवान जी और घृणा के लिए हरामी इस्तेमाल होते थे' इस पंक्ति से लेखक ने बड़ी खूबी के साथ ही पुलिस के सिपाही की सामाजिक छवि पर एक चर्चा शुरू करवाने की कोशिश की है.

पृष्ठ 97 में लेखक पेलूराम के शरीर का वर्णन करते खुद उलझते नज़र आते हैं और किताब में यही पहली और अंतिम कमी लगती है.

सजीव चित्रण ऐसा मानो सामने ही चल रहा हो दृश्य

'खुदमहदूद' जैसे शब्द पढ़ने में सही लगते हैं पर साथ ही पाठकों का रुख गूगल की तरफ भी करते हैं.

पेलूराम द्वारा आदमी का पीछा करना इस तरह वर्णित हुआ है मानो आप किसी दृश्य को अपने सामने देख रहे हों.

लेखक हर कहानी की शुरुआत में ही पाठकों को किताब से जकड़ सा लेते हैं, जैसे 'कॉज़ ऑफ डेथ' कहानी की पहली पंक्ति 'पैंट के पांयचे घुटनों तक लाल हो चुके थे'. यहां पांयचे का मतलब न समझने के बावजूद पाठक कहानी को पढ़ते ही जाएंगे.

किताब के आखिरी भाग में स्केच और उर्दू का तगड़ा कॉम्बिनेशन देखने को मिला है.

'इट्स ऑल ग्रीक टू मी' कहानी में पात्रों के 'क' 'ख' 'ग' नाम नए से हैं. कहानी के बहाने लेखक ने पुलिस पर राजनीतिक प्रभावों के विषय को भी उठाया है.

'दिन के अंधेरे में' शीर्षक ही प्रयोगधर्मी है, इस कहानी और कविता के मिश्रण ने किताब की बाकी कहानियों को मिली सारी वाहवाही लूट ली है. हिंदी साहित्य के इस नए प्रयोग को पढ़ने के लिए यह किताब बेझिझक खरीदी जा सकती है.

'वहां तुम्हारा चेहरा बना देता और ये काले बादल बिलकुल तुम्हारे बालों की तरह' कविता की यह पंक्तियां पाठकों के दिल की धड़कन बढ़ा देंगी.

लेखक ने किताब के ज़रिए कुछ ऐसे विचार भी साझा किए हैं, जिनके बाद उन्हें उस श्रेणी के लेखकों में गिनती किया जाएगा जो समाज पर गहरा असर रखते हैं. इसका प्रमाण 'वैसे न मानना दोनों तरफ से हो सकता था, समझ पर सामूहिकता हावी रही' पंक्ति के साथ आगे पीछे लिखे शब्द हैं.

(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

Published: undefined

Read More
ADVERTISEMENT
SCROLL FOR NEXT