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इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में 17 जुलाई को भारत की बहुत बड़ी जीत हुई है. दरअसल कुलभूषण जाधव मामले में ICJ ने साफ कहा है कि पाकिस्तान ने विएना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशन्स की धारा 36 का उल्लंघन किया है. कोर्ट ने पाकिस्तान को आदेश दिया है कि वो जाधव की फांसी की सजा की “दोबारा प्रभावी समीक्षा करे”. पाकिस्तान ने जाधव पर जासूसी करने और आतंकवाद का आरोप लगाया है.
ICJ ने मई 2017 में एक अस्थायी आदेश दिया था. कोर्ट ने पाकिस्तान से अनुरोध किया था कि जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं हो जाता, तब तक पाकिस्तान अपने मिलिट्री कोर्ट द्वारा दी गई सजा को लागू ना करे.
इस सिलसिले में ICJ अध्यक्ष अब्दुल कावी युसुफ ने बुधवार, 17 जुलाई को एक और फैसला सुनाया. हालांकि कोर्ट ने केस की मेरिट के आधार पर भारत के पक्ष में फैसला दिया, लेकिन भारत के इस अनुरोध को नकार दिया कि जाधव की सजा रद्द कर उन्हें भारत के हवाले किया जाए.
चलिए आपको बताते हैं, क्या हैं कोर्ट के फैसले के मुख्य बिंदु और भारत के लिए उनकी क्या अहमियत है.
कोर्ट ने कहा कि वो सिर्फ इस बारे में विचार कर सकता है कि पाकिस्तान ने VCCR का उल्लंघन किया है या नहीं, अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दूसरे मुद्दों पर नहीं.
कोर्ट ने पाया कि पाकिस्तान ने VCCR की धारा 36 का 3 तरीके से उल्लंघन किया है.
धारा 36, CONSULAR RELATIONS पर विएन्ना कन्वेंशन
VCCR की धारा 36(1) (b) के मुताबिक अगर देश A का नागरिक देश B में गिरफ्तार होता है, तो देश B के लिए VCCR के मुताबिक गिरफ्तार विदेशी नागरिक को उसके अधिकारों के बारे में बताना अनिवार्य है. इन अधिकारों में देश A के दूतावास से संपर्क कर उनसे मदद लेना भी शामिल है.
अगर गिरफ्तार विदेशी नागरिक अनुरोध करता है तो देश B को देश A के दूतावास अथवा उच्चायोग को बिना देरी किए यह सूचना देना अनिवार्य है कि उसे गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में रखा गया है.
धारा 36(1)(c) के मुताबिक देश A को किसी भी दूसरे देश में गिरफ्तार अपने देश के नागरिकों से मिलने और उसे कानूनी मदद देने का अधिकार है.
जाधव को दूतावास से संपर्क करने का अधिकार न देने पर पाकिस्तान ने दो दलीलें पेश कीं. कोर्ट ने दोनों दलीलें खारिज कर दीं:
क्या पाकिस्तान ICJ का फैसला मानने को बाध्य है?
किसी भी मामले में ICJ के फैसले संबिधत पक्षों को मानने के लिए अनिवार्य हैं. इस लिहाज से तकनीकी तौर पर पाकिस्तान भी ICJ का फैसला मानने के लिए बाध्य है. ऐसा न होने पर ICJ में नए सिरे से याचिका डाली जा सकती है और संयुक्त राष्ट्र के दूसरे विभागों में भी अपील की जा सकती है.
ICJ के फैसले को असरदार बनाने के लिए सुरक्षा परिषद का समर्थन पाना जरूरी है. अमेरिका ने खुल्लम-खुल्ला ICJ का फैसला मानने से इनकार कर दिया था (Avena और LaGrand मामलों समेत, जिनमें दूतावास से संपर्क नहीं करने दिया गया था). इसकी वजह अमेरिका का खुद पर भरोसा था कि वो अपने खिलाफ किसी भी फैसले को वीटो कर सकता है.
मगर पाकिस्तान के पास न तो वीटो की ताकत है और न अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उसका कद इतना ऊंचा है कि वो कोर्ट का आदेश मानने से इनकार कर दे. इन आदेशों में जाधव की फांसी पर रोक, उन पर लगे आरोपों और सजा की प्रभावी समीक्षा भी शामिल हैं.
असरदार समीक्षा और फिर से विचार करने के लिए पाकिस्तान को क्या करना होगा?
आमतौर पर ICJ स्वायत्त देशों को हर कदम पर निर्देश नहीं देता और इस मामले में भी उसने ऐसा नहीं किया है.
मगर पैराग्राफ 137 से 147 में दिए गए प्रावधानों का पालन करना पाकिस्तान के लिए जरूरी है. कोर्ट ने साफ किया है कि जाधव को माफ करने की याचिकाओं को प्रभावी समीक्षा और दोबारा विचार करने के दायरे में नहीं लाया जा सकता, जिसके लिए अदालती प्रक्रिया जरूरी है. अगर इसके लिए पाकिस्तान को नया कानून बनाना पड़े, तो वो भी होना चाहिए.
कोर्ट ने ये भी साफ कर दिया कि जाधव को दूतावास से संपर्क करने का अधिकार देने और उन्हें इस अधिकार से वाकिफ कराने की पाकिस्तान की शुरुआती नाकामी की वजह से किसी भी प्रकार के पक्षपात पर दोबारा सुनवाई के दौरान गहन समीक्षा की जाएगी. इसका मतलब है कि पाकिस्तान को दिए गए जाधव के इकबालिया बयान या तो बेवजह हैं, या फिर उनके जरिए नतीजे तक नहीं पहुंचा जा सकता (देखें पैरा 145).
ऐसे में निश्चित रूप से अगर जाधव की रिहाई न भी हो, तो उनकी सजा कम करने में जरूर मदद मिल सकती है.
पाकिस्तान ICJ के फैसले को स्वीकार करे, इसके लिए भारत को क्या करना चाहिए?
भारत को पाकिस्तान से मिलने वाले दूतावास से संपर्क करने के अधिकार का पूरा इस्तेमाल करना चाहिए, ताकि यह तय हो सके कि जाधव को अपनी हिफाजत के लिए (फांसी की सजा पर रोक समेत) सभी अधिकार दिए जाएं. इसके अलावा भारत को पाकिस्तान से समीक्षा की पूरी प्रक्रिया के बारे में जानकारी लेनी चाहिए.
भारत को ये भी तय करना चाहिए कि जाधव की हिफाजत के लिए सबसे बेहतरीन वकील उपलब्ध हों.
अगर पाकिस्तान दूतावास से संपर्क का अधिकार देने में लंबा वक्त लगाता है तो भारत को ICJ में याचिका दायर कर देरी के बारे में बताना चाहिए. भारत को इस बारे में सुरक्षा परिषद को भी बताना चाहिए. संपर्क करने का अधिकार देने में किसी भी प्रकार की देरी का फौरन विरोध करना चाहिए.
जैसा ICJ ने कहा कि समीक्षा प्रक्रिया में थोड़ा वक्त लग सकता है, क्योंकि पाकिस्तान में हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट को मिलिट्री कोर्ट के फैसलों की समीक्षा करने के अधिकार सीमित हैं. हालांकि ICJ ने यह भी कहा कि जरूरत होने पर कानून में बदलाव कर इस अड़चन को दूर किया जाना चाहिए. लिहाजा इस प्रक्रिया में और देरी हो सकती है.
सबसे अहम इस बात पर नजर रखना है कि फैसला स्वीकार किया जाए और पाकिस्तान ऐसा कोई कदम न उठाए, जिससे फैसले पर आंच आए. जाधव को फांसी देने से जुड़ा कोई भी संभावित कदम ICJ में नई याचिका दायर करने (अस्थायी कदम समेत) और संयुक्त राष्ट्र में अपील करने का आधार बन सकता है.
क्या पाकिस्तान इस फैसले को चुनौती दे सकता है?
नहीं. ICJ के फैसलों को चुनौती देने का कोई प्रावधान नहीं है.
ये भी देखें- कुलभूषण जाधव केस: ICJ में पाकिस्तान को मुंह की खानी पड़ी
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