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रेलवे स्टेशनों पर ‘कुल्हड़ों’ की वापसी,कुम्हारों के लिए बड़ा बाजार

रेल मंत्री पीयूष गोयल ने जारी किया है निर्देश

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प्लास्टिक और पेपर के कपों ने चुपके से कुल्हड़ की जगह हथिया ली थी
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प्लास्टिक और पेपर के कपों ने चुपके से कुल्हड़ की जगह हथिया ली थी
(फोटो: ट्विटर)

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भारतीयों के लिए गर्म चाय की चुस्कियां लेने का जो जायका कुल्हड़ के साथ है, उसके आगे प्याली या कागज/प्लास्टिक के कपों की क्या बिसात? इसी बात को ध्यान में रखते हुए रेलवे स्टेशनों पर कुल्हड़ों की जल्द वापसी होने वाली है. पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ने 15 साल पहले रेलवे स्टेशनों पर कुल्हड़ की शुरुआत की थी, लेकिन प्लास्टिक और पेपर के कपों ने चुपके से कुल्हड़ की जगह हथिया ली.

उत्तर रेलवे और उत्तर पूर्व रेलवे के मुख्य कॉमर्स मैनेजमेंट बोर्ड की ओर से जारी सर्कुलर के मुताबिक रेल मंत्री पीयूष गोयल ने वाराणसी और रायबरेली स्टेशनों पर खान-पान का प्रबंध करने वालों को टेराकोटा या मिट्टी से बने ‘कुल्हड़ों', ग्लास और प्लेट के इस्तेमाल का निर्देश दिया है.

क्या कहा गया सर्कुलर में?

रेलवे अधिकारियों ने बताया कि इस कदम से यात्रियों को न सिर्फ ताजगी का अनुभव होगा, बल्कि अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे स्थानीय कुम्हारों को इससे बड़ा बाजार मिलेगा. सर्कुलर के मुताबिक, ‘‘जोनल रेलवे और आईआरसीटीसी को सलाह दी गयी है कि वे तत्काल प्रभाव से वाराणसी और रायबरेली रेलवे स्टेशनों की सभी यूनिट्स में यात्रियों को खाना या पेय पदार्थ परोसने के लिये स्थानीय तौर पर बने उत्पादों, पर्यावरण के अनुकूल टेराकोटा या पक्की मिट्टी के ‘कुल्हड़ों', ग्लास और प्लेटों का इस्तेमाल सुनिश्चित करें, ताकि स्थानीय कुम्हार आसानी से अपने उत्पाद बेच सकें.''

खादी और ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष पिछले साल दिसंबर में यह प्रस्ताव लेकर आये थे. उन्होंने रेल मंत्री पीयूष गोयल को खत लिखकर यह सुझाव दिया था कि इन दोनों स्टेशनों का इस्तेमाल इलाके के आस पास के कुम्हारों को रोजगार देने के लिये किया जाना चाहिए.

‘‘हमें बिजली से चलने वाले चाक दिये गये हैं जिससे हमारी उत्पादकता बढ़ गयी है. इसकी मदद से हम हर चाक से दिन में 100 से लेकर करीब 600 कप बना लेते हैं. ऐसे में यह अहम हो जाता है कि हमें अपना उत्पाद बेचने और आय के लिये एक बाजार मिले. हमारे प्रस्ताव पर रेलवे के सहमत होने से लाखों कुम्हारों को अब तैयार बाजार मिल गया है. हमारे लिये यह जीत की तरह है. समूचा समुदाय रेलवे का शुक्रगुजार रहेगा और उम्मीद करते हैं कि आखिरकार हम समूचे रेल नेटवर्क में इसका इस्तेमाल कर सकेंगे.’’  
-वी के सक्सेना, अध्यक्ष, केवीआईसी
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'कुम्हार सशक्तिकरण योजना' का असर

वीके सक्सेना को उम्मीद है कि दोनों स्टेशनों की मांग पूरी करने के लिये मिट्टी के बर्तनों का उत्पादन ढाई लाख प्रतिदिन तक पहुंचेगा. कुम्हार सशक्तिकरण योजना के तहत सरकार ने कुम्हारों को बिजली से चलने वाले चाक बांटे हैं. वाराणसी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र है और यहां करीब 300 ऐसे चाक दिए गए हैं और 1,000 और चाक को बांटा जाना है. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली में ऐसे 100 चाक बांटे गये हैं और 700 का बांटा जाना बाकी है. सक्सेना ने कहा कि केवीआईसी भी इस साल बिजली से चलने वाले करीब 6,000 चाक समूचे देश में बांटेगी.

(इनपुट: भाषा)

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