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ऐसा मानना है कि कुंभ में उसी अखाड़े का आधिपत्य होता है, जिनके पास नागाओं की संख्या ज्यादा होती है. क्योंकि कुंभ की जान और शान नागा साधु ही हैं. उनकी एंट्री के बाद ही कुंभ में रौनक आती है. लेकिन प्रयागराज कुंभ में इस बार एक नया अध्याय जुड़ गया है. पहली बार “किन्नरों” ने अखाड़े के तौर पर, दूसरे अखाड़ों की तरह शाही पेशवाई के रूप में कुंभ में एंट्री की है.
हाथी, घोड़े और ऊंट पर सवार जब किन्नर सन्यासी शहर के अलग-अलग हिस्सों से निकलें, तो देखने वालों का हुजूम उमड़ पड़ा. सड़क से लेकर घर की छतों पर मौजूद लोगों ने किन्नर सन्यासियों पर फूल बरसाए और उनका स्वागत किया.
साधु-संतों से अलग किन्नर अखाड़े की पेशवाई चकाचौंध से भरी थी. लेकिन प्रयागराज कुंभ में किन्नर अखाड़े की एंट्री इतनी आसान नहीं थी. इसके लिए किन्नर अखाड़े ने एक लंबी लड़ाई लड़ी है.
प्रयागराज के कुंभ में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब 13 अखाड़ों के अलावा किसी अन्य अखाड़े ने पेशवाई निकाली हो. अब तक परंपरा के अनुसार अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद से मान्यता प्राप्त 13 अखाड़े ही पेशवाई निकालते थे. लेकिन लंबी लड़ाई के बाद किन्नर अखाड़ों को कुंभ में एंट्री की इजाजत मिली है.
किन्नर अखाड़े को प्रयागराज के कुंभ में एंट्री देने को लेकर काफी विवाद हुआ था. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने किन्नर अखाड़े के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. दरअसल कुंभ शुरू होने से पहले ही अखाड़ा परिषद और किन्नर अखाड़ा आमने-सामने आ गए थे. हालांकि किन्नर अखाड़े ने हार नहीं मानी. लैंगिकता के आधार पर उसने मेला प्रशासन से हक मांगा. जिसे उन्हें देना पड़ा.
देवत्व यात्रा में शामिल होने के लिए दिल्ली से आईं किन्नर संन्यासिनी पूजा ने कहा, "हमें बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ा, लेकिन हमारे साथ भोलेनाथ हैं. हर वक्त उन्होंने हमारा साथ दिया. यही कारण है कि उज्जैन के बाद हमें प्रयागराज में एंट्री मिली. कभी सोचा नहीं था कि लोगों का इतना प्यार और साथ मिलेगा.’’
भले ही अखाड़ा परिषद किन्नर अखाड़े के खिलाफ हो लेकिन मेला प्रशासन की ओर से किन्नर अखाड़े को वीआईपी सुविधाएं दी गई हैं.
प्रवचन के लिए मैटिंग के साथ 500x500 पाइप टिन, 500 वीवीआईपी कुर्सी, 200 सोफा, 250 तख्त, 500 ट्यूबलाइट, 500 शौचालय की सुविधा उपलब्ध कराने का अनुरोध किया गया था. बताया जा रहा है कि इनमें से अधिकांश मांगें पूरी हो चुकी हैं.
किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी कहती हैं-
किन्नरों की एक अलग दुनिया होती है. उनके नियम, कायदे सब अलग होते हैं. लिहाजा उन्हें जानने और समझने के लिए लोगों में उत्सुकता बनी रहती है. यही कारण है कि कुंभ के दौरान किन्नर आर्ट विलेज बनाया गया है.
इसमें चित्र प्रदर्शनी, कविता, कला प्रदर्शनी, दृश्यकला, फिल्में, इतिहास, फोटोग्राफी, साहित्य, स्थापत्य कला, नृत्य एवं संगीत आदि का आयोजन किया जाएगा. इसमें आध्यात्मिक ज्ञान और कला के क्षेत्र का भी ज्ञान मिलेगा. इतिहास में रामायण, महाभारत आदि में किन्नरों के महत्व के बारे में भी लोग जान सकेंगे. कुल मिलाकर यह आर्ट विलेज अपने आप में किन्नरों की दुनिया का एक झरोखा होगा.
साल 2016 में उज्जैन में हुए कुंभ के दौरान किन्नर अखाड़ा अस्तित्व में आया. कुंभ के दौरान ही किन्नर अखाड़े की विधिवत स्थापना हुई. आचार्य महामंडलेश्वर के रुप में लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी नियुक्त हुईं.
उज्जैन मुख्यालय स्थित किन्नर अखाड़े में पांच महामंडलेश्वर, 20-25 पीठाधीश्वर और बहुत सारे महंत हैं. किन्नर अखाड़े की योजना काशी, प्रयाग, हरिद्वार और नासिक में अपना आश्रम स्थापित करने की है. इसके लिए तैयारियां भी जोरों पर हैं.
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