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MP: कूनो नेशनल पार्क में 2 नन्हें शावकों ने तोड़ा दम, अब तक 3 चीता शावकों की मौत

कूनो राष्ट्रीय उद्यान ने कहा-"दो शावकों की हालत गंभीर होने के बाद सभी कोशिशों के बावजूद उनको बचाया नहीं जा सका है."

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<div class="paragraphs"><p>MP: कूनो नेशनल पार्क में 2 नन्हें शावकों ने तोड़ा दम,दो दिन पहले हुई थी 1 की मौत</p></div>
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MP: कूनो नेशनल पार्क में 2 नन्हें शावकों ने तोड़ा दम,दो दिन पहले हुई थी 1 की मौत

(फोटो- ट्विटर/@KunoNationalPark)

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मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के कूनो नेशनल पार्क (Kuno National Park) में चीते और उनके शावकों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. गुरुवार को एक बार फिर से दो शावक चीतों के मौत की खबर सामने आई है. पिछले दिनों एक और नन्हे शावक की मौत हुई थी. कूनो अभ्यारण में अब तक तीन चीतों और तीन नन्हे शावकों की मौत हो चुकी है.

पीसीसीएफ जेएस चौहान द्वारा जानकारी दी गई है कि कूनो नेशनल पार्क में एक चीते की मौत होने के बाद तीन अन्य शावकों की स्थिति ठीक नहीं लग रही थी. इसे ध्यान में रखते हुए कूनो वन्य प्राणी चिकित्सकों की देखरेख में इन तीनों शावकों को रखा गया था. अधिक तापमान होने और लू के चलते इनकी तबीयत खराब होना बताई गई है. गुरुवार को उपचार के दौरान दो की मौत हो गई है, एक की हालत अभी भी गंभीर बनी हुई है.

कूनो नेशनल पार्क की तरफ से जारी किए गए प्रेस नोट में कहा गया है कि पिछले दिनों एक शावक की मौत होने के बाद बचे 3 शावकों और मादा चीता ज्वाला की पालपुर में तैनात वन्यप्राणी डॉक्टरों की टीम और मॉनीटरिंग टीम द्वारा लगातार निगरानी की गई और चीता ज्वाला को सप्लीमेंट फूड दिया गया.

दो शावकों की हालत गंभीर होने के बाद सभी कोशिशों के बावजूद उनको बचाया नहीं जा सका है. बचे हुए एक शावक को पालपुर के चिकित्सालय में रखा गया है और लगातार उपचार किया जा रहा है.

प्रेस नोट में बताया गया कि उपचार के लिए नमीबिया और साउथ अफ्रीका के सहयोगी चीता एक्सपर्ट और डॉक्टरों से सलाह ली जा रही है. मौजूदा वक्त में मादा चीता ज्वाला स्वस्थ है और उसकी निगरानी की जा रही है.

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इससे पहले भी हो चुकी हैं मौतें

बता दें कि पिछले दिनों ज्वाला चीते के एक शावक की मौत बाडे में हुई, तब जिम्मेदारों के द्वारा सफाई दी गई थी कि वह शावक जन्म से कमजोर था और ऐसे शावक बहुत कम जिंदा रह पाते हैं. लेकिन अब दो अन्य शावकों की मौत भी हो गई है, जिसे लेकर जिम्मेदारों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े हो रहे हैं कि आखिर इन शावकों की मौत क्यों हो रही है, इसके पीछे की असली वजह क्या है? जब पिछले दिनों एक शावक की मौत हुई तो उसके बाद सावधानियां क्यों नहीं बरती गईं? क्या प्रशासन को इसे लेकर गंभीर नहीं होना चाहिए?

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