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बिना UPSC परीक्षा भर्ती, क्या है लैटरल एंट्री, क्यों है विवाद?

कुछ नेता तो ये भी कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया से “अपनों” को लाभ पहुंचाया जा रहा है

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भारत
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कुछ नेता तो यह भी कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया से “अपनों” को लाभ पहुंचाया जा रहा है
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कुछ नेता तो यह भी कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया से “अपनों” को लाभ पहुंचाया जा रहा है
(फोटो-AlteredByQuint)

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केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में ज्वॉइंट सेक्रेटरी और डायरेक्टर लेवल के पदों को भरने के लिए सरकार “लेटरल इंट्री” का सहारा ले रही है, जिसकी चयन प्रक्रिया को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. कुछ नेता तो यह भी कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया से “अपनों” को लाभ पहुंचाया जा रहा है. जानिए क्या है पूरा मामला... क्या है यह प्रक्रिया?

  • केंद्र ने विभिन्न विभागों के लिए ज्वॉइंट सेक्रेटरी स्तर के 3 और डायरेक्टर स्तर के 27 पदों को भरने के लिए UPSC ने बुलाए हैं आवेदन
  • बिना UPSC परीक्षा के सीधे अधिकारी बना रही है सरकार
  • इन डायरेक्ट नियुक्तियों को ही कहा जा रहा है “लैटरल एंट्री”

क्या है लैटरल एंट्री?

• 2017 में सरकार ने ब्यूरोक्रेसी में सिविल सेवाओं में परीक्षा के माध्यम से नियुक्ति के अलावा अन्य क्षेत्रों यानी लेटरल एंट्री से प्रवेश का प्रावधान अर्थात सीधी नियुक्ति करने पर विचार करने की बात कही थी.

• नीति आयोग ने एक रिपोर्ट में कहा था कि यह ज़रूरी है कि लेटरल एंट्री के तहत विशेषज्ञों को सिस्टम में शामिल किया जाए.

• इसी को ध्यान में रखकर सरकार ने ब्यूरोक्रेसी के लिये लेटरल एंट्री की शुरुआत की थी.

• इसमें कोई लिखित परीक्षा नहीं होती है, इंटव्यू के बाद सलेक्शन होता है. शैक्षणिक योग्यता पदानुसार तय की जाती है.

• नियुक्त हुए उम्मीदवारों का तीन साल का शुरुआती कॉन्ट्रैक्ट होता है, जिसे पांच साल तक बढ़ाया जा सकता है. यानी 3-5 साल की नियुक्ति प्रदान की जाती है.

केंद्र सरकार ने लेटरल एंट्री के तहत निजी क्षेत्र के 9 विशेषज्ञों को विभिन्न विभागों में संयुक्त सचिव के पदों पर नियुक्त किया था. तब यह संघ लोक सेवा आयोग द्वारा की गई लेटरल इंट्री की पहली भर्ती थी.

• कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय को 9 विशेषज्ञ के पदों के लिये 6077 आवेदन मिले थे. जिसमें से नौ का चयन किया गया था.

• UPSC द्वारा चुने गए 9 विशेषज्ञों में अंबर दुबे (नागरिक उड्डयन), अरुण गोयल (वाणिज्य), राजीव सक्सेना (आर्थिक मामले), सुजीत कुमार बाजपेयी (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन), सौरभ मिश्रा (वित्तीय सेवाएँ), दिनेश दयानंद जगदाले (नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा), सुमन प्रसाद सिंह (सड़क परिवहन और राजमार्ग), भूषण कुमार (शिपिंग) और काकोली घोष (कृषि, सहयोग और किसान कल्याण) शामिल थे.

• काकोली घोष ने ज्वॉइन नहीं किया था, जबकि बाकियों को तीन साल के कॉन्ट्रैक्ट में नियुक्त किया गया था.

• पिछले साल अरुण गोयल इस्तीफा देकर वापस प्राइवेट सेक्टर की ओर चले आए थे.

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ताजा विवाद क्यों खड़ा हुआ?

संघ लोक सेवा आयोग यानी UPSC द्वारा 3 ज्वॉइंट सेक्रेटरी और 27 डायरेक्टर लेवल के जिन पदों के लिए अधिसूचना प्रकाशित की गई है, उसमें लिखा है कि ये सभी पद अनारक्षित होंगे यानी इसमें किसी भी प्रकार का कोटा नहीं होगा. एससी, एसटी या ओबीसी वर्ग के उम्मीदवारों के लिए अलग से कोटे का कोई प्रावधान नहीं रखा गया है. बता दें कि आमतौर पर इन पदों पर सिविल सेवा अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है. लेकिन लेटरल एंट्री की वजह से प्राइवेट सेक्टर के अनुभवी और विशेषज्ञ पेशेवरों को इस पद पर काम करने का मौका मिलेगा. इस अधिसूचना के आने के बाद से राजनीतिक गलियारे में विरोध भी हुआ.

• सपा से राज्यसभा सांसद राम गोपाल यादव ने सीधी भर्ती किए जाने का मुद्दा सदन में उठाया था. उनका कहना था कि ऐसा करने से सिविल सेवा प्रतिभागियों और आईएएस अधिकारियों में नाराजगी है. ऐसी नियुक्तियों में आरक्षण व्यवस्था का भी ध्यान नहीं रखा गया.

• आरजेडी RJD के तेजस्वी यादव ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के एक ट्वीट पर सवाल उठाते हुए उनसे पूछा कि क्या यह आरक्षण को कमतर करने की कोशिश नहीं है? तेजस्वी ने एक ट्वीट में पूछा है कि "आपको यह बताना चाहिए कि क्या UPSC की चयन प्रक्रिया ‘राष्ट्र निर्माण' के लिए ‘इच्छुक, प्रेरित और प्रतिभाशाली' उम्मीदवारों का चयन सुनिश्चित करने में विफल हो रही है या चुनिंदा लोग ज्यादा हैं? क्या यह वंचित वर्गों के लिए दिए गए आरक्षण को दरकिनार और कम करने की एक और चाल नहीं है?

• सपा नेता अखिलेश यादव ने अपने एक ट्वीट में कहा है कि ‘BJP खुलेआम अपनों को लाने के लिए पिछला दरवाजा खोल रही है और जो अभ्यर्थी सालों-साल मेहनत करते हैं उनका क्या? बीजेपी सरकार अब ख़ुद को भी ठेके पर देकर विश्व भ्रमण पर निकल जाए वैसे भी उनसे देश नहीं संभल रहा है.' अखिलेश ने यह भी कहा कि जो आईएएस बनने की तैयारी में हैं उनके अवसर छीन लिए गए.

क्या पहले भी ऐसा होता आया था?

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को 1971 में वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय में आर्थिक सलाहकार के तौर पर नियुक्त किया गया था और उन्होंने सिविल सेवा की परीक्षा नहीं दी थी. उन्हें 1972 में वित्त मंत्रालय का मुख्य आर्थिक सलाहकार भी बनाया गया था. यह पद भी संयुक्त सचिव स्तर का ही होता है.मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री के पद पर थे तब रघुराम राजन को अपना मुख्य आर्थिक सलाहकार नियुक्त किया था और वे भी UPSC से चुनकर नहीं आए थे, लेकिन संयुक्त सचिव के स्तर तक पहुंचे थे. उनको बाद में रिज़र्व बैंक का गवर्नर भी बनाया गया था. बिमल जालान ICICI के बोर्ड मेंबर थे, जिन्हें सरकार में लेटरल एंट्री मिली थी और वह रिज़र्व बैंक के गवर्नर बनाए गए थे. उर्जित पटेल (रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर) भी लेटरल एंट्री से इस पद पर आए थे.

हालांकि दिग्गज अर्थशास्त्रियों को सरकार में अहम जिम्मेदारी देने का लंबा इतिहास रहा है. साथ ही ये नियुक्तियां इक्का-दुक्का हुई हैं. लेकिन इतनी बड़ी संख्या में आईएसएस अफसरों की जगह लैटरल एंट्री को लेकर विवाद है.

नंदन निलेकणी को भी इसी प्रकार संवैधानिक संस्था UIDAI का चेयरमैन नियुक्त किया गया था. इंदिरा गांधी ने मंतोश सोंधी की भारी उद्योग में उच्च पद पर बहाली की थी. लाल बहादुर शास्त्री ने डॉ. वर्गीज कुरियन को NDBB का चेयरमैन नियुक्त किया था. राजीव गांधी ने के.पी.पी. नांबियार को इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग की ज़िम्मेवारी सौंपी थी. उन्होंने सैम पित्रोदा को भी कई अहम ज़िम्मेदारियां सौंपी थी. वित्त मंत्रालय में संयुक्त सचिव तथा योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के अलावा शंकर आचार्य, राकेश मोहन, अरविंद विरमानी और अशोक देसाई जैसे कई लोगों ने लेटरल एंट्री के जरिए सरकार में जगह बनाई थी.

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