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राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) बनाने का प्रयास करेगा.
यह शब्द हैं संविधान की धारा 44 के. इसी धारा के तहत बीएस चौहान की अध्यक्षता वाले लॉ कमीशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड पर नागरिकों के सुझाव मांगे हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड की दिशा में बढ़े इस कदम का मुस्लिम संगठनों ने विरोध भी शुरू कर दिया है.
आज अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसे मोदी सरकार की खुराफात बताया है. भविष्य में उन्होंने इसके विरोध में प्रदर्शन तेज करने का ऐलान भी किया है. मुस्लिमों का मानना है कि यह उनके धार्मिक मसलों में छेड़खानी है. वहीं कोड का समर्थन करने वाले महिला अधिकारों के हनन के आधार पर इसकी जरूरत बताते हैं.
यूनिफॉर्म सिविल कोड को अक्सर लोग राजनीतिक चश्मे से देखते समय हिंदू और मुस्लिम का झगड़ा मान लेते हैं. हालांकि सिविल कोड में प्रमुख मुद्दा महिलाओं के अधिकारों और लैंगिक न्याय का है जिसका भारत में प्रचलित पर्सनल लॉ में बड़े पैमाने पर हनन होता है.
कमीशन ने 16 सवालों की एक प्रश्नावली बनाई है जिसमें ‘तीन तलाक’ और महिलाओं के प्रॉपर्टी राइट्स से संबंधित मुद्दे शामिल हैं. कमीशन इसके जरिए यूनिफॉर्म सिविल कोड के सभी मॉडल्स पर चर्चा करवाना चाहता है. इन सवालों के जवाब 45 दिन में दिए जा सकते हैं.
मुस्लिमों में बड़े पैमाने पर यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आपत्ति है. इसको लेकर उन्होंने पहले भी खूब विरोध भी किया है.
उनका मानना है कि उनका व्यक्तिगत कानून के मसले हदीस और कुरान पर आधारित है. इसे यूनिफॉर्म सिविल कोड से रेगुलेट नहीं किया जा सकता.
इंदौर की रहने वाली शाहबानो को उसके पति अहमद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था. जिसके बाद वो सुप्रीम कोर्ट पहुंची और गुजर बसर के लिए मुआवजे की मांग की. मुस्लिम संगठनों ने इसे अपने धार्मिक अधिकारों में छेड़खानी बताते हुए विरोध शुरू कर दिया. अाखिर में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में शाहबानो को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था. 1984 में कांग्रेस पूरे बहुमत से सरकार में आई थी. राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे.
राजीव ने द मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन अॉफ राइट अॉन डिवोर्स) एक्ट, 1986 पास करवाया. इस कानून में महिलाओं को तलाक के 90 दिनों तक ही पति से गुजरा भत्ता लेने का प्रावधान था. इस कानून के जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया.
कानून को विपक्षी दलों, विशेषकर बीजेपी ने इस कानून को मुस्लिमों के तुष्टिकरण की संज्ञा दी. साथ ही इसे सुप्रीम कोर्ट का अपमान भी बताया गया. इसके अलावा महिला संगठनों द्वारा भी बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किए गए थे.
भारत में कई धर्मों के लोग हैं. पारिवारिक मामलों ( शादी, तलाक, उत्तराधिकार आदि) में उनके अपने कायदे-कानून रहे हैं. इन्हें बाद में कोडिफाई किया गया .
जैसे हिन्दुओं के कानून को चार कानूनों के जरिए इकट्ठा किया गया जिसमें हिन्दू मैरिज एक्ट(1955) और हिन्दू सक्सेसन एक्ट(1956) भी शामिल हैं. ईसाइयों के कानून को क्रिश्चियन पर्सनल लॉ (1871) में इकट्ठा किया गया है. वहीं मुस्लिमों के लिए इस विषय में दो कानून हैं.
अभी तक लागू हुए ज्यादातर पर्सनल लॉ में महिलाओं के अधिकारों का हनन हो रहा है. तीन तलाक जैसी प्रथाओं की वजह से मुस्लिम कानूनों को सबसे दुखदायी माना जाता है. वहीं हिंदू पर्सनल लॉ में भी उत्तराधिकार के कानून को लेकर विवाद है.
लॉ कमीशन ने इसमें लोगों से प्रमुख मुद्दों पर राय मांगी है. लॉ कमीशन के सवाल आप यहां जाकर देख सकते हैं. http://www.lawcommissionofindia.nic.in/questionnaire.pdf
आज अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल बोर्ड ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपना स्टैंड साफ किया. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कई मुस्लिम जमातों के प्रतिनिधि भी आए थे. बोर्ड ने मोदी सरकार पर मुद्दे का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया. साथ ही अपनी प्रश्नावली भी जारी की.
तीन तलाक के मुद्दे के सवाल पर बोर्ड ने पल्ला झाड़ते हुए कहा कि वो सुप्रीम कोर्ट में अपना जवाब दे चुके हैं. वहीं मुस्लिम मैरिज एक्ट पर सवाल किए जाने को लेकर बोर्ड ने कहा कि वो केवल यूनिफार्म सिविल कोड पर चर्चा करने आए हैं.
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Published: 13 Oct 2016,10:32 PM IST