advertisement
इंश्योरेंस शब्द जुबान पर आते ही सबसे पहली बात जो स्ट्राइक करती है वो है कल की फिक्र. इंश्योरेंस पर्सनल फाइनेंस से जुड़ पहलू है, लेकिन आजादी के आंदोलन के दौरान इसकी अहमियत राष्ट्र निर्माताओं ने समझ लिया था.
इसलिए साल 1931 के कराची अधिवेशन में इंश्योरेंस का रोड मैप तैयार हुआ. गांधीवादी समाजवादी मूल्यों से प्रभावित राष्ट्र में बीमा को भी राष्ट्रीय कंपनी बनाने की बात तब से होने लगी थी. आजादी के बाद लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने नेहरू सरकार को सलाह दी कि कराची अधिवेशन के मुताबिक बीमा का देश में राष्ट्रीयकरण किया जाए. संसद के भीतर और बाहर भी इसको लेकर जोरदार बहस हुई. कांग्रेस के 1954 के अवाड़ी अधिवेशन में लाइफ इंश्योरेंस के राष्ट्रीयकरण पर काफी जोर दिया गया.
वो साल 1956 में 1 सितंबर की ऐतिहासिक तारीख थी. ऑल इंडिया रेडियो ने अनाउंस किया कि वित्त मंत्री सी डी देशमुख रात 8.30 मिनट पर देश के नाम संबोधन करेंगे. किसी को तब कुछ आइडिया नहीं था कि क्या होने वाला है.
ये भारत में लाइफ इंश्योरेंस के राष्ट्रीयकरण का सबसे पहला और सबसे बड़ा कदम था. सुबह 9 बजे सरकारी अफसर अलग -अलग बीमा कंपनियों के दफ्तर पहुंचकर मैनेजमेंट का कंट्रोल लेने पहुंच गए. सीडी देशमुख लिखते हैं लाइफ इंश्योरेंस का नेशनलाइजेशन एक सबसे ज्यादा सीक्रेट मिशन को अंजाम देने जैसा था. इसके लिए 25 अफसरों का एक दल बनाया गया था. उन्हें कहा गया था कि जैसे ही वित्त मंत्री का ऑल इंडिया रेडियो पर संबोधन होगा वो अपने अपने दफ्तरों में पहुंचकर मोर्चा संभाल लेंगे.
'आकाशवाणी' होने के बाद अब जंग संसद में लड़ी जानी थी. संसद के अगले सत्र यानि शीतकालीन सत्र में इंश्योरेंस पर पारा गर्म रहा. नेशनलाइजेशन बिल के पक्ष और विपक्ष में जोरदार तकरीरें हुईं. वित्त मंत्री सी डी देशमुख और कांग्रेस ने देश और इकनॉमी की मजबूती के लिए फैसले को जरूरी बताया.
सी डी देशमुख ने कहा लोगों की सेविंग की इफेक्टिव मोबिलाइजेशन के लिए राष्ट्रीयकरण सबसे बढ़िया डायरेक्शन है. निजी कंपनियों को भी भरोसा देने की कोशिश हुई कि इसे निजीकरण के खिलाफ कदम ना समझा जाए लेकिन तब के बिजनेस घरानों को ये पसंद नहीं आया. निजी हाथों से छीनकर सरकारी हाथों में सौंपे जाने का जोरदार विरोध हुआ. दावा किया गया कि इससे LIC की ग्रोथ रुक जाएगी.
भारत जैसे देश में LIC के लिए सफलता की राह आसान नहीं थी. सदियों से अपना देश संयुक्त परिवार के मूल्यों वाला रहा है. संयुक्त परिवार में किसी अनहोनी या कमाने वाले अकाल मृत्यु के बाद संयुक्त परिवार का जो सिस्टम था, जिम्मेवारी संभाल लेता है. ऐसे मूल्यों के बीच LIC जैसे पर्सनल फाइनेंस के प्रोडक्ट को खड़ा करना बहुत बड़ी चुनौती थी.
LIC कराने में निजी हिचकिचाहट पुरानी पीढ़ी के बुजुर्गों में आज भी कई बार बातचीत में झलक जाती है. ऐसे में LIC करना और कराना किसी टैबू से कम नहीं था. मतलब लोग LIC कराने को लेकर कई बार हिचकते थे और इस हिचकिचाहट को तोड़ने के लिए LIC का हर वक्त अपने ब्रांड का एक बड़ा मैसेज देना पड़ा.
जब सरकार के हाथ में LIC आई तो अब मैसेजिंग सबसे ज्यादा जरूरी थी. सवाल ये भी था कि आखिर लोगों के पैसे पर सरकार का कंट्रोल क्यों हो? इसलिए अब ऐसे संदेश दिया जाना बेहद जरूरी था कि उनका भरोसा सरकार के एक्शन पर बढ़े. इसलिए सबसे पहले जरूरी स्लोगन और लोगो पर काम शुरु हुआ.
सभी क्षेत्र तक पहुंचने के लिए LIC ने एजुकेटिव प्रोग्राम लॉन्च किए. LIC ने रीजनल ब्यूरो खोलकर अपनी पैठ बनाई. अगर आप कुछ क्षेत्रीय भाषाओं की कहानियां पढ़ेंगे तो समझेंगे कि LIC एजेंट के लिए पॉलिसी बेचना तब कितना मुश्किल होता था.
LIC ने अपनी शानदार सर्विस और कस्टमर संतुष्टि से इसे ऐसा बना दिया कि इश्योरेंस मतलब LIC हो गया. बहुत कम प्रोडक्ट ऐसे हैं जो पर्याय बनकर उभरते हैं. जैसे भारत में कार मतलब मारुति, फ्रिज मतलब गोदरेज वैसे ही इंश्योरेंस मतलब LIC हुआ. इस ब्रांड वैल्यू को बनाने के लिए LIC ने जोरदार तरीके से काम किया. 70 के दशक में LIC ने एक एड बनाया था जिसमें एक दो हाथों के बीच में एक मुस्कुराते बच्चे की तस्वीर दिखाई गई . ये LIC की फिलॉसफी को लोगों को समझाने के लिए बनाया गया.
इसी तरह LIC ने रोटी, कपड़ा और मकान के साथ बीमा को जोड़कर एक जरूरी चीज बना दिया. 80 और 90 के दशक में दूरदर्शन पर ये एड खूब आते थे और लोगों ने इन्हें पसंद भी किया. फिर ‘ना चिंता ना फिकर’, LIC है तो कहीं और जाना क्यों से होते हए ‘जिंदगी के साथ भी जिंदगी के बाद भी’ जैसे क्रांतिकारी मुकाम तक पहुंचा और अब ये ‘हर पल आपके साथ ‘ का वादा करता है.
LIC जब कॉरपोरेशन बना तो इसका मकसद बताया गया था कि देश के गरीब गुरबों और सामान्य आदमी तक LIC पहुंचाई जाएगी लेकिन इसके लिए सबसे पहले जरूरी था कि गांवों तक LIC पहुंचे.
बीमा ग्राम के साथ LIC ने इस दिशा में बड़ी पहल की. बीमा ग्राम का मकसद था- कम से कम गांव के हर घर के एक सदस्य के पास LIC की पॉलिसी हो. महाराष्ट्र के अमरावती को पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर चुना गया. इसी तरह राजस्थान में तो LIC ने पंचायत, ब्लॉक के साथ मिलकर शानदार प्रयोग किया. पंचायतों के जरिए प्रोडक्ट बेचा गया और उनसे बड़ी तादाद में लोग जुड़े और जो कमीशन आया उससे पंचायत के विकास के काम में लगाया गया. इसके साथ ही को-ऑपरेटिव सोसाइटी, पोस्ट ऑफिस को LIC ने पार्टनर बनाया.
सिर्फ मैसेजिंग ही नहीं LIC का मतलब बिजनेस है. बिजनेस लाना और लोगों की सिक्योरिटी बढ़ाना, इसलिए सरकारी हाथ में आने के बाद धीरे धीरे LIC ऐसे प्रोडक्ट लाने लगी जिनसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच बढ़ाई जा सके.
सरकारी कर्मचारियों का ग्रुप इंश्योरेंस हो या फिर SME में काम करने वाले इंडस्ट्रियल वर्कर. ऐसी ही एक स्कीम थी जनता स्कीम ..जो साल 1957 में फैक्टरियों और छोटे इंडस्ट्री में काम करने वालों के लिए थी. ये पॉलिसी काफी हिट हुई. लेकिन इस कॉरपोरेशन ने कम इम्तिहान नहीं दिए. मुंद्रा अफेयर ने LIC पर दाग लगाया तो कभी बाढ़ , सूखा और युद्ध और महंगाई ने लोगों की जेबें खाली कर दी लेकिन LIC बदलते सामाजिक और आर्थिक हालात के साथ कदमताल करते हुए अपने लिए नई लकीर खींचता गया. आज कामयाबी के उस शिखर पर खड़ा है जहां पहुंचना असंभव सा लगता है.
अगर LIC के राष्ट्रीयकरण के सफर यानि साल 1956 से देखें तो अब तक LIC ने अपने बिजनेस, नेटवर्क और प्रोडक्ट लगभग सभी पैमानों पर तमाम चुनौतियों के बाद बुलंदियां हासिल की हैं. इसे सच ही सरकार का क्राउन माना जा सकता है लेकिन अब राष्ट्रीयकरण का प्लॉट बदल रहा है.
एक बार फिर से LIC का निजीकरण हो रहा है. अभी सरकार LIC का IPO ला रही है. इसके जरिए LIC का मार्केट कैप बढ़ाना है. ताकि ग्लोबल दिग्गज बीमा कंपनियों के मुकाबले LIC अपना दम खम दिखा सके. ये भारत का अब तक का सबसे बड़ा IPO तो है ही लिस्टिंग के साथ दुनिया के सबसे बड़े लिस्टिड इंश्योरेंस कंपनियों में शुमार हो जाएगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)