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पाई-पाई को मोहताज 64% मजदूर,पैसा नहीं तो भिवंडी स्टेशन से लौटाए गए

ट्रेनों की संख्या कम, मजदूर ज्यादा. सरकारी राहत भी नहीं पहुंच पा रही है

क्विंट हिंदी
भारत
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लॉकडाउन के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूर
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लॉकडाउन के कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में फंसे प्रवासी मजदूर
(फोटो:क्विंट हिंदी)

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न पैसा बचा है, न खाना ठीक से मिल रहा. ऐसे में मजदूर अपने गांव लौटना चाहता है. बहुत हो हल्ले के बाद श्रमिक ट्रेनें चली हैं लेकिन मजदूरों की समस्या खत्म नहीं हुई. अलग-अलग राज्यों से जो खबरें आ रही हैं वो परेशान कर देने वाली हैं.

भिवंडी: टिकट के पैसे न होने के चलते 100 मजदूर वापिस लौटे

भिवंडी से उत्तरप्रदेश के गोरखपुर के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाई गई थी. लेकिन इसमें करीब 90 सीटें खाली रह गईं. किसी तरह अपने घर लौटने की आस में स्टेशन पहुंचे 100 से ज्यादा मजदूरों को वापस लौटना पड़ा. इन मजदूरों के पास टिकट खरीदने के पैसे नहीं थे.

बता दें श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में मजदूरों को स्लीपर क्लास टिकट और बीस रुपये खाने के अतिरिक्त देने हैं. घटना पर रेलवे का कहना है कि उन्हें खाने और पानी का इंतजाम करने के लिए कहा गया है, टिकट और मेडिकल की जवाबदेही संबंधित राज्य सरकारों की है. राज्य सरकारें इस मुद्दे पर कुछ ठोस जवाब नहीं दे रही हैं.

महाराष्ट्र और गुजरात में बड़ी संख्या में लोगों ने घर लौटने के लिए पंजीकरण करवाया है. लेकिन ट्रेनों की संख्या कम है.

मजदूरों की शिकायत है कि जब उनकी रोजी छिन गई, खाने तक के पैसे नहीं हैं तो फिर वो टिकट का पैसा कहां से लाएंगे?

इस बीच मुंबई से बीजेपी विधायक अतुल भातकालकर ने कहा है कि राज्य सरकार को जिम्मेदारी लेनी ही होगी.

लॉकडाउन की वजह से फंसे मजदूरों को उनके गंतव्य तक पहुचाने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है,अगर किसी के पास पैसे नहीं ऐसे में उसे जाने से वंचित रखना ठीक नहीं,सरकार को जिम्मेदारी लेनी होगी. 
अतुल भातकालकर,बीजेपी विधायक,मुंबई

64 फीसदी प्रवासी मजदूरों के पास 100 रुपये से भी कम पूंजी: रिपोर्ट

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक लॉकडॉउन में काम न होने के चलते अब 64 फीसदी मजदूरों के पास 100 रुपये से भी कम पूंजी बची है. अखबार में छपी यह खबर ‘स्ट्रैंडेड वर्कर्स एक्शन नेटवर्क (SWAN)’ की एक रिपोर्ट के हवाले से है.

इसमें 32 दिनों में आई फोन कॉल, जिनमें मदद की गुहार लगाई गई है, उनके आधार पर यह रिपोर्ट बनाई गई है. इसमें 16,863 लोगों से बात की गई. रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मजदूरों को सरकारी मदद मिलने में भी काफी समस्या का सामना करना पड़ रहा है.

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घर लौटने के लिए सिर्फ मुंबई के 94 पुलिस स्टेशनों में 15000 आवेदन मजदूरों ने दिए.इसके अलावा राज्य के आपदा प्रबंधन कंट्रोल रूम को भी ई-मेल के जरिए 7000 आवेदन प्राप्त हुए. मजदूरों की शिकायत है कि पूरी प्रकिया जटिल है. 

बिन खाना-पैसा गुजरात बॉर्डर पर फंसे मजदूर

मजदूरों के सब्र का बांध भी टूटता दिख रहा है. टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक गुजरात-मध्य प्रदेश सीमा पर दाहोद में मजदूरों ने पथराव किया. इसी तरह गुजरात - राजस्थान बॉर्डर पर शामलाजी में भी हुआ. वडोदरा की सीमा पर भी हिंसा की खबर है. ये मजदूर मुसीबत में हैं क्योंकि इनके पास न खाना है और न पैसा बचा है. मजदूर इसलिए खफा थे क्योंकि इन्हें सीमा पार नहीं करने दिया गया. दाहोद की सीमा से 200 मजदूरों को ले जा रही एक बस को वापस सूरत लौटा दिया. मजदूरों का कहना है कि उनके पास था हालांकि सूरत जिला प्रशासन ने ऐसी किसी परमिशन से इंकार किया है.

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Published: 03 May 2020,01:48 PM IST

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