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हम यह नहीं कह सकते कि हमें चेतावनी नहीं दी गई थी. लखनऊ के पास एक ढाबे के मालिक ने नाटकीय ढंग से बताया कि तूफान आने वाला है.
ऐसी ही आवाजें मध्य उत्तर प्रदेश और वाराणसी की यात्रा के दौरान भी सुनी गईं, जहां से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार तीसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. उनके जीतने की पूरी संभावना है लेकिन कम अंतर के साथ.
फूलपुर के उत्साह ने कांग्रेस को फिर से उत्साहित कर दिया है. राहुल गांधी ने दावा किया कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) केवल "क्योटो" (वाराणसी को इस जापानी शहर के नाम से बुलाया जाता है) से जीतेगी और बाकी 79 सीटों पर इंडिया गुट का दावा होगा.
ऐसा नहीं हो सकता है लेकिन गठबंधन का आत्मविश्वास इस हद तक बढ़ रहा है कि उन्होंने राम मंदिर या लाभार्थियों के बड़े समूह (मुफ्त भोजन जैसी मुफ्त सुविधाओं के कारण) के चुनावों पर प्रभाव को पूरी तरह नजर अंदाज कर दिया है.
भले ही ये दिखाया जा रहा हो कि UP में बीजेपी आसानी से जीत रही है लेकिन देखा जाये तो 2022 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी को अच्छी टक्कर दी थी.
जामेई के अनुसार, इसका मुख्य कारण यह था कि राज्य के बड़े हिस्से में, दलित, जो ज्यादातर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के साथ जुड़े हुए थे, ने बीजेपी को वोट देने का फैसला किया क्योंकि उन्हें एसपी पर पूरा भरोसा नहीं था. अब सवाल यह उठता है कि क्या इस बार कुछ अलग होगा?
दलित, बीजेपी के 400-पार के नारे से चिंतित हैं, उन्हें लगता है कि ऐसा होने पर संविधान को बदला जाएगा, जिसका मतलब उनके लिए आरक्षण को खत्म करना है.
हालांकि बीजेपी नेतृत्व यह दिखाने की पूरी कोशिश कर रहा है कि वे संवैधानिक रूप से मिलने वाली अनिवार्य नौकरी को लेकर आरक्षण खत्म नहीं करेंगे लेकिन दलितों का विश्वास हासिल करना आसान नहीं है. इसके विपरीत, दलित, कांग्रेस नेता राहुल गांधी पर अधिक भरोसा दिखाता है.
जबकि राणे ने तर्क दिया कि दलित कांग्रेस पार्टी को वोट दे सकते हैं, कई वर्गों के लिए बीजेपी से अन्य दलों में जाने का असली कारण बेरोजगारी और महंगाई होगी. सरकार द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने के बावजूद, सरकार की योजना शिक्षित लेकिन बेरोजगार लोगों के समूह को रास नहीं आ रही है.
फूलपुर रैली के लिए आए लोगों के हताश चेहरों को देखकर, यह आश्चर्य की बात नहीं होगी कि उनमें से कई थोड़े से पैसों के लिए इजराइल में जाकर काम करने, रूसी या यूक्रेनी सेनाओं में शामिल होने के इच्छुक हैं.
देश छोड़ने वाले युवाओं की संख्या वास्तव में बहुत अधिक हो गई है और वे भाग्यशाली हैं. दुर्भाग्यशाली लोग अपने माता-पिता की मेहनत की कमाई पर टिके हैं क्योंकि वे सरकारी नौकरियों के लिए लगातार कॉम्पिटेटिव परीक्षाओं में भाग लेते हैं जो उन्हें कहीं नहीं ले जाती हैं. ऐसे में इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी का नौकरी का वादा युवाओं को उम्मीद दे रहा है.
2014 के चुनावों में, बीजेपी ने हर साल दो करोड़ नौकरी देने का वादा किया था जिसकी वजह से कई लोगों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ कर, बीजेपी और नरेंद्र मोदी का समर्थन किया था.
यह अलग बात है कि जब रोजगार की बात आई तो बीजेपी ने बहुत कम काम किया. इसके बजाय, वे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के साथ-साथ उन संस्थाओं का भी तेजी से निजीकरण करने लगे जो बीजेपी के वादे को सार्थक कर सकती थीं.
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