advertisement
तर्क किसे कहते हैं और गिनती कैसे की जाती है, ये आपको मालूम होगा. लेकिन जिन आंकड़ों की हम बात करने जा रहे हैं, उनमें तर्क और गिनती के तमाम कायदे-कानून ताक पर रख दिये गए. द क्विंट ने चुनाव आयोग के दो सेट आंकड़ों का अध्ययन किया. पहला सेट था वोटर टर्न आउट या EVMs में दर्ज की गई वोटिंग और दूसरा सेट था चुनाव 2019 के बाद EVM में की गई वोटों की गिनती. पहले से चौथे चरण के चुनाव में हमने 373 सीटें ऐसी पाईं, जहां आंकड़ों के दोनों सेट में फर्क नजर आया.
ये वो चार संसदीय क्षेत्र हैं, जहां आंकड़ों में सबसे ज्यादा फर्क पाए गए.
पहले चार चरण में 373 सीटों के लिए वोट पड़े. वोटों की गिनती के बाद इनमें 220 से ज्यादा सीटों पर मतदान से ज्यादा वोट काउंट दर्ज किये गए. बाकी सीटों पर वोटों की संख्या में कमी पाई गई.
गौर करने वाली बात है कि द क्विंट ने सिर्फ पहले चार चरणों में वोटिंग में असमानता के बारे में पूछा था. इनके बारे में निर्वाचन आयोग की वेबसाइट में साफ-साफ लिखा था - “Final Voter turnout of Phase 1,2,3 and 4 of the Lok Sabha Elections 2019”.
हम पांचवें, छठे और सातवें चरण के मतदान की बात कर ही नहीं रहे, क्योंकि EC की वेबसाइट ने इन्हें ‘estimated’ data, यानी अनुमानित आंकड़ा बताया है.
जब हमने निर्वाचन आयोग से पूछा कि वेबसाइट के टिकर से आंकड़े क्यों हटाए गए, तो आयोग ने कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा.
उसी शाम हमें EC से ईमेल मिला. अपने मेल में आयोग ने सिर्फ एक संसदीय क्षेत्र में वोटिंग में फर्क पर सफाई दी थी. EC ने लिखा था कि आंकड़े अधूरे हैं. जल्द ही उन्हें दुरुस्त कर लिया जाएगा.
हमने बाकी संसदीय क्षेत्रों के आंकड़ों में पाए गए अन्तर पर EC से फिर जानकारी लेनी चाही. हमने अपने ईमेल में पहले से चौथे चरण के सभी आंकड़ों का हवाला दिया. ईमेल में हमने EC की आधिकारिक वेबसाइट से डाउनलोड किये सभी आंकड़े भी संलग्न किये. हम अब भी EC के जवाब का इंतजार कर रहे हैं.
इसके बाद हमने निर्वाचन आयोग के सीनियर अधिकारियों से मिलने की भी बार-बार कोशिश की. हम इस गंभीर मसले पर उनका जवाब चाहते थे. लेकिन हमारी हर कोशिश नाकाम रही. भारत के निर्वाचन आयोग का कोई भी अधिकारी हमसे मिलने को राजी नहीं हुआ.
सवाल है, और बड़ी आश्चर्यजनक बात है कि नतीजों के ऐलान के चार दिन बाद भी (27 मई को) EC, द क्विंट से कहता है कि अभी वोटिंग के आंकड़े अधूरे हैं?
कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक, पोलिंग बूथ के प्रेसाइडिंग अफसर को हर दो घंटे पर अपने सीनियर अधिकारी को वोटिंग का आंकड़ा बताना होता है. तर्कों की बात करें, तो इस हालत में वोटिंग की जानकारी अपलोड करने में ज्यादा से ज्यादा कुछ दिन ही लगने चाहिए.
द क्विंट ने इन विसंगतियों के बारे में पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओ पी रावत से बातचीत की. उनका कहना था:
नीचे दिये गए कार्ड्स में हम आपको राज्यवार उन प्रमुख संसदीय क्षेत्रों के बारे में बता रहे हैं, जहां गिनती किये गए वोटों की संख्या, वोटिंग की संख्या से ज्यादा है. ये चार राज्य हैं तमिलनाडु, बिहार, उत्तर प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश.
कांचीपुरम से AIADMK उम्मीदवार के मारागथम की DMK उम्मीदवार सेल्वम जी के हाथों हार हुई. मारागथम के दफ्तर ने द क्विंट को बताया कि उन्हें वोटिंग की संख्या और वोट काउंट की संख्या में अन्तर के बारे में जानकारी है. फिलहाल वो जरूरी कागजात जमा कर रहे हैं. उन्हीं कागजात के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी.
जानकारों का कहना है कि अगर वोटिंग की संख्या और वोट काउंट की संख्या में अन्तर हो तो उम्मीदवार वोटों की दोबारा गिनती की मांग कर सकते हैं. हो सकता है कि दो सेट के आंकड़ों में फर्क दूर करने के बाद भी जीतने वाले उम्मीदवार की सेहत पर फर्क न पड़े, लेकिन गंभीर सवाल तो खड़े होते ही हैं -
मथुरा सीट से बीजेपी की हेमा मालिनी विजयी रहीं. EVM ने उनके पक्ष में 6,67,342 वोट दिखलाए, जबकि दूसरे नम्बर पर आए राष्ट्रीय लोक दल के उम्मीदवार नरेन्द्र सिंह को 3,77,319 वोट मिले.
औरंगाबाग सीट से बीजेपी के विजयी उम्मीदवार सुशील कुमार सिंह के पक्ष में EVM में 4,29,936 वोट पड़े, जबकि हारे हुए उम्मीदवार हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के उपेन्द्र प्रसाद के खाते में 3,58,611 वोट आए.
पूर्व गृह राज्य मंत्री और बीजेपी नेता किरेन रिजिजू को अरुणाचल प्रदेश संसदीय सीट से 63.02% वोट शेयर के साथ जीत हासिल हुई. जबकि कांग्रेस उम्मीदवार नाबम तुकी के खाते में महज 14.22% वोट शेयर थे.
इससे पहले द क्विंट ने नवंबर 2018 में मध्य प्रदेश विधान सभा चुनाव के दौरान भी वोटों में ऐसी ही असमानता के बारे में खबर दी थी. राज्य के 230 विधानसभा सीटों में 204 सीटों पर वोटिंग की संख्या और वोट काउंट की संख्या में अंतर पाया गया था.
EVM के एक जानकार के मुताबिक, एक भी वोट का फर्क नहीं होना चाहिए. और अगर ऐसा होता है तो निर्वाचन आयोग के अधिकारी को फौरन इसके बारे में अपने सीनियर अधिकारी को सूचना देनी चाहिए.
जानकार का कहना है कि ये बेहद गंभीर मसला है और EC को जनहित में जल्द से जल्द अपनी सफाई देनी चाहिए, ताकि चुनाव प्रक्रिया की पारदर्शिता और अखंडता बनी रहे.
ज्यादा वोटों के मामले में EC का रटा-रटाया जवाब हो सकता है कि ये सिर्फ अनुमानित आंकड़ा था. लिहाजा इसमें बढ़ोत्तरी लाजिमी थी (इस तथ्य को अनदेखा करते हुए कि वेबसाइट पर ‘final’ आंकड़ा बताया जा रहा था).
क्या EC सफाई दे सकता है: अगर वोटिंग का वर्तमान आंकड़ा ‘final’ आंकड़ा नहीं है, और डाले गए वोटों की संख्या बढ़ सकती है, क्योंकि अभी और आंकड़े आने बाकी हैं, तो कुछ संसदीय क्षेत्रों में गिनती किये गए वोटों की संख्या – पड़ने वाले वोटों की संख्या से कम कैसे हो सकती है?
क्या EC वोटों की गिनती में कमी के बारे में सफाई दे सकता है? क्या EC गिनती समाप्त हो जाने के बाद भी डाले गए वोटों के आंकड़े अपलोड करने में देरी की वजह बता सकता है? कानूनी प्रक्रिया के मुताबिक पोलिंग बूथ के प्रेजाइडिंग अफसर को हर दो घंटे पर निर्वाचन आयोग को मतदान के बारे में सूचना देनी होती है. वोटिंग को एक महीने से ज्यादा समय बीतने के बाद भी ‘final data’ अपलोड करने में देरी क्यों हुई?
विकसित देशों में, जैसे ब्रिटेन, जिसे लोकतंत्र का जनक भी कहा जाता है, कभी EVM का इस्तेमाल नहीं होता. वो अब भी कागज की बैलट प्रणाली पर भरोसा करता है.
जर्मनी में 2005 में EVM का प्रयोग शुरु हुआ. 2009 में फेडरल कंस्टीच्यूशनल कोर्ट ने फैसला दिया कि EVMs का इस्तेमाल गैरकानूनी है. ये भी कहा गया कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है.
अमेरिका, फ्रांस और नीदरलैंड जैसे कई देशों में भी EVM के प्रयोग पर रोक है. अमेरिका में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग का इकलौता साधन फैक्स या ईमेल है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)