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राजस्थान की कोटा-बूंदी लोकसभा सीट (Kota Bundi Loksabha Seat) पर कांटे की टक्कर है. बीजेपी ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला (Om Birla) को अपना प्रत्याशी बनाया है, जो 'ब्रांड मोदी' के सहारे वोट साधना चाहते है तो वहीं कांग्रेस ने जाति वोट बैंक को ध्यान में रखते हुए बीजेपी का साथ छोड़ पार्टी में शामिल हुए प्रहलाद गुंजल (Prahlad Gunjal) को मैदान में उतारा है.
ऐसे में प्रदेश की इस सीट पर 15 उम्मीदवार होने के बावजूद अब बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीधी टक्कर है. यह चर्चा जोरों पर है कि क्या ओम बिरला हैट्रिक लगा पाएंगे या इस सीट से नया चेहरा संसद पहुंचेगा.
कोटा बूंदी लोकसभा सीट पर कुल मतदाताओं की संख्या 20.88 लाख है. इसमें सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता 2.70 लाख के करीब हैं, वहीं दूसरे मजबूत मतदाता मीणा हैं, जिनकी संख्या 2.25 लाख है. ब्राह्मण 2.05 लाख है. सवा लाख के करीब वैश्य, इतने ही राजपूत, सवा लाख माली, साढ़े तीन लाख एससी और एक लाख ओबीसी वोटर हैं. सीट पर गुर्जर मतदाता भी 1.90 लाख के आसपास है.
जातीय समीकरण को साधने के लिए दोनों पार्टियों ने मैदान में स्टार प्रचारकों को उतारा है. बीजेपी ने मंत्री मदन दिलावर, हीरालाल नागर सहित डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा, किरोड़ीलाल मीणा, इज्यराज सिंह, विधायक कल्पना देवी, संदीप शर्मा, अशोक डोगरा, चंद्रकांता मेघवाल, प्रेम गोचर और सीएम भजन लाल शर्मा को प्रचार मैदान में उतारा है. अमित शाह ने हाल के दिनों में क्षेत्र में रैली की.
वहीं गुंजल के समर्थन में पूर्व सीएम गहलोत, प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, प्रभारी सुखजिंदर रंधावा प्रचार कर चुके हैं. अब प्रियंका गांधी के रोड शो की तैयारी है, साथ ही विधायक अशोक चांदना, शांति धारीवाल, हरिमोहन शर्मा, सीएल प्रेमी, राखी गौतम समेत कई नेता प्रचार में जुटे हैं.
कोटा-बूंदी संसदीय सीट पर 17 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने केवल चार बार जीत दर्ज की है जबकि 7 बार बीजेपी और 3 बार भारतीय जनसंघ का कब्जा रहा. एक बार जनता पार्टी, एक बार भारतीय लोकदल और एक बार निर्दलीय प्रत्याशी चुनाव जीते.
1952 और 1957 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने नेमी चंद्र कासलीवाल और ओंकारलाल बेरवा के सहारे जीत दर्ज की.
ओंकारलाल बैरवा ने हाथ का साथ छोड़ा और कमल यानी बीजेपी के साथ चले गए. जिसके बाद 1962, 1967 और 1971 तक बीजेपी का इस सीट पर कब्जा रहा.
1977 और 1980 में कृष्ण कुमार गोयल के सहारे जनता पार्टी पहली बार सीट पर काबिज हुई.
1984 में कांग्रस ने फिर शांति धरीवाल के मदद से जीत हासिल की
1989 से 1996 तक बीजेपी के दाऊदयाल जोशी ने कांग्रेस से सीट छीन ली.
1998 में कांग्रेस के रामनारायण मीणा ने सीट हथिया ली.
1999 और 2004 का चुनाव बीजेपी के रघुवीर सिंह ने अपने नाम किया
2009 के लोकसभा चुनाव में इज्यराज सिंह ने दस साल बाद कांग्रेस को फिर से इस सीट पर बैठा दिया.
2014 के चुनाव में ओम बिरला ने इज्यराज सिंह को हराकर पहली बार संसद पहुंचे.
2019 के लोकसभा चुनाव में ओम बिरला ने रामनारायण मीणा को हराकर बीजेपी का विश्वास फिर से अपने पाले में कर लिया
शहरी क्षेत्र में मतदाता जहां मोदी और स्थानीय मुद्दों की बात कर रहे हैं तो ग्रामीण इलाकों में गुंजल भारी पड़ रहे हैं. इसकी झलक हम बीते साल हुए विधानसभा सीटों में भी देख सकते हैं. कोटा-बूंदी लोकसभा सीट में 8 विधानसभा सीटे हैं, जिसमें से चार पर कांग्रेस और चार पर बीजेपी काबिज है. कोटा जिले की कोटा उत्तर, कोटा दक्षिण, लाडपुरा, सांगोद, पीपल्दा, रामगंजमंडी विधानसभा और बूंदी जिले की केशोरायपाटन और बूंदी विधानसभा सीट शामिल हैं.
केशोरायपाटन, बूंदी, पीपल्दा, कोटा उत्तर सीट पर कांग्रेस
कोटा दक्षिण,लाडपुरा, सांगोद,रामगंजमंडी विधानसभा सीट पर बीजेपी
बिरला और गुंजल दोनों का ही जनाधार मजबूत माना जाता है. दो बार सांसद ओम बिरला जहां राजस्थान विधानसभा में तीन बार विधायक रह चुके हैं. फिलहाल वह लोकसभा अध्यक्ष हैं. वहीं प्रहलाद गुंजल को हाड़ौती संभाग का बड़ा गुर्जर नेता माना जाता है. प्रहलाद गुंजल दो बार रामगंजमंडी से विधायक रह चुके हैं. कोटा उत्तर से 2013 से 2018 के बीच विधायक रहे हैं. गुंजल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक रहे हैं.
हलांकि, प्रदेश में बीजेपी सरकार और संगठन मजबूत होने के सहारे बीजेपी फिर से सत्ता में आ सकती है. बिरला की सौम्य छवि भी जीत में हिस्सेदारी निभाएगी. लेकिन बीजेपी द्वारा एक ही चेहरा बार बार उतारने के साथ गुंजल के कांग्रेस में जाने से पार्टी को भीतरघात का खतरा बना हुआ है.
लेकिन गुंजल की अक्रामक शैली जहां उन्हें प्रचार में एक्टिव रखे हुए तो वहीं इसके चलते उन्हें कई कंट्रोवर्सी का सामना भी करना पड़ा. साथ ही दो बार लगातार विधानसभा चुनावों में मिली हार इनका पक्ष कमजोर करती है. अपने प्रचार के लिए गुंजल को बिरला के मुकाबले कम वक्त भी मिला.
कोटा में पिछले दस साल से हवाई सेवा का मुद्दा चुनाव का मुद्दा बना हुआ है लेकिन इस बार ये सवाल और बुलंद आवाज में पूछा जा रहा है क्योंकि गुंजल, ओम बिरला से उनका रिपोर्ट कार्ड मांग रहे हैं. कांग्रेस आर-पार के मूड में स्थानीय मुद्दों के साथ एयरपोर्ट का मुद्दा उठा कर अपना मौका मांग रही है. पर बीजेपी बदले में सरकार बनते ही एयरपोर्ट शुरू करवाने का दावा कर रहे हैं, साथ ही जनता का ध्यान स्थानीय उपलब्धियों पर केंद्रित करने की कोशिश में है और 'ब्रांड मोदी' के सहारे हैं.
प्रत्याशियों ने प्रचार में पूरी ताकत झोंक दी है लेकिन जनता का मूड किस तरफ है, यह चुनाव के नतीजों के बाद ही मालूम होगा.
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