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अवध की कल्पना भी यहां की खूबसूरत इमारतों के बिना नहीं की जा सकती है. इन इमारतों और इनके विशाल गुंबद और ऊंची-ऊंची मीनारों को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों पर्यटक लखनऊ आते हैं. लेकिन धीरे-धीरे अवध (लखनऊ) की ऐतिहासिक इमारतें जर्जर होती जा रही हैं. नवाबी काल में बनी इमारतों का "भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण" की लापरवाही के कारण हाल यह है कि, पिछले महीने 15 अगस्त को बड़े इमामबाड़े की छत (भूलभुलैया) से एक "बुर्जी" गिर गई.
इस से पहले हजरतगंज स्थित इमामबड़े सिब्तैनाबाद का मुख्य गेट, 02 अप्रैल 2020, को गिर गया था. हजरतगंज का शाहनजफ की दीवारें से लखौरीया (ईंट) बाहर आ रहीं हैं. सआदतगंज स्थित कजमैन की लकड़ी की बनी छत अब टूटने लगी है.
केवल इतना ही नहीं इन ऐतिहासिक इमारतों के करीब अतिक्रमण भी बढ़ता जा रहा है. इसके अलावा इनके इर्द-गिर्द वनस्पति प्रवर्धन (वेजटैशन) भी उग रहे हैं. जो धरोहर प्रेमियों की चिंता को और बढ़ा रहे है.
हुसैनाबाद ट्रस्ट कुछ प्रमुख इमारतों की देख रेख करता और इनसे होने वाली आमदनी और खर्च का हिसाब-किताब रखता है. विडम्बना की बात यह है कि अवध के तीसरे नवाब, मोहम्मद अली शाह द्वारा स्थापित इस ट्रस्ट का चेयरमैन, लखनऊ का जिलाधिकारी होता है और सचिव अपर जिलाधिकारी होता है. इसके बावजूद यह इमारतें अपनी बदहाली की कहानी स्वयं सुना रही है.
लखनऊ के सबसे बड़े आकर्षण के केंद्र दो इमामबाड़े (बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा) हैं और इसके बीच बने 03 दरवाजे खासकर (रूमी दरवाजा). इसी बड़े इमामबाड़े में विश्व प्रसिद्ध "भुलभुलैया" भी हैं. कर्बला में शहीद होने वाले पैगंबर हजरत मोहम्मद सहाब के नाती हजरत इमाम हुसैन साहब की याद में इन इमामबाड़ों का निर्माण नवाबी शासन काल में हुआ.
बड़ा इमामबाड़ा की बुर्जी गिरी- बड़ा इमामबाड़े का निर्माण नवाब आसफउद्दौला ने 1784 में कराया था. अब पुरातत्व की लापरवाही से दो सदी पुराना इमामबाड़ा कमजोर होता जा रहा है. अभी 15 अगस्त को इमामबाड़े की छत पर से एक “बुर्जी” गिर कर टूट गई. इस हादसे में हुसैनाबाद ट्रस्ट का एक गाइड घायल भी हुआ. बताया जा रहा है कि “बुर्जी” काफी समय से कमजोर थी, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया गया. इसके अलावा इमामबाड़े की छत भी छतिग्रस्त हो चली है.
छोटा इमामबाड़ा- छोटा इमामबाड़ा का निर्माण अवध के छोटा इमामबाड़ा नवाब मोहम्मद अली शाह ने 1837-38 ई। में किया गया था. आज इस इमामबाड़े की खूबसूरती बढ़ाने वाली “सुनहरी” बुर्जीया “काली” हो चली है. कहीं-कहीं तो गोल आकार की यह बुर्जीया भीतर की तरफ धस गई हैं.
वरिष्ठ अधिवक्ता और धरोहर प्रेमी मोहम्मद हैदर कहते हैं, छोटे इमामबाड़े को एक बड़ा खतरा वनस्पति प्रवर्धन (वेजटैशन) से है. हैदर कहते हैं कि वेजटैशन इमामबाड़े की बुनियाद को कमजोर कर रहा है. इमामबाड़े के पीछे के हिस्से में बहुत अधिक क्षेत्र तक वनस्पति प्रवर्धन फैल गया है. स्थानीय लोग नाम न लिखने की शर्त पर बताते हैं, अब तो कोई पीछे की तरफ पुताई के लिए भी नहीं आता है. लेकिन इस तरफ न ट्रस्ट और न पुरातत्व विभाग का ध्यान जाता है.
यही हाल रूमी दरवाजे का है. यह दरवाजा वास्तुकला का यह बेहतरीन उदहारण है. इस 60 फीट ऊंचे दरवाजे के ऊपर बने ताज में भी बड़ी-बड़ी दरारें साफ देखी जा सकतीं हैं. इन दरारों के अलावा प्रतिदिन बड़ी संख्या में भारी वाहन इस के नीचे से गुजरते हैं.
कई बार प्रयास भी किये गये लेकिन,आज भी सरकारी बसों और निजी वाहन रोज रूमी दरवाजे के नीचे से गुजरते हैं. इतिहासकार रौशन ताकि कहते है कि रूमी दरवाजे को सबसे बड़ा खतरा 11 के वी, की बिजली की लाइन से है, जिसको इसके नीचे से ले जाया गया है.
बड़े इमामबाड़े से छोटे इमामबाड़े के बीच एक किलोमीटर की सड़क पर रूमी दरवाजे के अलावा दो और खूबसूरत दरवाजे हैं. इन दरवाजों की हालत भी खास्ता हो चली है. यह अतिक्रमण के शिकार भी हैं. बड़े इमामबाड़े और छोटे इमामबाड़े के बीच के दरवाजे में, इसके ऐतिहासिक महत्व को नजरअंदाज कर के पुलिस चौकी खुल गई है.
ऐसा ही कुछ हाल गंगा जमनी तहजीब के मिसाल रौजा ए काजमैन का है. काजमैन का निर्माण पुराने लखनऊ के सहादतगंज में नवाब काल के मंत्री जगन्नाथ अगरवाल ने कराया था. यह इराक में स्थित इमाम मूसा काजिम और इमाम मोहम्मद ताकि के मकबरे की प्रतिकृति है.
काजमैन में प्रवेश करते ही टूटी दिवारे दिखाई देने लगती हैं. दीवारें की मरम्मत तो दूर वहां पुताई तक नहीं हुई है. रौजे की बहार की दिवार के पास ही “पुरातत्व विभाग” का बोर्ड लगा है और उसी के पास दिवार से निकली “लाखौरियां-ईटें” सामने नजर आ रही हैं.
अवध की जमीन पर बने इस आलीशान इमारत में चार मीनारे हैं और दो खूबसूरत गुम्बद हैं. जो कभी सोने की तरह चमकते थे. लेकिन आज यह गुम्बद काले पड़ चुके हैं और इसमें दरारे साफ देखी जा सकती है. मीनारों पर वनस्पति प्रवर्धन साफ देखा जा सकता है. लेकिन सबसे ज्यादा खस्ता हाल इसकी लकड़ी से बनी छतों का है. छतों की लकड़ी कई जगह से टूट चुकी है और अक्सर मिट्टी भी इस से गिरती है. स्थानीय लोगो ने लकड़ी के टुकड़ों के सहारे इस छत को गिरने रोका है.
शहर के बीच हजरतगंज इलाके में नवाब बादशाह गाजी-उद्दीन-हैदर द्वारा 1816-1817 में बनवाया गया शाहनजफ इमामबाड़ा है. यह इमामबाड़ा हजरत इमाम अली की याद में बनवाया गया था. यह विशाल इमामबाडा भी संरक्षण की कमी से बदहाल होता जा रहा है. दीवारों से चूना झड़ रहा है. कई बार कहने पर पुरातत्व विभाग ने थोड़ा काम किया लेकिन हुसैनाबाद ट्रस्ट के अनुसार काम अभी बहुत बाकी है, और पुरातत्व विभाग वापस जा चुका है.
पुरातत्व विभाग ने अपनी गलतियों से भी सबक नहीं लिया. कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान, शिया वक्फ बोर्ड के अंतर्गत आने वाले इमामबाडा सिब्तैनाबाद का मुख्य द्वार गिर गया था. इमामबाड़े का गेट गिरने का कारण इसके आस पास का अतिक्रमण बताया जाता है. इमामबाड़े प्रबंधन का कहना था की पुरातत्व विभाग से कई बार इसकी शिकायत की गई थी लेकिन कोई करवाई नहीं हुई.
नवाब अमजद अली शाह द्वारा निर्मित इस इमामबाड़े के मुख्य द्वार का पुनः निर्माण, अधिवक्ता मोहम्मद हैदर, तत्कालीन मुतवल्ली, द्वारा की गई करवाई के बाद, लाखों रुपये खर्च कर के पुरातत्व विभाग द्वारा किया गया.
इस के अलावा भी लखनऊ की दर्जनों इमारतों जैसे कदम रसूल, सादत अली खां का मकबरा आदि भी संरक्षण की कमी से बदहाल हो रही है. लेकिन जब पुरातत्व विभाग से संपर्क किया तो वहां के अधिकारियों ने ज्यादा जानकारी साझा करने से माना कर दिया. पुरातत्व विभाग के आर.यादव कहते हैं कि बड़े इमामबाड़े में बुर्जी के नवीकरण का काम चल रहा है. रूमी गेट के नीचे से ट्रैफिक को रोकने के लिए प्रशासन को पत्र भेजा गया है. इस से अधिक बात करने से उन्होंने मना कर दिया.
धरोहर प्रेमी और अधिवक्ता मोहम्मद हैदर कहते हैं कि पुरातत्व विभाग को प्रस्ताव पास कर के एक बार में सभी जर्जर हो रही इमारतों की मरम्मत करनी चाहिए. मोहम्मद हैदर के अनुसार जब कई बार शिकायत करो तब पुरातत्व विभाग थोड़ा सा काम करता है. उनके अनुसार पुरातत्व विभाग ऐतिहासिक इमारतों के इर्द गिर्द से अतिक्रमण को भी हटाये और वनस्पति प्रवर्धन (वेजटैशन) खत्म करे तभी इनका संरक्षण संभव होगा.
इतिहासकार रौशन ताक़ि कहते हैं कि पुरातत्व किसी की नहीं सुनता है. वह कहते हैं कि हुसैनाबाद ट्रस्ट की पर्यटकों से बड़ी आय होती हैं, लेकिन ट्रस्ट संरक्षण पर बिल्कुल ध्यान नहीं देता है. रौशन ताक़ि मानते हैं कि ट्रस्ट के पास अपनी इमारतों के संरक्षण के लिए पर्याप्त धन हैं, फिर भी इमारतों की देखरेख ठीक से नहीं होती है.
हुसैनाबाद ट्रस्ट भी यह बात स्वीकार करता है की इमारतों के संरक्षण की और मरम्मत की जरूरत है. ट्रस्ट के प्रभारी अहमद मेहदी कहते हैं, बड़ा इमामबाड़ा और छोटा इमामबाड़ा, काजमैन, शाह नजफ और रूमी दरवाजा सभी जगह का कुछ न कुछ भाग जर्जर अवस्था में हैं. लेकिन जब पुरातत्व विभाग से संपर्क करो वह बजट न होने का बहाना बना कर काम टाल देता है. अहमद मेहदी कहते हैं कि कई बार कहने के बावजूद अभी तक रूमी दरवाजे के नीचे से भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित नहीं हुआ है.
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