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कवयित्री मधुमिता शुक्ला हत्याकांड (Madhumita Shukla Murder Case) में अपना फैसला सुनाया है. मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे, उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के पूर्व मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि की रिहाई पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है. इससे पहले यूपी कारागार प्रशासन विभाग ने अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को रिहा करने का आदेश जारी किया था. रिहाई पर राज्यपाल की भी अनुमति मिल गई थी.
निधि ने पहले दावा किया था कि मधुमिता, जो अपनी हत्या के समय गर्भवती थीं, अमरमणि की करीबी थीं और उसने ही उसकी हत्या करवाई थी.
कवयित्री मधुमिता की 9 मई 2003 को लखनऊ के पेपर मिल कॉलोनी में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) ने की थी.
साल 2007 में उत्तराखंड की एक CBI कोर्ट ने हत्या की साजिश रचने और मधुमिता की हत्या के लिए अमरमणि, मधुमणि और अमरमणि के भतीजे रोहित चतुर्वेदी सहित दो अन्य को दोषी ठहराया था.
जुलाई 2012 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने सभी चार दोषियों को CBI कोर्ट द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को बरकरार रखा.
कोर्ट ने अमरमणि त्रिपाठी के एक अन्य सहयोगी प्रकाश पांडे को भी आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी.
2007 में देहरादून की एक कोर्ट द्वारा दोषी ठहराए जाने के बाद अमरमणि और मधुमणि को शुरू में हरिद्वार जेल में रखा गया था. मधुमिता के परिवार के अनुरोध पर मुकदमा उत्तराखंड स्थानांतरित कर दिया गया था.
उत्तर प्रदेश सरकार ने 'बुढ़ापे और अच्छे व्यवहार' का हवाला देते हुए गुरुवार को दंपति की 'समयपूर्व रिहाई' का आदेश दिया था. अमरमणि 66 साल के हैं, जबकि उनकी पत्नी मधुमणि 61 साल की हैं.
अमरमणि का राजनीतिक सफर 1996 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में शुरू हुआ और जीत हासिल की.
अमरमणि त्रिपाठी महाराजगंज से बहुजन समाज पार्टी (BSP) से विधायक थे.
2002 में बसपा के उम्मीदवार के रूप में जीते और मायावती ने उन्हें मंत्री बनाया.
मधुमिता हत्याकांड के बाद BSP अध्यक्ष मायावती ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया.
इसके बाद समाजवादी पार्टी (SP) में उनका स्वागत किया गया.
अमरमणि के बेटे अमनमणि को 2007 के राज्य विधानसभा चुनाव के लिए एसपी ने टिकट दिया.
अमनमणि बाद में 2017 में निर्दलीय चुनाव लड़े और 2022 में उन्हें बीएसपी से टिकट मिला.
मौजूदा वक्त में अमरमणि और मधुमणि दोनों गोरखपुर के बाबा राघव दास (BRD मेडिकल कॉलेज में हैं, जहां उन्होंने अपनी सजा का एक बड़ा हिस्सा कई तरह की बीमारियों के "इलाज" के तहत बिताया है. बॉन्ड भरने के बाद वो जेल से रिहा हो जाएंगे.
Indian Express की रिपोर्ट के मुताबिक गोरखपुर जेल के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हम हर महीने मेडिकल कॉलेज को दो पत्र भेजते हैं और पूछते हैं कि क्या वे वापस जेल में लाए जाने के लिए उपयुक्त हैं. डॉक्टर कई बीमारियों का हवाला देते हैं.
एक सीनियर डॉक्टर ने जेल में अस्पताल की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि
रिपोर्ट के मुताबिक गोरखपुर जेल के जेलर RK सिंह का कहना है कि जेल के बाहर की सुरक्षा पुलिस की जिम्मेदारी है, वहीं गोरखपुर के SSP प्रदीप कुमार यादव का कहना है कि इसे उनके और जेल अधिकारियों के बीच साझा किया जाना चाहिए.
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