advertisement
''छह महिलाओं को पुलिस अफसर ने बीच बाजार रिक्शे में बिठा लिया. थाने ले जाकर पीटा. ये सब हुआ चोरी के शक में लेकिन कोई FIR भी दर्ज नहीं की गई''
ये आरोप लगा है महाराष्ट्र पुलिस (Maharashtra Police) पर और आरोप लगाया है आदिवासी महिलाओं (Aadivasi) ने. महाराष्ट्र के वसई से सामने आई ये शर्मनाक घटना हाल ही में रिलीज हुई फिल्म 'जय भीम' की याद दिलाती है.
दरअसल, ये सभी महिलाएं मूल रूप से पालघर जिले के कासा आदिवासी इलाके की रहने वाली हैं. पीड़ित महिलाओं के नाम बेबी नारायण वावरे, दीपिका दिनेश वावरे, विमल माणक्या पुंजारा, सोनम साबू भोइर, सीता संतराम भोइर, तरु सुभाष डोकफोडे हैं. काम की तलाश में ये वसई की पापड़ी झील कोलीवाड़ा में झुग्गियों में रहने आई हैं. 19 नवंबर के दिन ये महिलाएं वसई पश्चिम में हर लगने वाले शुक्रवार हाट में कुछ समान खरीदने पहुंचीं.
पीड़ित महिलाओं के मुताबिक-
पीड़ित महिला बेबी वावरे ने क्विंट हिंदी को बताया कि इस घटना के बाद वे काफी डर गई थीं.
वसई में पुलिस द्वारा आदिवासी महिलाओं के साथ कथित मारपीट मामले के विरोध में सड़क पर उतरे लाल बावटा संगठन के शेरू वाघ ने सवाल उठाया है. शेरू वाघ ने कहा, "हमारी महिलाओं ने पुलिसवाले को मारा होता तो क्या पुलिस पहले जांच करती या सीधे मामला दर्ज होता? तो फिर बिना किसी सबूत आदिवासी महिलाओं की मारपीट करनेवाले पुलिसवाले पर महिला उत्पीड़न और एट्रोसिटी का मामला दर्ज क्यों नहीं किया जा रहा?"
शेरू का कहना है कि जिन पुलिस अधिकारियों ने गुनाह किया है वही मामले की जांच कैसे कर सकते हैं? संगठन की मांग है कि सबसे पहले संबंधित पुलिस अधिकारी को निलंबित कर मामला कोर्ट में चलाना चाहिए, तभी न्याय की अपेक्षा कर सकते हैं.
बीजेपी की महाराष्ट्र उपाध्यक्ष चित्रा वाघ ने भी जोनल डीसीपी संजय पाटिल से मुलाकात कर संबंधित पुलिस अधिकारी पर जल्द से जल्द कड़ी कार्रवाई की मांग की है.
मामला तूल पकड़ने के बाद कुछ सब्जी विक्रेताओं के बयान के आधार पर कार्रवाई करने का दावा अब पुलिस कर रही है. पहले एपीआई विनोद वाघ का मीरा भायंदर वसई विरार कंट्रोल रूम में तबादला किया गया, लेकिन श्रमजीवी संगठन और लाल बावटा संगठन के आंदोलन के बाद दबाव बढ़ने से अब एपीआई वाघ को फोर्स्ड लीव पर भेजा गया है. जोनल डीसीपी संजय पाटिल ने आश्वासन दिया है कि अगले 8 दिनों में मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश की जाएगी. कोई दोषी पाया गया तो कार्रवाई होगी. इस आश्वासन के बाद अब संगठनों ने आंदोलन को स्थगित कर दिया है.
इस मामले में पीड़ित आदिवासी महिलाएं वापस अपने गांव लौटना चाहती हैं. इस घटना के बाद से पुलिस, मीडिया और कई संगठनों के कार्यकर्ताओं से लगातार हो रही पूछताछ से वो परेशान हो गई हैं. उन्हें काम मिलने में भी मुश्किलें आ रही है. ऐसे में उन्हें न्याय मिले न मिले लेकिन दो वक्त की रोटी जुटाने का संघर्ष अब भी करना पड़ रहा है.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)