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गोडसे को हत्यारा किसने बनाया- ‘गांधीज असैसिन...’ के लेखक डीके झा से खास बातचीत

वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र के. झा की नई किताब महात्मा गांधी के हत्यारे के जीवन पर हमे कुछ नया बताती है.

निष्ठा गौतम
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>गोडसे को हत्यारा किसने बनाया- ‘गांधीज असैसिन...’  के लेखक डीके झा से खास बातचीत</p></div>
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गोडसे को हत्यारा किसने बनाया- ‘गांधीज असैसिन...’ के लेखक डीके झा से खास बातचीत

(फोटो- क्विंट)

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पेंगुइन रैंडमहाउस पब्लिकेशन द्वारा प्रकाशित वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र के झा की नई किताब 'Gandhi's Assasin: The Making of Nathuram Godse and His Idea of India' महात्मा गांधी के हत्यारे के जीवन पर हमे कुछ नया बताती है.

यहां पर लेखक के इंटरव्यू के कुछ अंश दिए गए हैं.

आप नाथूराम गोडसे पर एक किताब लिखने के लिए किससे प्रेरित हुए?

मैंने शुरुआत में गोडसे की प्रोफाइल की योजना बनाई थी. मैं पहले से ही RSS पर अपने अभिलेखीय शोध के बीच में था.अपने शोध के दौरान, मैं गोडसे के प्री-ट्रायल बयान, जो मराठी में है, पर ठहर गया और उसके बारे में बहुत उत्साहित हो गया. अगर आप देखें, तो गोडसे पर लिखी हर बात उनके कोर्ट स्टेटमेंट पर आधारित है.मगर कोर्ट ने उनके सभी दावों को खारिज कर दिया है लेकिन उस बयान को अभी भी विश्वसनीय माना जाता है. इस नए खोजे गए बयान की पुष्टि अभिलेखीय अभिलेखों, नागपुर में आरएसएस(RSS) मुख्यालय से जब्त किए गए कागजात से होती है. गोडसे और वे जिन संगठनों से जुड़े थे, उन्हें समझने के लिए यह प्री-ट्रायल बयान महत्वपूर्ण है.

क्या गांधी को समझने के लिए गोडसे को समझना जरूरी है?

हां, कुछ हद तक ऐसा है. विशेष रूप से गांधी को बाद के फेज में जब उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया. गांधी की राष्ट्रवादी राजनीति ने हर तरह की प्रतिक्रिया उत्पन्न की- हिंदुत्व की राजनीति उनमें से एक थी. सावरकरी राजनीति गांधी की राजनीति के कारण उत्पन्न चिंताओं से निकली.

गांधी को समझने के लिए सावरकर का अध्ययन कितना महत्वपूर्ण है?

गांधी और सावरकर को एक साथ देखे बिना, इतिहास के उस भयावह हिस्से को समझना संभव नहीं है जिसके कारण गांधी की हत्या हुई और उसके बाद भी यह जारी रहा.

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क्या इस पुस्तक के लेखक पक्षपाती हैं? सावरकर के बारे में "वह अपने घुटनों पर गिर गया और दया याचिका लिखी" जैसे शब्दों को पढ़ते समय ऐसा प्रतीत होता है

नहीं, मुझे नहीं लगता कि मैं पक्षपाती हूं. मैंने गांधी के लिए भी यही शब्द इस्तेमाल किए होते, अगर उन्होंने दया याचिकाएं लिखी होती.

क्या किताब का एजेंडा इस विचार का विरोध कर रहा है कि गांधी का हत्यारा आरएसएस का हिस्सा नहीं था?

आरएसएस को गांधी की हत्या से अलग करने के लिए लंबे समय से एक गंभीर प्रयास किया गया है. इस मिथक का विरोध करने वाले तथ्यों को शेयर करने का कोई भी प्रयास कुछ लोगों को 'एजेंडा संचालित' जैसा लगता है.

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