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मणिपुर में दो मैतेई किशोरों की हत्या की खबर के बाद से राज्य में फिर से अशांति का माहौल बन गया है. मणिपुर को अशांत क्षेत्र घोषित कर इंटरनेट पर बैन लगा दिया गया है. स्कूल भी बंद कर दिए गए हैं. राज्य सरकार ने सात जिलों के 19 पुलिस स्टेशन को छोड़कर मणिपुर के सभी हिस्सों में AFSPA (Armed Forces Special Powers Act) को 1 अक्टूबर से अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया है.
दरअसल, मणिपुर में मंगलवार, 26 सितंबर को दो छात्रों (जाम लिनथोइनगांबी और फिजाम हेमजीत) की तस्वीरें वायरल हुईं, जो छह जुलाई से लापता बताए जा रहे थे. तस्वीरों में छात्रों को जमीन पर बैठा दिखाया गया है, जबकि उनके पीछे 2 हथियारबंद लोगों को देखा जा सकता है. सोशल मीडिया पर वायरल एक अन्य तस्वीर में दोनों छात्रों के शव देखे जा सकते हैं. दोनों मैतई छात्र पिछले दो महीनों से लापता थे.
उनके शव की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं. इसके बाद दोनों नाबालिग की हत्या के विरोध में फिर से हिंसक विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए. छात्रों ने सीएम एन बीरेन सिंह के घर के बाहर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस में झड़प भी हुई. जिसमें करीब 34 छात्र घायल हो गए. राज्य में बढ़ते तनाव को देखते हुए मणिपुर में AFSPA की अवधि छह महीने के लिए बढ़ा दी गई है.
फिलहार, मणिपुर सरकार ने राज्य के पहाड़ी इलाकों में AFSPA की अवधि एक अक्तूबर से छह महीने के लिए बढ़ा दी है. हालांकि, घाटी के 19 पुलिस स्टेशनों को इसमें शामिल नहीं किया गया है. आधिकारिक अधिसूचना में कहा गया है कि मणिपुर के 19 पुलिस स्टेशनों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले क्षेत्रों को छोड़कर पूरे मणिपुर को अशांत क्षेत्र के रूप में घोषित करने की मंजूरी दी गई है. यह फैसला फिलहाल एक अक्तूबर 2023 से छह महीने की अवधि तक के लिए प्रभावी होगा.
वहीं, जिन थाना क्षेत्रों में अशांत क्षेत्र अधिनियम लागू नहीं किया गया है, उनमें इम्फाल, लाम्फेल, शहर, सिंगजामेई, सेकमई, लामसांग, पास्टल, वांगोई, पोरोम्पट, हीनगांग, लामलाई, इरिबुंग, लीमाखोंग, थौबल, बिष्णुपुर, नामबोल, मोइरांग, काकचिन और जिरबम शामिल हैं.
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिए Armed Forces Special Powers Act ब्रिटिश काल में लाया गया था. भारत सरकार ने 1947 में आतंरिक मुद्दों (उग्रवाद) से निपटने के लिए AFSPA का पुनर्गठन कर 1947 में चार अध्यादेश जारी किए. अध्यादेशों को साल 1948 में एक अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था और साल 1958 में तत्कालीन गृह मंत्री जीबी पंत ने इसे संसद में पेश किया था. इसे शुरू में सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम, 1958 के रूप में जाना जाता था.
सबसे पहले पूर्वोत्तर के राज्यों में लगाया गया. इसे अशांत क्षेत्रों में लागू किया जाता है. अशांत क्षेत्र कौन-कौन से होंगे, ये फैसला केंद्र सरकार करती है.
AFSPA सुरक्षा बलों को अशांत क्षेत्रों में उनके कार्यों के लिए कानूनी छूट प्रदान करता है. AFSPA के तहत सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने की विशेष शक्तियां दी गई हैं.
इसके तहत, सशस्त्र बलों को अगर लगता है कि कोई कानून तोड़ रहा है तो उसे चेतावनी देने के बाद वे बल प्रयोग या गोली चला सकते हैं.
ये कानून सशस्त्र बलों को उचित संदेह होने पर बिना वारंट किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है.
इसके अलावा, किसी भी परिसर में तलाशी लेने का अधिकार देता है.
इस कानून का इस्तेमाल करके सशस्त्र बल किसी भी इलाके में पांच या पांच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा सकते हैं.
सबसे अहम बात यह है कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बिना सुरक्षाबलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती है.
हालांकि, इस कानून को लेकर सवाल उठते रहे हैं. मानवाधिकार संगठन कई बार सुरक्षा बलों पर AFSPA कानून की आड़ में मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगाते रहे हैं. स्थानीय लोगों का आरोप है कि इस कानून की आड़ में सुरक्षा बल मनमाने ढंग से गिरफ्तारी और हिरासत में टॉर्चर करते हैं.
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