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मथुरा हिंसा: बहू को लगी गोली, तड़पता छोड़ भाग आया परिवार

जवाहरबाग में मार्च 2014 से भंडारे में कर रहे थे सेवा.

अंशुल तिवारी
भारत
Published:
मथुरा का जवाहर बाग जहां पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई थी भिंडत (फोटो: AP)
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मथुरा का जवाहर बाग जहां पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई थी भिंडत (फोटो: AP)
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मथुरा के जवाहर बाग में हुए तांडव से पूरा प्रशासन हिल गया. पुलिस के साथ प्रदर्शनकारियों की मुठभेड़ के समय जो वहां से बच कर निकल आया है वह अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझ रहा है.

ऐसा ही एक परिवार है जो जवाहर बाग के उस कांड से बच निकला, लेकिन उनकी बहू गोली लगने से वहीं तड़पती रही. इस परिवार ने अपनी जुबानी इस पूरी घटना की कहानी बयां की.

मैनपुरी के किशनी इलाके का यह परिवार जवाहर बाग में सत्याग्रहियों के लिए भंडारे का खाना परोसने के लिए गया था. परिवार ने बताया कि प्रशासन द्वारा गुरुवार शाम 4 बजे जेसीबी से पहले बाग की दीवार गिरानी शुरू की गई. उसी समय सत्याग्राहियों ने इस कार्यवाई का जमकर विरोध शुरू कर दिया. प्रशासन ने फायरिंग शुरू की तो सत्याग्राहियों ने भी लाठी डंडो से हमला बोल दिया.

बहु का तड़पता छोड़ भागे

वहां से जान बचाकर भागे रामचन्द्र कश्यप ने बताया कि पुलिस द्वारा हुई फायरिंग में उसकी बहू सुमन को पेट के पास गोली लग गई. उन्होंने बहू को साथ ले जाने की हर कोशिश की. लेकिन जब कोई रास्ता नजर नहीं आया तो मजबूरी में उसको वहीं तड़पता छोड़ दिया. उन्होंने अपने बेटे और नाती-नातिन के साथ वहां से भागना सही समझा.

लेकिन अब उनकी बहु कहां है ये किसी को नहीं पता. इसलिए रामचन्द्र कश्यप ने वहां से वापस आकर बेटे नरेंद्र और कृष्णपाल को लापता बहु सुमन को तलाशकर घर लाने के लिए मथुरा भेजा है.

उन्होंने बेटों को बहू को ढूंढ़ने के लिए भेज तो दिया लेकिन फिर भी उनका कहना है कि बहू प्रशासन की गोली से शहीद हो चुकी होगी. इधर छोटे-छोटे बच्चे माँ के इंतजार में रो-रो के निढ़ाल हुए जा रहे हैं.

मार्च 2014 से भंडारे में कर रहे थे सेवा

रामचंद्र ने बताया कि सबसे पहले वह खुद 15 मार्च 2014 को जवाहर बाग में सेवा के लिए गया था. वहां की व्यवस्था से प्रभावित होकर एक वर्ष पहले उसका पूरा परिवार जवाहरबाग में ही रहने लगा था और उसका पूरा परिवार सेवा में लगा हुआ था.

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