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दीपिका कुंडाजी ने अपनी मेहनत के दम पर पथरीली जमीन पर उगाया जंगल

Me the Change दीपिका ने पर्यावरण को बचाने में अपनी जिन्दगी के 23 साल लगा दिए.

स्मिता टी के
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>पर्यावरण संरक्षक&nbsp;दीपिका कुंडाजी</p></div>
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पर्यावरण संरक्षक दीपिका कुंडाजी

क्विंट हिंदी

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मेहनत से क्या हासिल नहीं किया जा सकता ? अपनी मेहनत और लगन के दम पर दीपिका ने अपने पति बर्नार्ड के सहयोग से ऑरोविले के केंद्र में आज एक विशाल 8 एकड़ का जंगल तैयार कर दिया है. आपको ये जानकर हैरानी होगी की इस जंगल को तैयार करने में दीपिका ने कोई बाहरी मदद नहीं ली है. इस 8 एकड़ जंगल को उन्होंने अपने खून पसीने से सींचा है.

23 साल की मेहनत से उगा दिया जंगल

सूखी पथरीली जमीन पर दो लोग 23 साल काम करते रहे. एक-एक बीज खुदसे लगाया. दीपिका बताती हैं

हमने दो सिद्धांतों का पालन किया पहला सिद्धांत कि बाहर से कोई मिट्टी हमने नहीं ली और दूसरा की कोई ऑर्गेनिक पदार्थ हमने इस जंगल को उगाने में नहीं इस्तेमाल किया और हमने सब कुछ खुद से किया.
दीपिका कुंडाजी

आगे दीपिका कहती हैं

आपको इंतजार करना पड़ता है, धैर्य रखना पड़ता है क्योंकि एक जंगल के जीवन में 3-4 साल का समय कुछ नहीं होता. इतना कम समय कुछ भी नहीं है, हम असली जंगल देखने के लिए जिंदा नहीं होंगे. कुछ पेड़ों को बढ़ने में 200 साल लगते हैं लेकिन उन्हें काटने में 10 मिनट लगता है.
दीपिका कुंडाजी

जंगल उपजाने के विचार की उपज कैसे हुई ?

दीपिका बॉम्बे में पैदा हुईं, दिल्ली, बेंगलुरु और फिर पुणे और हैदराबाद में पली-बढ़ीं, वो खुदको मेट्रो गर्ल बताती हैं और मेट्रो गर्ल की वजह ही उन्हें ऑरोविले ले आई वो कहती हैं कि शहरी जीवन से उनका मोहभंग हो गया क्योंकि शहरी जीवन में शहरी लोग जो औद्योगिक व्यवसाय करते हैं उसे उन्होंने अपेक्षाओं के मुताबिक नहीं पाया. उनके मन में ये सवाल आया कि क्या इंसानों के लिए इस ग्रह पर दूसरे सभी जीवित प्राणियों के साथ तालमेल बिठाना संभव नहीं है? क्या इसका कोई रास्ता निकलना चाहिए? और इसी सवाल के जवाब की खोज दीपिका को ऑरोविले की ओर लेकर जाती है.

करियर छोड़ किसान के सपनों को जीने का फैसला किया

साल 1963 में पैदा हुईं दीपिका ने अपने 'किसान' के सपनों को जीने का फैसला किया, दीपिका किसानों का जीवन जीने की तरफ आकर्षित हुईं और अपना करियर छोड़ने का फैसला ले लिया और वो मध्यम वर्ग के मायने में पारिवारिक जीवन की ओर आकर्षित भी नहीं हुईं. साल 1994 में, तमिलनाडु के ऑरोविले में बेल्जियम के बर्नार्ड डेक्लरक्यू से उनकी मुलाकात हुई और फिर दोनों ने 8 एकड़ जमीन पर काम करना शुरू किया.

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सब्जियों की दुर्लभ किस्म का संरक्षण

दीपिका जिन किस्मों का संरक्षण करती हैं उनमें लोकप्रिय सब्जियों की दुर्लभ किस्में शामिल हैं, जैसे बैंगन, भिंडी, लौकी, ककड़ी उनमें बारहमासी पौधे भी शामिल हैं जो पूरे साल उत्पादन करेंगे. दीपिका बताती हैं कि इससे उन्हें बहुत खुशी होती है उन्होंने लाल भिंडी उगाई, जो अब पूरे देश में फैल गई है इसके अलावा एक और लंबी पंख वाली फलियां है जिसका वो संरक्षण कर रही हैं जो उन्हें अपने पश्चिम बंगाल के एक दोस्त से मिली हैं. इस जंगल में सब्जियों, जड़ वाली फसलों और जड़ी-बूटियों की 134 से अधिक दुर्लभ स्वदेशी किस्में भी हैं. जिन्हें बहुत कम पानी की जरूरत होती है और ये बाढ़ और सूखे का सामना भी कर सकते हैं.

बाढ़, चक्रवात और सूखे का सामना

एक जंगल का विकास बेहद धीमा हो सकता है और उसकी अपनी चुनौतियां होती हैं. जंगल बाढ़, चक्रवात और सूखे का सामना करते हुए अपनी जमीन पर खड़ा हो गया है. ऑरोविले ने कई प्राकृतिक आपदाओं को झेला है ये एक दुखद समय था क्योंकि लाखों पेड़ों का नुकसान हुआ था लेकिन तीन सालों के भीतर तीन गुना बढ़ोतरी हुई. छोटे पेड़, बड़े पेड़ों की वजह से बढ़ नहीं पा रहे थे और इसलिए वे भी तेजी से बढ़े.

भारतीयों को दीपिका का संदेश

भारत में 93 मिलियन एकड़ सूखी पथरीली जमीन है और अगर दो लोग 8 एकड़ के जंगल को पुनर्जीवित कर सकते हैं तो कल्पना कीजिए कि हम एक अरब हाथों से क्या कर सकते हैं. दीपिका 'जहां चाह, वहां राह' का जीता जागता उदाहरण हैं.

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