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रियो ओलंपिक में जाने के लिए भले ही पहलवान सुशील कुमार और नरसिंह यादव के बीच दावेदारी को लेकर खींचतान रही हो लेकिन अब रियो जाने को लेकर नरसिंह यादव का रास्ता साफ हो चुका है.
नरसिंह भले ही आज रियो ओलंपिक में 74 किलोवर्ग की कुश्ती में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहे हैं लेकिन उनका सफर आसान बिल्कुल नहीं रहा है. नरसिंह मूल रुप से वाराणसी के चोलापुर के नीमा गांव के रहने वाले हैं हालांकि कुश्ती के दांव-पेंच उन्होंने मुंबई के अखाड़े में सीखे हैं.
नरसिंह की मेहनत से भले ही उनके परिवार की सूरत बदल गई है लेकिन वाराणसी शहर से लगभग 35 किलोमिटर दूर कच्ची-पक्की सड़कों के बाद चोलापुर ब्लाक के नीमा गांव तस्वीर अभी भी कुछ खास नहीं बदली है. हालांकि कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीतने के बाद नरसिंह के घर के पास पक्की सड़क जरूर बन गई.
मुंबई के जोगेश्वरी के इलाके में रहते हुए घर के नजदीक जोगेश्वरी अखाड़े में भरत यादव, बच्चा वर्मा और शारदा पहलवान जैसे गुरूओं से ही नरसिंह यादव और उनके बड़े भाई विनोद ने पहलवानी के शुरुआती गुर सीखे थे. जिसके बाद दोनों भाईयों ने मुंबई में स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इण्डिया (साई) में ट्रेनिंग ली.
नरसिंह यादव के रियो जाने का रास्ता तभी साफ हो गया था जब उन्होंने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता था. हालांकि बाद में महाबली सुशील कुमार ने 74 किलोग्राम भार वर्ग में नरसिंह यादव की बजाय उन्हें रियो ओलंपिक भेजे जाने की इच्छा जाहिर की. रियो जाने के लिए सुशील ने काफी मशक्कत की लेकिन दिल्ली हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया.
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