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‘कश्मीरी ऊब चुके हैं, सेना नहीं चाहिए, दिल जीतने की जरूरत’

लेखक जुनैद कुरैशी ने एक कश्मीरी युवक के नाते कश्मीर के गुस्साए नौजवानों का पक्ष रखने की कोशिश की.

प्रशांत चाहल
भारत
Published:
11 जुलाई को कश्मीर में पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी करते प्रदर्शनकारी. (फोटो: एपी)
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11 जुलाई को कश्मीर में पुलिसकर्मियों पर पत्थरबाजी करते प्रदर्शनकारी. (फोटो: एपी)
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कश्मीरी नौजवानों में मिलिटेंट बुरहान वानी की मौत के बाद इतनी हलचल क्यों है? क्यों बुरहान अलगाववादी गुटों समेत आम कश्मीरी लोगों का भी पोस्टर बॉय रहा? और कश्मीर में प्रोटेस्ट कर रहे लड़कों में कहां से आ रहा है इतना गुस्सा?

ये सभी वे सवाल हैं, जिनके जवाब इस वक्त ज्यादातर लोग चाहते हैं.

लोग इस मुद्दे को सीधे तौर पर राष्ट्रवाद से जोड़कर देख रहे हैं. लेकिन कश्मीरी लोगों की मानें, तो मामला सिर्फ राष्ट्रवाद और देश से बगावत का नहीं है. इसके पीछे कई छोटे, मगर अहम सवाल भी छिपे हैं, जिन्हें दरकिनार करना कश्मीर के बिगड़ते हालात पर आंखें मूंदने जैसा होगा.

इन सवालों के जवाब तलाशने के लिए द क्विंट ने बात की अलगाववादी नेता हाशिम कुरैशी के बेटे, ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्ट और लेखक जुनैद कुरैशी से, जिन्होंने एक युवक के तौर पर कश्मीर के गुस्साए नौजवानों का पक्ष रखने की कोशिश की.

इस वक्त कश्मीरी युवक हिंसा का सहारा ले रहे हैं. प्रोटेस्ट कर रहे 32 लोग मारे जा चुके हैं. इसे आप कैसे देखते हैं?

हिंसा किसी भी मसले का हल नहीं है. 60-70 के दशक में भले ही हिंसा से कुछ बड़े मसले सुलझाए गए. लेकिन अब हिंसा प्रासंगिकता खो चुकी है. सभी को इस बात को समझना होगा. मेरे पिता ने 17 साल की उम्र में भारतीय हवाई जहाज हाईजैक किया. फिर पाकिस्तान में उनकी गिरफ्तारी हुई और 10 साल की सजा काटनी पड़ी. उससे उन्होंने यह सबक लिया कि हिंसा से कुछ नहीं मिल सकता.

फिर भी हिंसा का चेहरा कहे जाने वाले बुरहान वानी को कश्मीर के लोगों ने अपना पोस्टर बॉय बनाया. ऐसा क्यों?

इसके पीछे घटनाओं का पूरा एक सिलसिला है. बुरहान वानी और उसके भाई को कुछ साल पहले पुलिस/फौजियों ने रोका और उनसे सिगरेट लाने को कहा. दोनों ने इस बात को मानने से इंकार किया तो उनकी पिटाई की गई. इस घटना में बुरहान का छोटा भाई मारा गया था, जिसका बुरहान के जेहन पर बहुत बुरा असर पड़ा. 17 साल की उम्र में उसने तय किया कि वह अपनी जमीन के लिए और अपने लोगों की आजादी के लिए शहीद होगा.

बुरहान ने पाकिस्तान के कहने पर बंदूक नहीं उठाई, बल्कि उसने स्टेट मशीनरी के खिलाफ बंदूक उठाने का फैसला किया. कुछ लोग गुस्से में कलम उठाते हैं. कुछ प्रोटेस्ट करते हैं. लेकिन बंदूक उठाना उसका व्यक्तिगत फैसला था. कुछ लोग घटनाओं पर रेडिकल ढ़ंग से पेश आते हैं. बुरहान ने वैसा ही किया और खुलकर किया. वो सोशल मीडिया पर एक्टिव था और उसने उसे बगावत का प्रचार करने के लिए बखूबी इस्तेमाल किया. बुरहान ने किसी पॉलिटिकल एजेंडे से बंदूक का रास्ता नहीं चुना था. वो बागी था. सत्ता के खिलाफ. सिस्टम के खिलाफ. उन वजहों के खिलाफ, जो ज्यादातर कश्मीरी रोज झेलते हैं. यही वजह रही कि लोगों के गुस्से का वो सिंबल बना और लोग उसे पोस्टर बॉय कहने लगे.

लोगों की यह राय बन गई है कि सरकार कश्मीर में कुछ भी कर ले, लेकिन हालात नहीं सुधर सकते.

यह झूठ है. अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में कश्मीर के लोग काफी सकारात्मक हुए थे. उन्हें लगने लगा था कि हिंसा छोड़नी होगी. उस वक्त भी लोगों के मन में था कि उनका नुकसान ज्यादा हुआ. और बदले में उन्हें कुछ नहीं मिला. फिर भी सुधार दिखने लगा था. गौरतलब है कि कश्मीर को अपना अभिन्न अंग बताने वाले लोगों की जुबान से यह कम ही सुनने को मिलता है कि कश्मीरी लोग भी हमारा अभिन्न अंग हैं. इसलिए मैं कहूंगा कि लोगों का दिल जीतने की जरूरत है. इसके लिए पहले तो सरकार को कश्मीर के प्रति मानवतावादी सोच रखनी होगी. फिर देखिए सुधार कैसे नहीं आएगा.

स्टेट मशीनरी और फौज से क्या आपत्ति है कश्मीर के लोगों को? इसे हटाया भी तो नहीं जा सकता.

स्टेट मशीनरी और फौज की अपनी जरूरत है. वो कश्मीर में एक खास वजह से हैं. लेकिन कई दफे उनका रवैया स्थानीय लोगों के साथ इतना खराब होता है कि उसका डिटेल बताया भी नहीं जा सकता. दिल्ली में गाड़ी रोककर जांच करवाने पर लोग नाराज हो जाते हैं. कश्मीर रोजमर्रा की रोकटोक और यह जांच एक लंबे अरसे से झेलता आया है.

लोग कहते हैं कि कश्मीरी भारत का इस्तेमाल करते हैं और देश के खिलाफ बोलते हैं. कोई उनसे पूछे कि पढ़ने, नौकरी करने और सर्दियां गुजारने के लिए कश्मीरी दिल्ली आते हैं. फिर भी वो नाराज हैं. तो कुछ तो हुआ होगा. उन लोगों को इस बारे में सोचने की जरूरत है.

कश्मीर के लोगों में इतना गुस्सा क्यों है?

कश्मीर में लोग नाराज हैं. इसका हल सिर्फ उनके साथ संवाद करके निकाला जा सकता है. 30 प्रतिशत एक्टिव कश्मीरी लड़के, जो डॉक्टर, साइनटिस्ट या इंजीनियर हो सकते थे, मार दिए गए. क्योंकि वो प्रोटेस्ट करना जानते थे. सरकार ने उनसे बात नहीं की. उन्हें गोलियों से जवाब दिया. और हालात को ज्यादा खराब कर दिया.

सरकार अपने फैसलों को प्रो-कश्मीर बताती है. लोग सोचते हैं कि कश्मीरियों के पास स्पेशल स्टेटस है. फिर उन्हें क्या चाहिए?

कश्मीरी लोगों को एक पॉलिटिकल हल चाहिए. सरकार लोगों में प्रचार करती है कि कश्मीर को स्पेशल स्टेटस दे रखा है. लेकिन यह नहीं बताती कि कश्मीर में कितनी फौज तैनात कर रखी है, जो रोज हमारे लोगों का शोषण करती है. दंगों से निपटने के लिए किन नियमों का पालन करना होता है, इस बारे में भारत सरकार बहुत पिछड़ी हुई है. चाहें हरियाणा की बात हो या फिर किसी दूसरे राज्य की, आंदोलनकारियों से इस तरह से निपटने की कोशिश करना सरकार की बड़ी भूल है. इन्हें समझना होगा कि आवाम अब आर्मी को स्वीकार नहीं करने वाली है.

कुछ प्राथमिक डिमांड सुनी जाएं, तो मांगें क्या हैं कश्मीरियों की?

कश्मीर अब एक स्वाभिमान का मुद्दा है. इसे फौज से निपटाएंगे, तो यही होता रहेगा. लोग ऊब चुके हैं. इसलिए फौजें हटाएं और लोगों को खुलकर सांस लेने दें. LOC हटाएं और पाकिस्तान आधिकृत कश्मीर के लोगों को भारतीय कश्मीर के लोगों से मिलने दें. सरकार को अपने हितों के बारे में सोचने के साथ-साथ कश्मीरी लोगों के दिल की बात को भी सुनना चाहिए.

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