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उन्हें मौत का डर नहीं. धार्मिक फतवों का भय नहीं. वे हर रात निकलते हैं बनारस की गलियों में. गाय, सांड, कबूतर, कुत्ते और गधे जैसे बेबस जानवरों को खोजने में. उनके जख्मों पर मरहम लगाने के वास्ते. ये कहानी है बनारस के आधा दर्जन हिंदु-मुस्लिम लड़कों की.
बनारस की गलियों में रात के वक्त हमारी मुलाकात इन मुस्लिम युवाओं से हुई. तब तकरीबन 10.30 का वक्त हुआ था और ये नौजवान एक सांड के इलाज में व्यस्त थे.
इन युवाओं को देखकर कुछ हिंदू लड़कों को अपनी जिम्मेदारी का एहसास हुआ तो वो रस्सी के सहारे सांड को मजबूती के साथ पकड़ने की ठानी.
लगभग एक घंटे तक सांड के पिछले दोनों पैरों की ड्रेसिंग चली. मुख्य रूप से रुस्तम पूरी शिद्दत से ड्रेसिंग करते रहे तो खुर्शीद अंधेरे में टार्च दिखाते रहे. एक अन्य मुस्लिम नौजवान कम्पाउंडर की भूमिका में थे तो मौलाना कलामनूरी साहब सांड का सिर सहलाने में लगे थे.
इस्लामिक फाउंडेशन के अध्यक्ष एसएम खुर्शीद ने अपना परिचय दिया. उन्होंने बताया कि पिछले 7 सालों से वो यूं ही गलियों-सड़कों की खाक छानकर रात के वक्त मजलूम बेबस जानवरों को खोजते हैं ताकि दर्द से उनको निजात दिला सकें.
खुर्शीद ने बताया कि ज्यादातर चोटिल जानवरों में उनको गाय-सांड ही मिलते हैं जो राह चलते गाड़ियों का शिकार हो जाते हैं.
डॅाक्टर के नाम से मशहूर हो चुके रुस्तम के पास कोई डिग्री तो नहीं लेकिन उसका दिल काफी बड़ा है. रुस्तम के मुताबिक, उनसे जानवरों का दर्द देखा नहीं जाता. पिछले 7 सालों में उन्होंने गाय-सांड से लेकर कुत्ता, गधा और कबूतर का भी इलाज भी किया है.
इस बार इस सांड की तीसरी बार ड्रेसिंग करने आए हैं. उन्होंने बताया कि कई बार अपनी इस हरकत पर उन्हें परिवार वालों के विरोध का सामना भी करना पड़ा है. लेकिन उनका मन नहीं मानता. एक बार बनारस के ही रेवड़ी तालाब इलाके में कुछ सिरफिरों ने गाय के इलाज के वक्त विरोध किया तो मोहल्ले वालों ने सिरफिरों को चलता किया. रुस्तम का मानना है कि नेता वोट बैंक की राजनीति के लिए हिंदू-मुस्लिम को लड़वाते हैं.
मौलाना कलामनुरी साहब ने बताया कि वे बीफ खाने के पक्ष में नहीं हैं; पैगंबर और इस्लाम का पैगाम है कि जो जमीन वाले पर दया करेगा ऊपर वाले की दया उसी पर होगी.
उन्होंने बताया कि जिस मुल्क में रहो उसका और मुल्क के कानून का सम्मान करना चाहिए.
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