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कोरोना के बाद लगाए गए लॉकडाउन के दौरान लाखों मजदूर फेक न्यूज के चलते अपने घरों को लौटने पर मजबूर होने लगे. ये हम नहीं बल्कि केंद्र सरकार ने संसद में कहा है. केंद्र सरकार ने संसद के मानसून सत्र के पहले दिन जहां ये बोलकर चौंका दिया था कि उनके पास लॉकडाउन के दौरान हुई प्रवासी मजदूरों के मौत का कोई आंकड़ा नहीं है, वहीं अब सत्र के दूसरे दिन केंद्र सरकार ने मजदूरों की मजबूरी का दोष फेक न्यूज को दिया है.
दरअसल संसद में केंद्र सरकार से टीएमसी सांसद माला रॉय ने एक लिखित जवाब में पूछा था कि सरकार ने लॉकडाउन का ऐलान करने से पहले प्रवासी मजदूरों के लिए क्या-क्या कदम उठाए थे? जिसके चलते हजारों मजदूर पैदल ही अपने घरों तक पहुंचने के लिए मजबूर हो गए और रास्ते में कई मजदूरों की मौत हो गई.
इस सवाल के जवाब में राज्य गृहमंत्री नित्यानंद राय ने पूरा ठीकरा फेक न्यूज पर फोड़ते हुए कहा,
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार इस दौरान प्रवासी मजदूरों के लिए काफी सतर्क थी. सरकार ने इस बात का खयाल रखा था कि किसी को भी जरूरत की किसी भी चीज की कोई कमी नहीं होनी चाहिए. इसके अलावा मंत्री ने कहा कि केंद्र सरकार ने सभी राज्य सरकारों को 28 मार्च को स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड (SDRF) रिलीज करने की इजाजत भी दे दी थी. जिससे कि लोगों को खाना, कपड़े, दवाईयां और अन्य जरूरी चीजें मिलती रहें.
इससे पहले केंद्र सरकार से प्रवासी मजदूरों को लेकर सवाल पूछा गया था, साथ ही ये भी कहा गया कि जिन मजदूरों की पैदल चलने के दौरान मौत हुई थी, उन्हें मुआवजा देने का क्या प्रावधान है.
हालांकि लॉकडाउन लगाए जाने के बाद देशभर के लोगों ने सड़कों पर प्रवासी मजदूरों की लंबी कतारें देखीं थीं. बुनियादी सुविधाएं नहीं मिलने के चलते मजदूर पैदल चलने को ही मजबूर थे. इस दौरान कई मजदूरों की ट्रेन, बस, ट्रक और अन्य वाहनों के नीचे दबकर मौत हुई. वहीं कई मजदूरों की खुदकुशी की खबरें भी सामने आईं.
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