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ट्रेन रद्द होने से फंसे मजदूरों की आपबीती-वापस जाने के पैसे नहीं

कर्नाटक सरकार ने मजदूरों को वापस ले जाने वाली सभी ट्रेनें कैंसल कर दी हैं

अरुण देव
भारत
Updated:
बेंगलुरु में ट्रांजिट कैंप के बाहर इकट्ठा हुए प्रवासी मजदूर
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बेंगलुरु में ट्रांजिट कैंप के बाहर इकट्ठा हुए प्रवासी मजदूर
(फोटो: अरुण देव/क्विंट हिंदी)

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सफर लंबा होगा, ये सोचकर प्रदीप ने अपनी अच्छी शर्ट पहनी. उसके पास दो पेन थे. एक शर्ट की पॉकेट में लगाया हुआ था और एक पैंट की पॉकेट में था. उससे कहा गया था कि घर जाने के लिए कई दस्तावेज लगेंगे. अपना सामान लिए वो टुमकुर हाईवे पर चला जा रहा था. बेंगलुरु इंटरनेशनल एग्जीबिशन सेंटर (BIEC) का गेट देख उसके कदम तेज हो गए.

BIEC पर ट्रांजिट कैंप, बिहार के लिए ट्रेन पकड़ने से पहले आखिरी पड़ाव था.

जव वो गेट की तरफ जाने लगा, तो पुलिस ने उसपर और उसके दोस्तों पर लाठियां बरसाईं. उस एक पल में, उसके चेहरे पर कई भाव आ गए - डर, परेशानी, असहाय...

6 मई को कर्नाटक सरकार के प्रवासी मजदूरों को वापस घर ले जाने वाली ट्रेनें कैंसल करने से घंटों पहले, क्विंट बेंगलुरु में एक ट्रांसिज सेंटर पहुंचा, जहां मजदूर ट्रेन टिकट लेने के लिए पहुंचते हैं.

प्रदीप कुमार भी उन सैकड़ों प्रवासियों में शामिल हैं, जो घर वापसी के लिए टिकट की उम्मीद में BIEC में ट्रांजिट सेंटर आए थे. 5 मई से, कर्नाटक सरकार करीब 2,000 प्रवासी मजदूरों को BIEC में शिफ्ट कर चुकी है, ताकि ट्रेनों में घर भेजने से पहले उनकी स्क्रीनिंग की जा सके.

लेकिन सरकार ने एक लिस्ट के आधार पर पहले से उन प्रवासियों को सलेक्ट कर लिया था, जिन्हें ट्रांजिट कैंप में शिफ्ट किया जाएगा, और ये वॉक-इन कैंडिडेट्स के लिए खुला नहीं था. इसके कुछ घंटों बाद ही, कर्नाटक सरकार ने प्रवासी मजदूरों को ले जाने वाली सभी ट्रेनों को रद्द करने का फैसला किया.

ट्रांजिट कैंप की खबर फैलने के बाद, राज्य भर से मजदूर BIEC की आने लगे. कुछ ने ट्रक का सहारा लिया, तो कुछ ज्यादा रुपये देकर ऑटोरिक्शा से आए, और कुछ ने 20 किलोमीटर का लंबा सफर तय किया.

लेकिन पुलिस को साफ निर्देश थे. किसी भी प्रवासी मजदूर को अंदर नहीं आने देना है.

पुलिस के भगाने के बाद, प्रदीप एक बस स्टॉप के पास जाकर खड़े हो गए, जहां उन्होंने देखा कि उनके जैसे करीब 20 लोग और खड़े हैं. उन्होंने कहा, “उन्होंने हमसे फॉर्म भरने के लिए कहा, और फिर ट्रेन मिलेगी. लेकिन जब हम यहां आए तो हमें लाठियों से मारा गया.”

BIEC के नजदीक एक बस स्टॉप(फोटो: अरुण देव/क्विंट हिंदी)

राज्य में कंस्ट्रक्शन काम शुरू होने के बाद, कर्नाटक सरकार मजदूरों से रुकने के लिए कह रही है, लेकिन प्रदीप का कहना है कि वो ऐसा नहीं कर सकते, क्योंकि बेंगलुरु में रहने की स्थिति काफी खराब है.

“पहले वो हमारे इलाके में खाना डिलीवर करते थे. लेकिन अब वो भी रोक दिया है. अगर मैं घर चला गया, तो कम से कम कुछ खाना तो मिलेगा.”
प्रदीप कुमार

खाने की सप्लाई बंद होने के बाद, उन्होंने किसी भी कीमत पर ट्रेन पकड़ने का फैसला किया. सेवा सिंधु से अपना रजिस्ट्रेशन फॉर्म दिखाते हुए उसने कहा, “पिछले 10 दिनों से, मैं यही कर रहा हूं. कोई मुझे कहीं जाने के लिए कहता है, कोई किसी फॉर्म को भरने के लिए कहता है और अब मैं 20 किमी का सफर कर यहां पहुंचा हूं. फिर भी, कोई हमें घर पहुंचाने की बात नहीं कर रहा है.” सेवा सिंधू एक ऑनलाइन पोर्टल है, जो प्रवासी मजदूरों के लिए कर्नाटक सरकार ने बनाया है.

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घंटों सफर कर ट्रांजिट कैंप पहुंचे मजदूर

उत्तर प्रदेश के रहने वाले पेंटर, विवेक गुप्ता ने बताया कि रजिस्ट्रेशन फॉर्म को भरने और प्रिंट कराने के लिए उन्होंने 100 रुपये दिए.

एक अन्य प्रवासी, आशीष सहाय ने भी बताया कि कैसे वो इतनी मुश्किलों के बाद ट्रेन पकड़ने के लिए यहां तक पहुंचे हैं. उन्होंने कहा, “जब मैं यहां पहुंचा, तो यहां कुछ नहीं था, और यहां तक पहुंचने के लिए मुझे 600 रुपये देने पड़े. मुझे किसी ने कहा कि ट्रेन यशवंतपुरा से जाएगी. मैंने वहां तक जाने के लिए फिर 600 रुपये दिए. मैं वहां पर कुछ लोगों से मिला, जिन्होंने इस जगह (BIEC) का बताया, और मैंने यहां आने के लिए 1,000 रुपये (10 लोगों के ग्रुप के लिए) दिए.”

अपने रजिस्ट्रेशन के कागज दिखाते हुए आशीष सहाय(फोटो: अरुण देव/क्विंट हिंदी)

सहाय ने कहा कि BIEC उनकी आखिरी उम्मीद थी और यहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने सारे पैसे खर्च कर दिए. पुलिस उनसे जगह खाली करने के लिए कह रही है, लेकिन उनके पास वापस मजदूर कैंप लौटने के पैसे नहीं हैं. उन्होंने कहा कि वो रात बिताने के लिए BIEC के नजदीक एक बस स्टॉप पर सो जाएंगे, लेकिन वहां पहले से ही 20 लोग मौजूद हैं.

45 वर्षीय मजदूर, भोला यादव BIEC के अंदर घुसने की उम्मीद से 5 मई की सुबह से यहां बैठे हैं. उन्होंने कहा. “मैं पिछले दो दिनों से सड़क पर हूं. मैं यहां आने से पहले, मैजेस्टिक स्टेशन, यशवंतपुरा स्टेशन, चिक्काबनावरा स्टेशन गया था. मेरे पास जो भी पैसे थे, वो खत्म हो चुके हैं.”

45 वर्षीय मजदूर भोला यादव(फोटो: अरुण देव/क्विंट हिंदी)

बिहार के रहने वाले ब्रिजेश्वर साहनी BIEC कैंपस के अंदर थे. वो अपने साथियों से मिलने बाहर आए, लेकिन अब उन्हें अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है. उन्होंने कहा, “अब पुलिस मुझे अंदर नहीं जाने दे रही. मेरा परिवार और सामान अंदर हैं. कम से कम मुझे खाना मिल रहा था, मुझे नहीं मालूम कि अब मैं क्या करूंगा.”

BIEC के गेट पर तैनात एक पुलिस अफसर ने कहा कि उनके पास किसी को अंदर न जाने देने के सख्त निर्देश हैं. केवल उन्हीं को अंदर जाने की इजाजत है, जिन्हें अधिकारी ला रहे हैं. उन्होंने बताया कि कुछ ही दूरी पर कुछ प्रवासी मजदूरों ने एक पुलिस अफसर पर हमला कर दिया, जिसके बाद ज्यादा सावधानी बरतने को कहा गया है.

पुलिस पर मजदूरों ने किया हमला

5 मई की रात, करीब 500 प्रवासी मजदूर ट्रेन पकड़ने की उम्मीद से BIEC आए थे. सरकार के आदेश के कारण, उन्हें अंदर नहीं जाने दिया गया. पीन्या पुलिस अफसर मुद्दुराजू ने कहा, “इन मजदूरों ने मडावरा के पास टुमकुर हाइवे ब्लॉक कर दिया, BIEC से करीब एक किलोमीटर दूर. मैं घटनास्थल के नजदीक था तो तुरंत वहां पहुंचा. भीड़ सुनने को तैयार ही नहीं थी, उनमें से एक ने मुझपर पत्थर फेंका.”

कर्नाटक से इंटरस्टेट ट्रैवल के लिए नोडल अफसर नियुक्त सीनियर आईएएस अफसर एन मंजुनाथ प्रसाद ने कहा कि सेवा सिंधू के जरिए रजिस्टर का मतलब ट्रेन का टिकट मिलना नहीं है.

“एक ट्रेन सिर्फ 1,021 पैसेंजर्स ले जा सकती है. तो जब एक ट्रेन ऑर्गनाइज की जाती है, तो हमारे पास जो लिस्ट है, उसके आधार पर 1,021 पैसेंजर्स को डिटेल्स के साथ मैसेज भेजा जाता है. प्रवासियों ने ये सोच लिया है कि रजिस्ट्रेशन का मतलब टिकट है. हम उनसे अपील करते हैं कि मैसेज का इंतजार करें.”
मंजुनाथ प्रसाद, सीनियर आईएएस अफसर

दूसरी ओर, BIEC में ट्रांजिट सेंटर के बाहर इंतजार कर रहे मजदूर अंदर जाने की उम्मीद कर रहे हैं. हालांकि, जो अंदर हैं, उनके लिए भी हालात बहुत अच्छे नहीं हैं. लेकिन प्रदीप का कहना है, “अंदर हमें कम से कम हमें तीन वक्त का खाना और छत तो मिलेगी. कृपया कोई उन्हें हमारे बारे में बताए, जो बाहर फंसे हुए हैं.

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Published: 06 May 2020,08:08 PM IST

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