Home News India मिल्खा ने शहीद के बेटे को अपनाया, बेहतरीन इंसान होने की 7 कहानियां
मिल्खा ने शहीद के बेटे को अपनाया, बेहतरीन इंसान होने की 7 कहानियां
पाकिस्तान के पूर्व फील्ड मार्शल अयूब खान ने Milkha Singh को ‘फ्लाइंग सिख’ कहा था
क्विंट हिंदी
भारत
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पाकिस्तान के पूर्व फील्ड मार्शल अयूब खान ने Milkha Singh को ‘फ्लाइंग सिख’ कहा था
(फोटो: क्विंट)
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भारत के सबसे मशहूर स्प्रिंटर मिल्खा सिंह (Milkha Singh) का निधन हो गया है. मिल्खा को दुनियाभर में 'फ्लाइंग सिख' (Flying Sikh) के नाम से भी जाना जाता था. उन्हें ये नाम पाकिस्तान के पूर्व फील्ड मार्शल अयूब खान ने दिया था. मिल्खा सिंह कई दिनों से कोरोना वायरस से जूझ रहे थे. पांच दिन पहले उनकी पत्नी का भी निधन हो गया था. मिल्खा एक शानदार एथलिट ही नहीं, बल्कि एक बेहतरीन इंसान भी थे.
बंटवारे के समय पाकिस्तान के गोविंदपुरा से भारत आना और फिर एथलेटिक्स में देश का नाम रोशन करने तक, मिल्खा सिंह की जिंदगी में बहुत उतार-चढ़ाव बने रहे. हालांकि, उन्होंने हर हालात से जूझते हुए पहले सेना और फिर एथलेटिक्स की दुनिया में खुद को साबित किया.
हम यहां मिल्खा सिंह की जिंदगी के कुछ ऐसे किस्से बता रहे है, जो साबित करते हैं कि वो चैंपियन होने के अलावा एक अच्छे इंसान भी थे.
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1958 कॉमनवेल्थ गेम में मिल्खा सिंह ने गोल्ड मेडल जीता था. 400 मीटर की रेस जीतने पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने मिल्खा से कुछ इनाम मांगने को कहा था, मिल्खा ने सिर्फ एक दिन का 'राष्ट्रीय अवकाश' मांगा था.
1999 में मिल्खा सिंह ने कारगिल युद्ध में शहीद हुए बिक्रम सिंह के सात साल के बेटे को गोद लिया था.
फ्लाइंग सिख ने अपने सभी मेडल और स्पोर्टिंग ट्रेजर देश के नाम कर दिया था. ये सब आज पटियाला के स्पोर्ट्स म्यूजियम का हिस्सा है.
मिल्खा अंत तक खेल जगत और भारत से पूरी तरह से जुड़े रहे. उन्होंने पंजाब सरकार के अंतर्गत डायरेक्टर ऑफ स्पोर्ट्स के रूप में काम करते हुए अनगिनत युवा एथलीटों का मार्गदर्शन किया.
2003 में स्थापित मिल्खा सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट उन युवा एथलीटों की मदद कर रहा है जिनके पास खेल के संसाधन उपलब्ध नहीं हैं. अपनी आत्मकथा के राइट्स को तो मिल्खा सिंह ने फिल्म निर्माता को ₹1 में बेचा लेकिन साथ ही यह सुनिश्चित किया कि फिल्म से हुई प्रॉफिट का एक हिस्सा फाउंडेशन के लिए भी जाये.
इंडिया टुडे को दिए गए इंटरव्यू में मिल्खा सिंह ने करण थापर से कहा था कि बच्चों को पढ़ाने और संस्कार देने में उनकी पत्नी निर्मल का ही अहम योगदान रहा है. पत्नी के बारे में मिल्खा लगभग हर इंटरव्यू में बात करते थे. वो सार्वजनिक तौर भी उनकी तारीफ करते थे. मिल्खा ने अपनी किताब में पत्नी निर्मल को जिंदगी की 'सबसे बड़ी ट्रॉफी' बताया है.
वरिष्ठ खेल पत्रकार विजय लोकापल्ली एक वाकया याद करते हैं. विजय दिल्ली के एक होटल में मिल्खा से मिलने गए थे. वहां नाश्ता सर्व हुआ तो विजय को एहसास हुआ कि वह गर्म नहीं है. वो अपना आपा खो बैठा लेकिन मिल्खा नहीं. उन्होंने नाश्ता सर्व कर रहे लड़के को हल्का सुनाया और फिर विजय की तरफ मुड़ कर बोले, "जो तुम्हारे पास है उसमें खुश रहो. तुम्हें अंदाजा भी नहीं है कि कितने लोग ऐसे हैं जिनके पास यह प्रिविलेज नहीं है".