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जाने-माने अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती बीजेपी में शामिल हो गये हैं. मिथुन चक्रवर्ती ने कोलकाता के ब्रिगेड परेड मैदान में पीएम मोदी की रैली के दौरान पार्टी ज्वाइन की और बीजेपी का झंडा लहराया. लेकिन ऐसा नहीं कि ये अभिनेता पहली बार नेता बन रहा हो. मिथुन बंगाल की लगभग हर पार्टी में रह चुके हैं.
ममता बनर्जी से टक्कर लेने के लिए बीजेपी को किसी बड़े नाम की तलाश थी. पहले सौरव गांगुली को पार्टी में शामिल करने की कोशिश हुई, लेकिन उनकी सेहत की वजह से मामला टल गया. इसके बाद मिथुन चक्रवर्ती को शामिल करने की कोशिश शुरु हुई. मिथुन चक्रवर्ती के पहले मोहन भागवत और फिर पश्चिम बंगाल के बीजेपी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय से मुलाकात के बाद ये तय माना जा रहा था, वो पार्टी में शामिल होंगे.
पश्चिम बंगाल के बीजेपी प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय ने मीडिया से बातचीत में कहा कि मिथुन चक्रवर्ती चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन बीजेपी के हाथ को मजबूत करेंगे. यानी मिथुन दा सीधे तौर पर ममता बनर्जी के आमने-सामने नहीं होंगे, लेकिन बीजेपी प्रत्याशियों के प्रचार अभियानों में खुलकर हिस्सा लेंगे. इससे इस कयास को भी विराम लग गया है कि मिथुन चक्रवर्ती को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया जा सकता है. वैसे भी बीजेपी में किसी बाहरी व्यक्ति को सीधे बड़ा पद देने की परंपरा नहीं है.
• छात्र जीवन में कांग्रेस दल में शामिल हुए, बाद में नक्सल आंदोलन में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया.
• नक्सलियों के दमन के दौरान भाई की पुलिस फायरिंग में मौत हो गई, जिसके बाद परिवार में वापस लौट आए और करियर पर फोकस किया.
• शुरुआती सालों में लेफ्ट से जुड़े रहे और कई बार खुद को लेफ्टिस्ट बताया. ये पश्चिम बंगाल में खेल मंत्री और वरिष्ठ वामपंथी नेता सुभाष चक्रवर्ती के काफी करीबी माने जाते थे.
• साल 2011 में जब ममता बनर्जी ने बंगाल की सत्ता संभाली तो मिथुन चक्रवर्ती तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये और इसी पार्टी से राज्यसभा के सांसद चुने गये.
• शारदा चिटफंड घोटाले में नाम आने के बाद उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और साल 2016 में राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया.
• मिथुन चक्रवर्ती अब एक बार फिर राजनीति में उतरे हैं और इस बार बीजेपी का झंडा उठाया है.
1972 में पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट (Film and Television Institute of India) में ऐक्टिंग के लिए दाखिला लिया और स्वर्णपदक के साथ पास हुए.
मुंबई में संघर्ष के दौरान इन पर मृणाल सेन की नजर पड़ी और दिसंबर 1975 में मृगया नामक फिल्म की शूटिंग शुरु हुई.
1976 में अपनी पहली ही फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
लेकिन इतनी बड़ी कामयाबी के बावजूद उन्हें फिल्में नहीं मिलीं. काले रंग के कारण उन्हें काफी जिल्लत झेलनी पड़ी. काम मांगने के दौरान एक बार वहां मौजूद अभिनेता जितेंद्र ने कहा कि अगर इस काले लड़के को हीरो के लिए फिल्म मिल जाए तो मैं मुंबई छोड़ दूंगा.”
काम के लिए बार-बार चक्कर लगाने पर निर्माता-निर्देशक मनमोहन देसाई ने उन्हें दस रुपये दिये और कहा भाई जहां से आये है वहीं चले जाओ.
इन सबके बावजूद मिथुन ने कभी हार नहीं मानी. महीनों तक मुंबई के फुटपाथ पर सोते रहे. टैक्सी धोने का काम भी किया, लेकिन संघर्ष जारी रखा.
हालत ये थी कि जब मुंबई के एक पत्रकार ने राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेता का इंटरव्यू लेना चाहा तो मिथुन ने पहले भर पेट भोजन खिलाने की शर्त रखी, तब जाकर इंटरव्यू दिया.
काफी संघर्ष करने के बाद मिथुन को छोटी-छोटी भूमिकाएं मिलने लगी. फिल्म ‘मेरा रक्षक’ में बतौर लीड भूमिका के बाद बी-ग्रेड की फिल्में भी मिलने लगीं.
1979 में फिल्म ‘सुरक्षा’ से पहचान मिली, लेकिन 1982 में आई ‘डिस्को डांसर’ ने रातों रात मिथुन को स्टार बना दिया.
1993 में बांग्ला फिल्म ‘तहादेर कथा’ के लिए फिर से सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला.
1996-में फिल्म ‘स्वामी विवेकानंद’ के सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. जूरी के सदस्य रहे ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा कि “रामकृष्ण परमहंस का अभिनय मिथुन के अलावा और कोई इतना बेहतर नहीं कर सकता था, यदि कोई करता तो स्वयं भगवान ही कर सकते थे.”
इस बीच उन्होंने फिल्म मुजरिम, प्रेम प्रतिज्ञा, प्यारी बहना, प्यार झुकता नहीं जैसी कई फिल्मों में शानदार अभिनय किया, लेकिन एक भी अवार्ड नहीं मिला.
बाद में अग्निपथ के सह- अभिनेता, जल्लाद के लिए सर्वश्रेष्ठ खलनायक और गुरु के लिए सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेता का फिल्मफेयर अवार्ड मिला.
मिथुन हिन्दी समेत बंगाली, उड़िया, भोजपुरी, तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और पंजाबी में बनी करीब 350 फिल्मों में काम कर चुके हैं. हाल ही में आई फिल्म 'ताशकंद फाइल्स' में भी उनके अभिनय को काफी पसंद किया गया.
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