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तीस्ता जल विवादः ममता, मोदी और हसीना में नहीं बनी बात?

बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को नहीं रास आई ममता बनर्जी की राय

द क्विंट
भारत
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बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के साथ भारतीय पीएम मोदी और प. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (फोटोः PTI)
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बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के साथ भारतीय पीएम मोदी और प. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी (फोटोः PTI)
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तीस्ता जल विवाद पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पीएम मोदी और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना को तीस्ता के बजाय दूसरी नदियों के पानी का बंटवारे करने का प्रस्ताव दिया. लेकिन दोनों ने ही इस प्रस्ताव पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. शेख हसीना चार दिवसीय दौरे पर भारत आईं हैं. उनकी भारत यात्रा के दौरान कई मुद्दों पर समझौते हुए लेकिन करीब 45 साल से उलझा तीस्ता नदी के जल बंटवारे का मुद्दा अनसुलझा ही रह गया.

शनिवार को दिल्ली के हैदराबाद हाउस में भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री की मौजूदगी में ममता ने यह प्रस्ताव पेश किया था. इसके बाद राष्ट्रपति भवन में भी ममता ने हसीना के साथ अनौपचारिक बातचीत के दौरान यह पेशकश रखी थी.

क्या था ममता का फॉर्मूला?

तीस्ता जल विवाद पर ममता बनर्जी ने कहा कि तीस्ता नदी उत्तरी बंगाल की लाइफलाइन है. तीस्ता नदी में काफी कम पानी है और भारत सरकार को इस नदी के अलावा अन्य नदियों पर फोकस करना चाहिए. ममता बनर्जी ने कहा, बांग्लादेश की समस्या तीस्ता नहीं बल्कि पानी है. भारत-बांग्लादेश के बीच कई और नदी हैं जिससे पड़ोसी देश को पानी दिया जा सकता है.

ममता ने कहा- तीस्ता की बजाय दूसरी नदियों का पानी साझा किया जा सकता है जो बांग्लादेश में भी बहती हैं. ममता ने शेख हसीना से कहा कि तीस्ता नदी में इतना पानी नहीं है, जिसे बांग्लादेश के साथ साझा किया जा सके. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पश्चिम बंगाल को सिंचाई और पेयजल की जरूरतों के लिए पानी चाहिए और गर्मी के दौरान तीस्ता लगभग सूख जाती हैं.
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क्या है तीस्ता जल विवाद?

तीस्ता नदी भारत के सिक्किम राज्य से निकल कर पश्चिम बंगाल से होते हुए बांग्लादेश की ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है. तीस्ता समझौते के मुताबिक, खराब मौसम के दौरान दोनों देशों के बीच 50:50 फीसदी जल बांटवारे की बात है. हालांकि ममता बनर्जी का मानना है कि इस समझौते से उनके राज्य को नुकसान पहुंचेगा. सिक्किम के साथ उत्तरी पश्चिम बंगाल के पांच जिलों में करीब एक करोड़ लोग इस नदी पर खेती और अपनी अन्य जरुरतों के लिए निर्भर हैं. दूसरी ओर, बांग्लादेश की बड़ी आबादी भी इस पर निर्भर है.

साल 2011 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह बांग्लादेश गए थे तब यह समझौता हुआ था कि दोनों देश (भारत-बांग्लादेश) तीस्ता जल का बराबर-बराबर इस्तेमाल करेंगे. लेकिन तब भी ममता बनर्जी ने यह तर्क देते हुए विरोध किया था कि इससे सूखे के मौसम में पश्चिम बंगाल के किसान तबाह हो जाएंगे.

45 साल से नहीं सुलझा विवाद

बांग्लादेश के पाकिस्तान से आजाद होने के बाद साल 1972 में दोनों देशों ने नदी संबंधी मुद्दों के समाधान के लिए एक संयुक्त जल आयोग का गठन किया था. आयोग ने अपनी रिपोर्ट 1983 में दी और इसके मुताबिक तीस्ता का 39 फीसदी पानी भारत, 36 फीसदी पानी बांग्लादेश और 25 फीसदी पानी नदी का प्रवाह बनाए रखने का प्रस्ताव दिया गया.

इसी बीच भारत ने पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी जिले में गाजलडोबा बांध बना दिया. साल 1983 के समझौते के प्रावधान नदी प्रवाह के सही आंकड़े नहीं मिलने की वजह से लागू नहीं हो पाए थे.

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