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फ्रीडम हाउस रिपोर्ट को सरकार ने बताया भ्रामक,7 प्वाइंट में रखी बात

इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत स्वतंत्र देश से आंशिक रूप से स्वतंत्र देश में बदल चुका है और सत्तावाद की तरफ बढ़ रहा है

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फ्रीडम हाउस रिपोर्ट को सरकार ने बताया भ्रामक,7 प्वाइंट में रखी बात
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फ्रीडम हाउस रिपोर्ट को सरकार ने बताया भ्रामक,7 प्वाइंट में रखी बात
(फोटो: PTI)

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अमेरिकी संस्था फ्रीडम हाउस ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें पॉलिटिकल फ्रीडम और ह्यूमन राइट्स को लेकर तमाम देशों में रिसर्च की गई है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत एक स्वतंत्र देश से आंशिक रूप से स्वतंत्र देश में बदल चुका है और मोदी सरकार के नेतृत्व में देश सत्तावाद की तरफ बढ़ रहा है.‘डेमोक्रेसी अंडर सीज ’शीर्षक वाली रिपोर्ट में इंडिया का स्कोर 71 से घटकर 67 हो गया है और भारत की रैंकिंग 211 देशों में 83 से फिसलकर 88वें पोजिशन पर आ गई है. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से जारी एक प्रेस रिलीज में ‘डेमोक्रेसी अंडर सीज ’ रिपोर्ट को भ्रामक, गलत औऱ अनुचित बताया है.

रिपोर्ट को खारिज करते हुए कहा गया है कि ये एक फैक्ट है कि भारत के संघीय ढांचे के तहत केंद्र में जिस पार्टी का शासन है, उसके अलावा राज्यों में अलग-अलग पार्टियां शासन करती है. ये पार्टियां चुनावी प्रक्रिया के तहत चुनकर आती हैं, जिसे एक स्वतंत्र और निष्पक्ष इलेक्शन बॉडी कराती है. ये सब एक जीवंत लोकतंत्र को दिखाते हैं, जहां अलग-अलग विचारों को जगह दी जाती है.

मंत्रालय की तरफ से जारी प्रेस रिलीज में 7 प्वाइंट में खंडन किया गया है.

1. भारत में मुसलमानों और उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के खिलाफ बनाई गई भेदभावपूर्ण नीति :

बयान में कहा गया है कि भारत सरकार अपने सभी नागरिकों के साथ समानता का व्यवहार करती है, जैसा देश के संविधान में निहित है और बिना किसी भेदभाव के सभी कानून लागू हैं. आरोपी भड़काने वाले व्यक्ति की पहचान को ध्यान में रखे बिना, कानून व्यवस्था के मामलों में कानून की प्रक्रिया का पालन किया जाता है. जनवरी, 2019 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए दंगों के विशेष उल्लेख के साथ, कानून प्रवर्तन मशीनरी ने निष्पक्ष और उचित तरीके से तत्परता से काम किया. हालात को नियंत्रित करने के लिए समानता के साथ और उचित कदम उठाए थे. प्राप्त हुई सभी शिकायतों/ कॉल्स पर कानून प्रवर्तन मशीनरी ने कानून और प्रक्रियाओं के तहत आवश्यक कानूनी और निरोधक कार्रवाई की थीं.

2. देशद्रोह कानून का उपयोग:

इस प्वाइंट पर रिलीज में कहा गया है कि भारत के शासन के संघीय ढांचे के तहत ‘सरकारी आदेश’ और ‘पुलिस’ राज्य के विषय हैं. अपराधों की जांच, दर्ज करना और मुकदमा, जीवन और संपत्ति की रक्षा आदि सहित कानून व्यवस्था बनाये रखने का दायित्व मुख्य रूप से राज्य सरकारों के पास है. इसलिए, कानून प्रवर्तन प्राधिकरणों द्वारा सार्वजनिक व्यवस्था की रक्षा के लिए सही कदम उठाए गए थे.

3. लॉकडाउन के माध्यम से कोविड-19 पर सरकार की प्रतिक्रिया:

रिलीज में कहा गया है कि महामारी को देखते हुए लॉकडाउन का फैसला केंद्र और राज्य के स्तर परलिया गया. एक राज्य से दूसरे राज्य में अगर भारी संख्या में लोग आते जाते तो संक्रमण फैला. लोगों में लॉकडाउन की वजह से परेशानी न हो इसलिए सरकार ने कई अहम कदम उठाए. कई सरकारी योजनाएं चलाई गईं. प्रेस रिलीज में ऐसी कई योजनाओं का जिक्र है.लॉकडाउन की वजह से सरकार मास्क, वेंटिलेटर्स, पीपीआई किट्स का प्रोडक्शन बढ़ा पाई थी, जिससे महामारी को तेजी से फैलने से रोकने में मदद मिली. प्रति व्यक्ति आधार पर भारत में कोविड-19 के सक्रिय मामलों की संख्या और कोविड-19 से जुड़ी मौतों के मामले में वैश्विक स्तर पर सबसे कम दर में से एक रही.

4. मानवाधिकार संगठनों पर सरकार की प्रतिक्रिया:

रिलीज में कहा गया है कि भारतीय संविधान मानवाधिकारों की रक्षा के लिए मानवाधिकार सुरक्षा अधिनियम, 1993 सहित विभिन्न कानूनों के तहत पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराती है. यह अधिनियम मानवाधिकारों के बेहतर संरक्षण और इस विषय से जुड़े मसलों के लिए एक राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोगों के गठन का प्रावधान करता है. राष्ट्रीय आयोग की अध्यक्षता उच्चतम न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश करते हैं और पूछताछ, जांच के एक तंत्र के रूप में काम करता है तथा ऐसे मामलों में सिफारिश करता है जहां उसे लगता है कि देश में मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है.

5. शिक्षाविदों और पत्रकारों को धमकी व मीडिया द्वारा व्यक्त असंतोष की अभिव्यक्ति पर अंकुश :

इस प्वाइंट के जवाब में प्रेस रिलीज में लिखा गया है कि भारतीय संविधान अनुच्छेद 19 के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए प्रावधान करता है. चर्चा, बहस और असंतोष भारतीय लोकतंत्र का हिस्सा है. भारत सरकार पत्रकारों सहित देश के सभी नागरिकों की सुरक्षा को सर्वोच्च अहमियत देती है. भारत सरकार ने पत्रकारों की सुरक्षा पर राज्यों और संघ शासित क्षेत्रों को विशेष परामर्श जारी करके उनसे मीडिया कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून लागू करने का अनुरोध किया है.

6. इंटरनेट शटडाउन:

दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात और लोक सुरक्षा) नियम, 2017 के प्रावधानों के तहत इंटरनेट सहित दूरसंचार सेवाओं का अस्थायी निलंबन किया जाता है, जिसे भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 के अंतर्गत जारी किया गया है. इस अस्थायी निलंबन के लिए केन्द्र सरकार के मामले में गृह मंत्रालय में भारत सरकार के सचिव; या राज्य सरकार के मामले में गृह विभाग के प्रभारी सचिव की अनुमति की जरूरत होती है. इसके अलावा, ऐसे किसी आदेश की समीक्षा एक निश्चित समय अवधि के भीतर केन्द्र या राज्य सरकार द्वारा, क्रमशः भारत सरकार के कैबिनेट सचिव या संबंधित राज्य के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में बनी समीक्षा समिति द्वारा की जाती है. इस प्रकार, सख्त सुरक्षा उपायों के तहत कानून व्यवस्था बनाए रखने के व्यापक उद्देश से दूरसंचार/इंटरनेट सेवाओं के अस्थायी निलंबन का सहारा लिया जाता है.

7.एफसीआरए संशोधन के तहत एमनेस्टी इंटरनेशनल की संपत्तियां जब्त किए जाने से रैंकिंग में आई गिरावट:

एमनेस्टी इंटरनेशनल को एफसीआरए अधिनियम के तहत सिर्फ एक बार और वह भी 20 साल पहले (19 दिसंबर 2000) में अनुमति मिली थी. तब से एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा बार-बार आवेदन के बावजूद बाद की सरकारों ने एफसीआरए स्वीकृति देने से इनकार कर दिया, क्योंकि कानून के तहत वह ऐसी स्वीकृति हासिल करने के लिए पात्र नहीं थी. हालांकि, एफसीआरए नियमों को दरकिनार करते हुए एमनेस्टी यू. के. भारत में पंजीकृत चार इकाइयों से बड़ी मात्रा में धनराशि ले चुकी है और इसका वर्गीकरण प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के रूप में किया गया. इसके अलावा एमनेस्टी को एफसीआरए के अंतर्गत एमएचए की मंजूरी के बिना बड़ी मात्रा में विदेशी धन प्रेषित किया गया. दुर्भावना से गलत रूट से धन लेकर कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन किया गया.एमनेस्टी के इन अवैध कार्यों के चलते पिछली सरकार ने भी विदेश से धन प्राप्त करने के लिए उसके द्वारा बार-बार किए गए आवेदनों को खारिज कर दिया था. इस कारण पहले भी एमनेस्टी के भारतीय परिचालन को निलंबित कर दिया गया था.

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Published: 05 Mar 2021,07:07 PM IST

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