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कृषि कानूनों को लेकर किसान और सरकार अब आमने-सामने हैं. दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब एक महीने से प्रदर्शन कर रहे किसान जहां इन कानूनों की खामियां गिना रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार ने किसान बनाम किसान का दांव खेला है. केंद्र सरकार की तरफ से लगातार अब कृषि कानूनों का समर्थन करने वाले किसानों को बैठक के लिए बुलाया जा रहा है, जिससे ये साबित करने की कोशिश हो रही है कि देश के "असली" किसान कृषि कानूनों और सरकार के साथ खड़े हैं. साथ ही इसी बीच केंद्र की तरफ से एक और चिट्ठी किसानों को लिखी गई है.
एक महीने से चल रहे किसान आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार अब हर वो मुमकिन कोशिश कर रही है, जिससे या तो ये आंदोलन कमजोर पड़ जाए या फिर खत्म हो जाए. कुल मिलाकर सरकार इस आंदोलन से बने दबाव को कम करने में जुटी है. लेकिन किसानों की समस्या के लिए किसानों का ही सहारा लिया जा रहा है. पिछले कुछ हफ्तों में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर कई समर्थक किसान संगठनों से मुलाकात कर चुके हैं. मुलाकात के बाद हर बार यही बात दोहराई जाती है कि किसानों का कहना है कि उनके लिए ये कानून बहुत ही ज्यादा फायदेमंद हैं और उन्हें कोई आपत्ति नहीं है.
अब एक बार फिर केंद्रीय कृषि मंत्री ने बागपत से आए किसान मजदूर संघ के नेताओं से मुलाकात की. जो सरकार के कृषि कानूनों का समर्थन करने आए थे. इस मुलाकात के बाद कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों ने उन्हें बताया कि सरकार को दबाव में आने की कोई जरूरत नहीं है. नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा,
इस दौरान राहुल गांधी ने कृषि कानूनों को लेकर राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद जो लोकतंत्र के खत्म होने की बात कही थी, उसे लेकर भी कृषि मंत्री से सवाल पूछा गया. इस पर नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि "देश में आपातकाल लगाने वाले आज लोकतंत्र की दुहाई देंगे तो कौन बर्दाश्त करेगा."
अब केंद्र सरकार की दूसरी चिट्ठी का जिक्र करते हैं, जो किसानों को भेजी गई है. एक तरफ केंद्रीय कृषि मंत्री समर्थक किसानों के हवाले से बता रहे थे कि संशोधनों को लेकर सरकार को किसी भी दबाव में आने की जरूरत नहीं है. वहीं दूसरी तरफ आंदोलन कर रहे किसानों को फिर से चिट्ठी लिखकर कहा गया कि वो अगले दौर की बातचीत के लिए तारीख और वक्त बताएं. केंद्र ने अपनी चिट्ठी में फिर दोहराया है कि वो किसानों के सभी मुद्दों का तर्कपूर्ण समाधान करने के पक्ष में हैं.
अब इस चिट्ठी की एक दिलचस्प बात आपको बताते हैं. जब किसानों ने सरकार के प्रस्ताव का लिखित जवाब भेजा था तो सरकार ने उस जवाब पर ही सवाल उठा दिए थे. पहले तो कहा गया कि ये काफी संक्षिप्त जवाब है और इसके साथ ही ये भी कहा गया कि क्रांतिकारी किसान यूनियन के नेता दर्शन पाल ने ये जवाब लिखा है, इससे साफ नहीं होता है कि आखिर ये सभी संगठनों की राय है या सिर्फ इस एक संगठन की. इस मामले को लेकर सराकर की जमकर आलोचना हुई थी. जिसके बाद सरकार को बताया गया कि ये संयुक्त किसान मोर्चा का जवाब है. अब इस नई चिट्ठी में लिखा गया है कि,
अब केंद्र सरकार अपने कानूनों के समर्थन में किसान संगठनों को जुटाकर और हर दूसरे दिन बातचीत के लिए चिट्ठी लिखकर प्रदर्शन कर रहे किसानों पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है. साथ ही हर चिट्ठी में बार-बार ये कहा जा रहा है कि आप जिन मुद्दों पर बात करना चाहते हैं उनका ब्योरा सरकार को दें. जबकि किसान पहले ही बिंदुवार तरीके से अपनी आपत्तियों को सरकार के सामने रख चुके हैं. लेकिन सरकार ने हर बार कहा कि ये स्पष्ट नहीं हैं.
अब इसी बीच एक बार फिर पीएम नरेंद्र मोदी 25 दिसंबर को किसानों को संबोधित करने जा रहे हैं. जैसा कि पहले के भाषणों में पीएम मोदी ने कृषि कानूनों की जमकर तारीफ की और वामपंथी दलों को इस आंदोलन का असली विलेन बताया, ठीक वैसे ही 25 दिसंबर को भी सुनने को मिल सकता है. इस दिन पीएम मोदी पीएम किसान योजना की 7वीं किस्त सीधे 9 करोड़ किसानों के खाते में ट्रांसफर भी करेंगे.
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