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मुरादाबाद नरसंहार: यहां कई मुसलमानों के लिए ईद खुशी का नहीं 'काला दिन' है | Documentary

Moradabad massacre 1980: 1980 के मुरादाबाद ईदगाह नरसंहार के चार दशक बाद यूपी सरकार ने इस घटना पर एक रिपोर्ट जारी की

फातिमा खान
भारत
Published:
<div class="paragraphs"><p>मुरादाबाद नरसंहार 1980</p></div>
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मुरादाबाद नरसंहार 1980

(फोटो- द क्विंट)

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1980 Moradabad massacre: इरशाद सकलैनी केवल 9 साल के थे जब उनके पड़ोस की ईदगाह से उनके रिश्ते हमेशा के लिए बदल गए. सकलैनी अगस्त के उस बादल भरे दिन में अपने पिता और भाई-बहनों के साथ ईद की नमाज अदा करने के लिए तैयार हो गए थे. मुरादाबाद के सभी परिवारों में यह परंपरा थी कि सभी बच्चे बड़ों के साथ ईद की नमाज के लिए ईदगाह जाते हैं.

ईद की नमाज खत्म होने के कुछ मिनट बाद, सकलैनी को एक अजीब गैस का अहसास होने लगा जो उनकी आंखों और मुंह को जलाने लगी. कुछ सेकंड बाद, तेज गोलियों की आवाजें सुनाई दीं. उस दिन मैदान में मौजूद हर दूसरे इंसान की तरह सकलैनी और उनका परिवार गोलियों से बचने की कोशिश करते हुए ईदगाह से बाहर भागने लगा. इससे वहां भगदड़ मच गई. सकलैनी नीचे गिर गये.

ईदगाह मैदान का वह गेट जहां 1980 में घटना हुई थी

(शिव कुमार मौर्य/द क्विंट)

इरशाद सकलैनी आज भी कहते हैं, "यह एक चमत्कार है कि मैं आज यहां आपके सामने बैठा हूं. ऐसे कई बच्चे हैं जो उस दिन गिरकर दबे और फिर कभी नहीं उठे."

मुरादाबाद ईदगाह में भगदड़ के बाद इरशाद सकलैनी बाल-बाल बच गए.

(शिव कुमार मौर्य/द क्विंट)

एक अजनबी ने नीचे गिरे सकलैनी की ओर हाथ बढ़ाया और समय रहते उठाने में कामयाब रहा. मुरादाबाद के एक अन्य निवासी का कहना है, "मुझे वे बच्चे आज भी याद हैं जो टूटे हुए तंबू के नीचे गिर गए थे. उनकी आंतें बाहर आ रही थीं... समझिए वे कितनी बुरी तरह कुचले गए थे."

उस दिन कितने लोग मरे इसका कोई ठोस आंकड़ा नहीं है. आंकड़े कई सौ से लेकर हजारों तक हैं. कुछ की मौत ईदगाह में गोलियों से हुई, कुछ की भगदड़ से और कुछ की मौत पुलिस और दंगाइयों द्वारा उनके घरों में घुसकर गोली मारने से हुई. इसे 1980 के मुरादाबाद नरसंहार के नाम से जाना गया.

सकलैनी कहते हैं, “उसके बाद कई सालों तक मैं ईदगाह नहीं गया. मैं उसके करीब भी जाने से बचता था.'' नरसंहार के चार दशक से अधिक समय के बाद, सकलानी की यादें ताजा हो गईं.

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस घटना पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसे सक्सेना आयोग की रिपोर्ट कहा गया. इस एक सदस्यीय जांच आयोग में रिटायर्ड जज एमपी सक्सेना शामिल थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस घटना की जांच करने का निर्देश दिया था.

उस समय केंद्र के साथ-साथ उत्तर प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार थी. आयोग ने 1983 में रिपोर्ट दे दी थी लेकिन चार दशकों तक किसी सरकार ने इसे जारी नहीं किया. फिर लोकसभा चुनाव से एक साल पहले अगस्त 2023 में, बीजेपी सरकार ने यूपी विधानसभा में रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट ने नरसंहार के पीड़ितों को बहुत अधिक राहत नहीं दी. इसके बजाय, इसने केवल जख्मों पर नमक छिड़का.

यहां देखिए डॉक्यूमेंट्री जिसमें हम बताएंगे चश्मदीदों की जुबानी 1980 के नरसंहार की कहानी. उनके जख्म आज भी कैसे हरे हैं?

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