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इंजीनियरिंग के लिए देश के सबसे प्रतिष्ठित संस्थान आईआईटी में एडमिशन लेने के लिए छात्र सालों तैयारी करते हैं, लेकिन क्या अब इस इंस्टीट्यूशन का क्रेज धीरे-धीरे कम हो रहा है? ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पिछले पांच सालों में 7 हजार से ज्यादा बच्चे आईआईटी से ड्रॉप कर चुके हैं. इसमें से 2 हजार छात्रों ने पिछले दो सालों में ड्रॉप किया है, और इसमें से अधिकतर छात्र वो हैं जो पोस्टग्रेजुएशन कर रहे हैं या फिर डॉक्टोरल प्रोग्राम.
पिछले दो सालों में कोर्स छोड़ने वाले छात्रों में से 1400 आईआईटी दिल्ली और खड़गपुर कैंपस के थे. एचआरडी मंत्रालय का कहना है कि पोस्टग्रेजुएशन लेवल पर ड्रॉपआउट रेट का बढ़ना कंपनियों के लुभावने जॉब ऑफर्स हो सकते हैं.
पीटीआई के मुताबिक, आईआईटी में पोस्टग्रेजुएट प्रोग्राम में ड्रॉपआउट रेट 50 फीसदी से ज्यादा है.
दबाव और कई कारणों के कारण हर साल कई छात्र आईआईटी छोड़ रहे हैं. जहां आईआईटी बच्चों को 'एग्जिट ऑप्शन' देने के पक्ष में है, वहीं आईआईआईटी इसका विरोध कर रहा है.
आईआईआईटी बेंगलुरु के डायरेक्टर एस सदागोपन ने द टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, 'हमारा एग्जिट ऑप्शन को इंट्रोड्यूस करने का इराजा नहीं है क्योंकि ये छात्रों के इंस्टीट्यूट छोड़ने जितना ही बुरा है. ये हमेशा उनके साथ रहता है. इससे बेहतर है कि इन संस्थानों के टीचर्स पर भरोसा करें. उन्होंने इस प्रोफेशनल जिंदगी में कई साल बिताए हैं और उन्हें पता है कि छात्रों के लिए क्या बेहतर है.'
एक आरटीआई में खुलासा हुआ है कि पिछले पांच सालों में 10 आईआईटी में 27 बच्चों ने अपनी जान ले ली. एचआरडी मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ हायर एजुकेशन के डेटा के मुताबिक, आत्महत्या की सबसे ज्यादा घटनाएं आईआईटी मद्रास में हुईं. आईआईटी मद्रास में पिछले पांच सालों में 7 बच्चों ने अपनी जान ले ली.
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