advertisement
‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ ये नारा तो आपने सुना होगा और सड़कों पर पोस्टर में लिखा देखा भी होगा. शायद अब इस नारे का असर भी दिखने लगा है. बेटियों की चाहत लोगों के दिलों में भी बढ़ने लगी है. और यही बात अब राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के ताजा सर्वे में भी झलकने लगी है.
एनएफएचएस की रिपोर्ट के मुताबिक, 79% महिलाएं और 78% पुरुषों ने ये माना है कि उन्हें कम से कम एक लड़की मतलब एक बेटी तो चाहिए ही. इस सर्वे में 15 से 49 साल की महिलाएं और 15 से 54 साल के पुरुषों को शामिल किया गया था.
इस रिपोर्ट में एक और दिलचस्प बात निकल कर आई है कि मुसलमान, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, ग्रामीण लोगों और आर्थिक रूप से कमजोर तबके की महिलाएं और पुरुष दोनों ही बेटी के लिए इच्छुक हैं.
अगर बात सबसे ज्यादा बेटी की की इच्छुक की करें तो उसमें अनुसूचित जनजाति के पुरुषों का नाम आता है. 84% अनुसूचित जनजाति के पुरुष कम से कम एक बेटी की इच्छा रखते हैं.
अक्सर बेटी बचाव या बेटों और बेटियों में कोई फर्क नहीं है, ऐसी बातें शहरी और अमीर लोगों से जोड़कर देखा जाता है. लेकिन एनएफएचएस के नए सर्वे में चौंकाने वाली बात सामने आई है.
वहीं इस सर्वे को देखने के बाद पढ़े लिखे की बात की जाए तो करीब 85% ऐसी महिलाएं जो कभी स्कूल नहीं गईं या सिर्फ घरेलू पढ़ाई की है उन्हें कम से कम एक बेटी तो चाहिए ही. जबकि 12वीं पास सिर्फ 72% महिलाओं ने ही बेटी की इच्छा जाहिर की है.
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के रिपोर्ट में बेटे की इच्छा को लेकर भी सवाल किया गया था. जिसमें ये बात सामने निकलकर आई है कि अब भी बेटी से ज्यादा बेटे की चाहत है. लगभग सभी कैटगरी में 82% महिलाएं और 83% पुरुष परिवार में कम से कम एक बेटा चाहते हैं. इसके अलावा, महिलाओं और पुरुषों दोनों में लगभग 19% लोगों ने बेटियों की तुलना में अधिक बेटे चाहते हैं. जबकि केवल 3.5% ही ऐसे लोग थे, जिन्हें बेटों की तुलना में अधिक बेटियां चाहिए.
(गणतंत्र दिवस से पहले आपके दिमाग में देश को लेकर कई बातें चल रही होंगी. आपके सामने है एक बढ़िया मौका. चुप मत बैठिए, मोबाइल उठाइए और भारत के नाम लिख डालिए एक लेटर. आप अपनी आवाज भी रिकॉर्ड कर सकते हैं. अपनी चिट्ठी lettertoindia@thequint.com पर भेजें. आपकी बात देश तक जरूर पहुंचेगी)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)