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कभी मां बेटियों को सजाती-संवारती, स्मार्ट बनाती थीं. पर अब ट्रेंड बदल रहा है. बड़ी होती बेटियां मां को परंपरागत दायरे से बाहर लाकर उनकी सोच और रहन-सहन को नए आयाम दे रही हैं. बेटियां अब अपनी सीधी-सादी मां को ग्लैमरस और स्मार्ट बना रही हैं. वे बता रही हैं कि मां क्या पहनें, कौन सी चीज खरीदें और किस तरह अपने शौक संवारें.
बदलते समय के साथ अब माएं भी बेटियों की सलाह के बिना कुछ नया नहीं करतीं. छोटे-बड़े हर काम में उनसे मशविरा लेती हैं.
आइए, मदर्स डे के मौके पर मां-बेटियों के इस बदलते रिश्ते को समझने की कोशिश करते हैं.
पार्टी में जाते समय इंटीरियर डिजाइनर कावेरी जब मम्मी कमलेश को साड़ी से मैच करती ज्वेलरी पहनाती हैं, तो उनकी मम्मी फूले नहीं समातीं. पार्टी में अगर कोई ज्वेलरी की तारीफ कर दे, तो ‘कावेरी की पसंद है’ कहना नहीं भूलतीं. कावेरी ने कमलेश को कई बार समझाया, मम्मी आप बाहर वालों को क्यों बताती हो कि यह मेरी चीज है या मैं खरीद कर लायी थी.
कमलेश पर कावेरी की समझाइश का कोई असर नहीं होता. वे कहती हैं, जब कावेरी मेरी हर जरूरत से इतना सरोकार रखती है, मुझे हर वो चीज बताती और सिखाती है जो जामने के साथ चलने के लिए जरूरी है तो इसका श्रेय उसे मिलना ही चाहिए.
कावेरी न केवल उनके कपड़ों का ध्यान रखती है, बल्कि उन्हें नए गैजेट्स, क्विजीन, फैशन ट्रेंड्स के बारे में भी बताती है. वे बताती हैं, देखिए न शुरू-शुरू में मैं स्मार्ट फोन लेने के लिए मना रही थी. पर कावेरी नहीं मानी. एक दिन दफ्तर से लौटते समय स्मार्ट फोन खरीद लायी और मेरे फोन की सिम उसमें डाल दी. स्मार्ट फोन चलाने में मैं थोड़ा घबराई तो उसने इतने अच्छे ढंग से मुझे इसे चलाना सिखाया कि अब कोई दिक्कत नहीं हाती. हम दोनों मां-बेटी तो दिनभर एक-दूसरे से वॉट्सएप चैट करते ही हैं, मैं रिश्तेदारों, मिलने-जुलने वालों से भी कनेक्ट रहती हूं. कभी-कभी सोचती हूं कि कुछ साल पहले तक मैं कावेरी को दुनियादारी सिखाया करती थी, आज वो मुझे दुनिया के साथ कदमताल करना सिखा रही है.
साहित्यकार अंजू अपनी दोनों बेटियों विशाखा और देवान्या को अच्छा दोस्त मानती हैं. अंजू को जब भी किसी टेक्निकल गाइडेंस की जरूरत पड़ती है, तो वह बड़ी बेटी विशाखा की मदद लेती हैं. अंजू बताती हैं, कुछ साल पहले विशाखा ने ही उन्हें सोशल मीडिया से जोड़ा था. फेसबुक पर उनका अकाउंट विशाखा की ही देन है. बेटी विशाखा ने ही अंजू को सोशल साइट्स पर बिहेवियर से जुड़ी बहुत सी बातें सिखायीं. यही नहीं नए फैशन ट्रेंड्स, नई टैक्नोलॉजी से जुड़ी बातें भी दोनों बेटियां उनसे खूब शेयर करती हैं.
बेटियां ही उन्हें बताती है कि इस समय कौन सी चीज चलन में है. किस तरह का स्टाइल लोग ज्यादा पसंद कर रहे हैं. अंजू का मानना है कि जैसे-जैसे बेटियां बड़ी हो रही हैं, उनके अनुभव बढ़ रहे हैं और वह भी इस नई दुनिया का हिस्सा हो पा रही हैं. अंजू कहती हैं जब सोच का दायरा बढ़ता है तो पीढ़ियों के बीच का अंतर कम होता जाता है.
टीचर नीता का अपनी बेटियों के साथ बड़ा ही अनोखा रिश्ता है और इस रिश्ते की जान है उनकी बेटियों का हंसमुख स्वभाव. नीता कहती हैं, बेटियों की शादी से पहले उनका घर हमेशा हंसी की पाठशाला बना रहता. इस पाठशाला की टीचर थीं उनकी दोनों बेटियां शैली और सोना. हमेशा हंसती-खिलखिलाती दोनों बेटियों ने जिंदगी के प्रति उनका नजरिया ही बदल दिया.
बेटियों के बड़े होने से पहले नीता का जीवन स्कूल और घर की जिम्मेदारियों के बीच ही सिमटा था. लेकिन शैली और सोना ने उन्हें अहसास दिलाया कि इससे इतर भी जीवन में कुछ है. अपनी बेटियों के साथ जब उन्होंने घूमना-फिरना, खाना-पीना, फिल्में देखना शुरू किया तो जिंदगी के नए रंग-ढंग, तौर-तरीके समझ में आए. अभी तक घर में सिर्फ परंपरागत भारतीय खाना ही बनता था, बेटियों ने केक, पास्ता जैसी चीजें बनानी और खानी सिखाईं.
नई तकनीक से रूबरू कराया. मौके के मुताबिक बनने-संवरने-मेकअप करने पर जोर दिया. यही नहीं उनके साथ नए-नए लोगों से मिलने की वजह से सोच में बदलाव आया. इसका अहसास उनकी शादी के समय हुआ. शादी से पहले दोनों अपने-अपने जीवनसाथी के साथ खूब बतियाती थीं. उनका कहना था कि इससे एक-दूसरे को समझने में मदद मिलती है. मैंने उनकी बात समझी और स्वीकारी. मेरे लिए यह बड़ी बात थी, क्योंकि पुराने वक्त में शादी के समय ऐसा नहीं होता था.
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