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(यह आर्टिकल मध्य प्रदेश के दमोह में चल रही हमारी कवरेज का हिस्सा है, जहां हिजाब विवाद के बाद इंग्लिश मीडियम गंगा जमुना स्कूल को बंद करने से 1,000 से अधिक बच्चों का भविष्य खतरे में पड़ गया है. हम आपके लिए दमोह से ग्राउंड रिपोर्ट लाते रहेंगे, और हमें आपकी मदद की जरूरत भी है.)
मध्य प्रदेश के दमोह के फुटेरा वार्ड इलाके में स्थित, गंगा जमुना स्कूल 2010 में अस्तित्व में आया. पहले यह इलाका हिंसा और अपराध से ग्रस्त था. लेकिन स्कूल के आने के बाद यहां बदलाव आया. यह बात स्थानीय लोगों ने द क्विंट से कही.
फुटेरा वार्ड में लगभग 15,000 वोटरों का घर है और यह इलाका अव्यवस्थित तरीके से बने घरों की वजह से तंग है. इन घरों के बीच बमुश्किल एक इंच का अंतर है. स्कूल के सामने से होकर गुजरने वाली एक चौड़ी सड़क को छोड़कर, यह मुहल्ला संकरे रास्तों से जुड़ा हुआ है.
स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता नर्मदा सिंह एकता द क्विंट को बताती हैं कि इस स्कूल ने विशेष रूप से हाशिए के समुदायों से आने वाले छात्रों को अच्छी शिक्षा दी और इलाके को 'गुंडों' से छुटकारा दिलाने में मदद की. इसकी वजह से यह स्कूल लोकप्रिय हो गया.
हालांकि, अपनी स्थापना के लगभग 13 साल बाद स्कूल धर्म परिवर्तन और हिंदू छात्रों को हिजाब पहनने के लिए 'मजबूर' करने के आरोपों के कारण बंद है.
विक्रम ठाकुर के तीन बच्चे गंगा जमुना स्कूल में पढ़ते थे. विक्रम पेशे से किसान हैं और उनके पास पांच एकड़ जमीन है. वो स्कूल से महज 700 मीटर की दूरी पर रहते हैं. वह अपनी खेती से होने वाली कमाई से अपने पांच लोगों के परिवार की जरूरतों को पूरा करते हैं.
विक्रम ठाकुर इस समय अपने बच्चों के लिए एक नया स्कूल ढूंढने के लिए परेशान हैं. लेकिन इससे भी ज्यादा परेशानी है कि वो नए स्कूल का खर्च कैसे उठाएंगे?
एक नया स्कूल ढूंढने के बारे में बात करते हुए विक्रम कहते हैं:
तरुण ने नर्सरी से ही गंगा जमुना स्कूल में पढ़ाई की है और वो अब गंगा जमना स्कूल में 10वीं कक्षा का छात्र है. उसके पिता मुकेश अहिरवार मध्य प्रदेश बिजली बोर्ड में संविदा कर्मचारी हैं और प्रति माह 8,000-9,000 रुपये कमाते हैं. उसकी मां एक गृहिणी हैं.
तरूण की मां उषा अहिरवार ने द क्विंट को बताया कि उन्होंने 10वीं कक्षा के लिए तरूण की फीस की पहली किस्त जमा कर दी थी है और अब उनके पास उसे नए स्कूल में दाखिला दिलाने के पैसे नहीं हैं.
भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के एक स्थानीय नेता, जो नाम नहीं बताना चाहते थे, स्कूल को 'कलंकित' करने के लिए मीडिया को दोषी मानते हैं. लेकिन साथ ही उन्होंने आश्चर्य जताया कि क्या सभी पैरेंट्स का विश्वास बहाल किया जा सकता है.
रिपोर्टर ने जिन पैरेंट्स से मुलाकात की उनमें से कुछ ने स्पष्ट कहा कि अगर स्कूल फिर से खुल जाए तो भी वे अपने बच्चों को गंगा जमुना स्कूल में फिर से दाखिला नहीं दिलाएंगे.
एक माता-पिता, जो अपनी पहचान नहीं बताना चाहते थे, ने द क्विंट को बताते हैं. "हम अपने बच्चों को नए स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, लेकिन हम अनिश्चित हैं कि क्या हम अब अपने बच्चों को गंगा जमुना में भेज पाएंगे. अगर इसकी थोड़ी भी संभावना है कि स्कूल हमारे बच्चों की धार्मिक मान्यताओं को प्रभावित करने की कोशिश कर रहा है, तो हम हम उन्हें वहां नहीं भेज सकते"
दमोह में लगभग 25 सरकारी प्राथमिक-मध्य-उच्च विद्यालय हैं. इनमें 8,000 छात्र पढ़ते हैं. जबकि जिले के लगभग 50 प्राइवेट स्कूलों में लगभग 40,000 छात्र शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.
दमोह के जिला कलेक्टर मयंक अग्रवाल ने द क्विंट को बताया कि वे क्षेत्र में स्कूलों की उपलब्धता की मैपिंग कर रहे हैं, ताकि यह देखा जा सके कि क्या गंगा जमुना के छात्रों को इनमें से कुछ स्कूलों में दाखिला दिया जा सकता है.
जिला कलेक्टर मयंक अग्रवाल ने कहा, "हम छात्रों और अन्य स्कूलों में उपलब्धता की मैपिंग कर रहे हैं जहां इन बच्चों को दाखिला दिया जा सकता है. हालांकि, यह एक दिन की प्रक्रिया नहीं है. हमारी पहली और सबसे महत्वपूर्ण चिंता बच्चों की शिक्षा के बारे में है. हम जल्द ही चीजों को सुलझाने की कोशिश कर रहे हैं."
लेकिन जबतक यह नहीं होता, 1,200 छात्र स्कूल से बाहर हैं.
(इनपुट्स-इम्तियाज चिश्ती)
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