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"7वीं क्लास में फिर से एडमिशन कराना है. स्कूल की छुट्टी चल रही थी और मुझे स्कूल की ड्रेस लेनी थी. तो फैक्ट्री पर काम करने लगा"
यह कहना है 16 साल के टिंकू* (बदला हुआ नाम) का. टिंकू उन 58 नाबालिगों में शामिल है जिनसे मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के एक शराब बनाने वाली फैक्ट्री में काम करवाते पाया गया. रायसेन के सेहतगंज में स्थित सोम डिस्टलरीज में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने शनिवार, 15 जून को 39 नाबालिग लड़कों और 20 लड़कियों को फैक्ट्री में काम करते हुए पाया.
हर दिन 11 घंटे का काम, ₹200 से 400 की मामूली दिहाड़ी और देशी शराब बनाने में इस्तेमाल होने वाली स्पिरिट से जले-सूजे हाथ.. जब ये मासूम फैक्ट्री से बाहर आए तो एक-एक कर वो बातें सामने आईं जो बाल अधिकार के तमाम सरकारी दावों को आइना दिखाती हैं.
इनमें से अधिकतर नाबालिग केवल 8वीं पास हैं और पैसे की मजबूरी में यहां काम कर रहे हैं. क्विंट हिंदी ने कुछ ऐसे ही नाबालिगों और उनके परिजनों से बात की है.
सुमित (बदला हुआ नाम) की उम्र 15 साल है और वह 11वीं पास है. उसे 12वीं क्लास में एडमिशन लेना है लेकिन स्कूल की छुट्टी के बीच उसने फैक्ट्री में काम करने का फैसला किया. उसे इस उम्र में काम करने का शौक नहीं है, बल्कि फीस के पैसे और घर की मजबूरी की वजह से वह शराब फैक्ट्री में काम करने लगा. क्विंट हिंदी से बात करते हुए उसने बताया कि उसके पिता बकरी चराते है, मां गृहणी हैं और बहन पढ़ाई के साथ छोटा-मोटा जॉब करती हैं.
सुमित का कहना है कि फैक्ट्री में शराब बनाने के लिए स्पिरिट का इस्तेमाल होता है. बहुत देर तक उसमें हाथ डालने की वजह से हथेली जलकर सूज जाती थी. वहां से बाहर आने के आधे-एक घंटे बाद ही वह सामान्य होती थी.
विडंबना देखिए कि इन नाबालिगों को 2 स्कूल बसों में बैठाकर फैक्ट्री में काम करने ले जाया जाता था. चूंकि सुमित उसी ग्राम पंचायत सेहतगंज का है, जहां यह फैक्ट्री स्थित है, इसलिए वह बस की जगह पैदल ही जाता था. सुमित की तरह ही अकेले सेहतगंज से 13 नाबालिग यहां काम कर रहे थे.
टिंकू भी इसी गांव से है. टिंकू को फिर से 7वीं में एडमिशन लेने के लिए स्कूल ड्रेस की जरूरत थी और वह इसके लिए माता-पिता से पैसे नहीं लेना चाहता था. इसी वजह से उसने फैक्ट्री में काम करने का निर्णय लिया. टिंकू को 11 घंटे के काम के बदले हर दिन ₹400 की मजदूरी मिलती थी.
सौरव (बदला हुआ नाम) भी नाबालिग है और वह फैक्ट्री में काम करता था. उसी शराब फैक्ट्री में काम करने वाले उसके भैया ने क्विंट से बात करते हुए बताया कि पिता के देहांत के बाद तीनों भाई फैक्ट्री में काम करने लगे. फैक्ट्री में नाबालिगों को ₹200 से 300 की दिहाड़ी मिलती थी.
फैक्ट्री में काम करने वाले एक अन्य नाबालिग, सुजय (बदला हुआ नाम) के पिता ने बताया कि सुजय ने 8वीं तक की पढ़ाई की है. लेकिन कोरोना में आगे की पढ़ाई मोबाइल से हो रही थी और परिवार के पास पैसों की किल्लत की वजह से मोबाइल था नहीं. ऐसे में 9वीं क्लास में एडमिशन की जगह उसे काम पर भेज दिया.
सुजय के पिता भी उसी फैक्ट्री में काम करते हैं.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने एसोसिएशन ऑफ वॉलंटरी एक्शन, जिसे बचपन बचाओ आंदोलन (BBA) के नाम से भी जाना जाता है, के साथ मिलकर शनिवार को सोम डिस्टिलरी पर छापा मारा. NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो के नेतृत्व में एक टीम ने सोम डिस्टिलरी से 58 बच्चों, 19 लड़कियों और 39 लड़कों को बचाया.
मामला सामने आने के बाद रायसेन के उमरावगंज थाना में सोम डिस्टिलरी के संचालक पर FIR दर्ज की गई. FIR में बंधुआ मजदूरी प्रणाली अधिनियम, 1976 की धारा 16, किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 75, 79 और IPC की धारा 374 लगाई गई है.
NCPCR के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो के आवेदन पर दर्ज इस FIR में आरोप लगाया गया है कि फैक्ट्री में निरीक्षण के दौरान 58 बाल और किशोर मजदूर काम करते हुए पाए गए. उन्हें दो स्कूल बसों में बैठा कर फैक्ट्री में लाया जाता था. यहां काम करने की वजह से बच्चों के हाथों की चमड़ी भी गल गई है.
सोम डिस्टलरी के प्लांट पर सामने आए इस मामले के बाद उसके शेयर्स तेजी से नीचे गिरे हैं. साथ ही कंपनी का लाइसेंस 20 दिनों के लिए सस्पेंड भी कर दिया गया है.
हालांकि सोम डिस्टलरी ने इस सप्ताह एक एक्सचेंज फाइलिंग में कहा कि यह मुद्दा उसकी "सहयोगी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी" द्वारा संचालित एक प्लांट से संबंधित था. उसने सफाई दी है कि इसमें ठेकेदारों द्वारा मजदूरों की स्पलाई की गई थी, जिन्होंने उचित आयु जांच नहीं की होगी.
हालांकि इनसब के बीच सुमित जैसे बच्चे अपने भविष्य को लेकर अनिश्चित हैं. उनके सामने उलझन यह है कि अब यहां से मजदूरी गई तो वह आगे 12वीं क्लास में एडमिशन कैसा लेंगे या स्कूल की ड्रेस कैसे खरीदेंगे. वहीं स्थानीय प्रशासन के लिए इन नाबालिगों की आगे की पढ़ाई सुनिश्चित करने की चुनौती है. साथ ही उन्हें यह भी तय करना होगा कि ऐसी बाल मजदूरी की घटना फिर से सामने न आए.
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