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MP: प्रेमी युगल की शहादत की ‘याद’ में हुई पत्थरबाजी, 259 घायल

मान्यता के मुताबिक सावरगांव के लड़के को पांढुर्ना गांव की लड़की से मुहब्बत थी, वो लड़की को उठा ले गया.

आईएएनएस
भारत
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प्रतीकात्मक तस्वीर (फोटो: iStock)

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मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में मोहब्बत के लिए जान देने वाले प्रेमी युगल की याद में मंगलवार को पत्थरबाजी की परंपरा निभाई गई, जिसमें 259 लोग घायल हुए हैं, जिनमें से चार की हालत गंभीर है.

इस सालाना आयोजन को 'गोटमार मेला' कहा जाता है. प्रशासन ने सुरक्षा के भारी बंदोबस्त के साथ मेला क्षेत्र में धारा 144(धारा लगा दी, फिर भी पत्थरबाजी नहीं रुक पाई. पुलिस को बढ़ते उपद्रव को रोकने आंसू गैस के गोले भी छोड़ने पड़े.

क्षेत्र के एसडीएम डी.एन.सिंह ने बताया-

गोटमार मेला की पत्थरबाजी में कुल 259 लोगों केा चोटें आई हैं, वहीं पुलिस को हालात पर काबू पाने के लिए आंसूगैस का भी इस्तेमाल करना पड़ा.

उन्होंने बताया कि मेला के दौरान पत्थरबाजी को रोकने के व्यापक प्रबंध किए गए थे, निषेधाज्ञा लगाकर गोफान, हथियार लेकर आने पर प्रतिबंध लगाया था. वहीं सुरक्षा के मद्देनजर लगभग एक हजार पुलिस जवानों की तैनाती है, साथ ही चार मोबाइल अस्पताल मौके पर थे, जिसके चलते घायलों का इलाज मौके पर ही कर दिया गया.

कोशिश के बावजूद नहीं रोकी जा सकी परंपरा

सिंह बताते हैं कि राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्देशों के तहत पत्थरबाजी को रोकने की हर संभव कोशिश की, आयोजन स्थल से पत्थरों को पूरी तरह हटा दिया गया था. उसके बाद भी कई लोग थैलों में रखकर पत्थर लाए और एक दूसरे पर बरसाने लगे.

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क्यों मनाई जाती है ये परंपरा?

छिंदवाड़ा जिले का कस्बा है पांढ़ुर्ना, जहां पोला के दूसरे दिन जाम नदी के किनारे गोटमार लगता है. स्थानीय बोली में पत्थर को गोट कहा जाता है.

पुरानी मान्यता के मुताबिक, सावरगांव के लड़के को पांढुर्ना गांव की लड़की से मुहब्बत थी, वो लड़की को उठा ले गया. इस पर दोनों गांवों में तनातनी हुई, पत्थरबाजी चली. आखिरकार प्रेमी युगल की नदी के बीच में ही मौत हो गई. उसी घटना की याद में यहां हर साल गोटमार मेला लगता है. परंपरा को निभाते हुए दोनों गांवों के लोग एक-दूसरे पर जमकर पत्थर चलाते हैं. जिस गांव के लोग नदी में लगे झंडे को गिरा देते हैं, उसे विजेता माना जाता है.

परंपरा के मुताबिक जाम नदी के बीच में सोमवार की रात को पलाष वृक्ष को काटकर गाड़ा गया, उसमें लाल कपड़ा, नारियल, तोरण, झाड़ियों को बांधकर उसका पूजन किया गया.

मंगलवार की सुबह 5 बजे पेड़ का पूजन किया गया. दोपहर करीब 12 बजे से नदी के दोनों तटों पर लोगों के जमा होने का दौर शुरू हो गया, उसके बाद प्रशासन की तमाम कोशिशों के बावजूद पत्थरबाजी एक बार शुरू हुई तो वह शाम 7 बजे तक चलती रही.

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