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सरकार ने चने की एमएसपी तय की 4400 रुपए क्विंटल, लेकिन किसान इसे बेच रहे हैं सिर्फ 3750 रुपए में. यानी हर क्विंटल पर एमएसपी से 650 रुपए कम पर. किसानों के संगठन स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव का दावा है उन्होंने 5 राज्यों में एमएसपी की हकीकत का पता लगाया है और कहीं भी किसानों को एमएसपी का भाव नहीं मिल रहा है.
उन्होंने कटाक्ष किया कि इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि एमएसपी कितना बड़ा मजाक है. यादव के मुताबिक, देश में ऐसी कोई मंडी ही नहीं है जिस पर किसान सरकार की तय हुई एमएसपी पर अपनी पूरी फसल बेच सके.
किसानों के संगठन स्वराज अभियान नेता योगेंद्र यादव देशभर में एमएसपी सत्याग्रह चला रहे हैं जिससे किसानों को उनकी फसल का न्यूनतम दिलाया जा सके. स्वराज अभियान और इस अभियान से जुड़े दूसरे किसान नेताओं की पांच राज्यों की 9 मंडियों की जमीनी हालात पर अंतरिम रिपोर्ट चौंकाने वाली है.
योगेंद्र यादव के मुताबिक इस साल के केंद्रीय बजट में पहली बार एमएसपी की चर्चा हुई. वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि उन्हें मालूम है कि किसानों को उनकी फसल की एमएसपी नहीं मिल रही है.
स्वराज अभियान के नेता के मुताबिक फसल की एमएसपी बढ़ाने को लेकर बहस हो सकती है पर मौजूदा हालात में कॉटन को छोड़कर किसानों को हर फसल के दाम एमएसपी से बहुत कम मिल रहे हैं. योगेंद्र यादव का कहना है कि इसे बढ़ाने की बात तो एक तरफ अभी मौजूदा एमएसपी के दाम मिल जाएं यही बहुत है.
योगेंद्र यादव का दावा है कि पांच राज्यों की 9 मंडियों पर फसलों की कीमत परेशान करने वाली है क्योंकि कहीं भी किसानों की पूरी फसल एमएसपी पर नहीं बिक रही है.
(सोर्स-5 राज्यों की मंडी से एग्रीमार्कनेट की कीमतें)
यादव ने बताया कि मध्यप्रदेश में किसानों की दिक्कतें कम नहीं हुई हैं. जबकि जून 2017 में मंदसौर में किसानों के आंदोलन में 6 किसानों की मौत के बाद राज्य के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने अनशन किया था. मुख्यमंत्री ने उस वक्त ऐलान किया था कि किसी भी फसल को एमएसपी से नीचे खरीदना अपराध माना जाएगा.
नेशनल एलायंस ऑफ पीपुल्स मूवमेंट के संयोजक डॉक्टर सुनीलम के मुताबिक सरकार ने मक्के पर सिर्फ 200 रुपए क्विंटल बोनस दिया है. सरकार ने प्रति हेक्टेयर 1954 किलो मक्के की फसल का अनुमान लगाया था जबकि वास्तविक प्रोडक्शन 6000 किलो प्रति हेक्टेयर हुआ है. इसका मतलब है कि तीन चौधाई फसल की किस्मत ट्रेडर के रहमोकरम पर निर्भर है. यही हाल सरसों, लहसुन, चना की फसलों का है.
सुनीलम के मुताबिक एक और बहुत बड़ा मुद्दा ये है कि किसान जब फसल बेचने जाता है तो अथॉरिटीज पुराने लोन के एवज में पैसा काट लेता है. उनके मुताबिक ये पूरी तरह अवैध है फिर भी पूरे मध्यप्रदेश में यही चल रहा है.
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