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लाखों मुंबईकरों को समय पर खाना पहुंचाने वाले मुंबई के डब्बेवाले लॉकडाउन की वजह से अपने-अपने गांव लौट चुके हैं. अधिकतर डब्बेवाले अपने गांवों में खेती-किसानी कर रहे हैं. डब्बेवाले संगठन के प्रवक्ता विलास शिंदे ने बताया कि 95% डब्बेवाले मुंबई छोड़ फिलहाल अपने गांव वापस जा चुके हैं. मुंबई की लाइफलाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेन को बंद करने के ऐलान के बाद से ही डब्बे की सर्विस भी बंद है.
मुंबई में डब्बेवालों की सर्विस 100 साल पुरानी है. समय पर ग्राहकों तक टिफिन पहुंचा कर डब्बेवालों की पहचान बनी है. COVID-19 के संकट ने डब्बेवालों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है, जिसकी वजह से आर्थिक स्थिति को संभालने के लिए कई डब्बेवाले अपने-अपने गांव लौट गए हैं.
सुभाष तलेकर डब्बेवाले संगठन के प्रमुख हैं. उन्होंने क्विंट को बताया कि वो 2 महीने पहले अपने परिवार के साथ पुणे जिले के गाडाड गांव आ गए थे और वहां अपने खेत में चावल की खेती कर रहे हैं. तलेकर का कहना है कि जब तक मुंबई में हालात पूरी तरह सुधर नहीं जाते, तब तक डब्बा सर्विस शुरू हो पाना मुश्किल लग रहा है.
तलेकर ने कहा, "सबसे बड़ी अड़चन लोकल ट्रेन का बंद होना और दूसरा कई रिहायशी इमारतों में बाहर के व्यक्ति के आने पर पाबंदी है. ऐसे में कैसे डब्बा सर्विस दे पाएंगे. इसलिए लगता है कि जब तक हालात ठीक नहीं होते, तब तक गांव में ही रहना ठीक है."
ऐसा नहीं है कि सभी डब्बेवाले खेती कर रहे हैं. कुछ लोग पुणे के महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन (MIDC) में मजदूरी का काम भी कर रहे हैं. लॉकडाउन की वजह से उत्तर भारत से पुणे काम करने आए प्रवासी मजदूर अपने घर लौट चुके हैं. ऐसे में उनकी जगह खाली है और आसानी से काम मिल जाता है. तलेकर का कहना है कि अगर गांव में ठीक-ठाक काम मिल जाए तो शायद कई डब्बेवाले मुंबई का रुख करने का विचार भी छोड़ सकते हैं.
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